चंदौली। देश के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. कमलाकांत त्रिपाठी का शुक्रवार को मुख्यालय से निवास पर निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे और विगत कई वर्षों से बीमार चल रहे थे। डॉ. त्रिपाठी मूल रूप से बिहार के भभुआ जिला अन्तर्गत कुड्डी गांव के निवासी थे।
मोहनियां स्थित महाराणा प्रताप डिग्री कॉलेज के संस्थापक प्राचार्य थे, और वहाँ से अवकाश प्राप्त करके चन्दौली में अपना निवास बनाकर रह रहे थे। बहुप्रतिष्ठित ग्रंथों के लेखक डॉ. कमलाकांत त्रिपाठी की उच्च शिक्षा बीएचयू से हुई थी। उनके द्वारा लिखित शोधग्रंथ ‘बेनीपुरी की साहित्य-साधना’ पिछले दशक की बेस्ट सेलर पुस्तक थी। उनकी गिनती देश के शीर्षस्थ व्याकरणशास्त्रियों में होती थी। उनके द्वारा किए गए अष्टाध्यायी के हिन्दी भाष्य काफी लोकप्रिय हैं। इस दौरान उत्तर प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और प्रख्यात स्तम्भकार हृदयनारायण दीक्षित ने कहा कि स्वर्गीय त्रिपाठी साहित्य में शुचिता के पक्षधर और आध्यात्मिक आख्यानों के पुनर्वाचन परम्परा के पोषक महान साहित्यकार थे, उनके निधन से साहित्यिक व आध्यात्मिक समाज ने एक विचारक संत खो दिया। पुस्तक पथ के सम्पादक एल. उमाशंकर सिंह ने कहा कि उनके निधन से एकाकी साधना करने वाले साहित्यकारों की एक महत्वपूर्ण कड़ी टूट गई। वरिष्ठ कथाकार श्यामबिहारी चौबे ने कहा कि वे पिछले पांच दशक से हिंदी साहित्य के अप्रतिम सेवक थे, उनके निधन से हिन्दी साहित्य ने अपना महत्वपूर्ण नक्षत्र खो दिया है। यशस्वी ललित निबंधकार डॉ. उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि डॉ. त्रिपाठी साहित्य में लोकपक्ष के प्रबल समर्थक विद्वान थे, उनके जाने से हमने एक प्रबुद्ध अभिभावक खो दिया। साहित्यकार व उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व महानिदेशक डा. सूर्य कुमार शुक्ल ने कहा कि डॉ. त्रिपाठी ने अनेक संतों की जीवनी लिखकर उन्हें साहित्य में ला खड़ा किया, साहित्य से समाजसुधार का उनका लक्ष्य बहुत ही पवित्र था। वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी व चिन्तक डॉ. परेश सक्सेना ने डॉ. त्रिपाठी के निधन पर गहरा शोक व्यक्त की। कहा कि उनके निधन से पुरानी पीढ़ी के गम्भीर विचारों से समाज को सींचने वाला एक बड़ा स्तंभ गिर गया। रेलवे में वरिष्ठ अभियंता एवं कवि विजय बुद्धिहीन ने डा. त्रिपाठी के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताते हुए अपने श्रद्धासुमन अर्पित किए।