Young Writer, साहित्य पटल। डा. गोपाल सिंह, समीक्षक
उमेश प्रसाद सिंह द्वारा संपादित पुस्तक ʺसाठ के हेमंतʺ नई दिल्ली से प्रभात प्रकाशन ने छापी है । पुस्तक पठनीय ही नही ज्ञानवर्धक व संग्रहणीय भी है । हेमन्त के आद्योपान्त जीवन चित्र को समायोजित करने का प्रयास संपादक उमेश प्रसाद सिंह ने पुस्तक मे किया है। हेमंत जैसे विराट व्यक्तित्व को एक पुस्तक मे सहेजना कठिन ही नही नामुमकिन भी है। तय तो पाठक करेगा संपादक की सफलता । परन्तु प्रथमतः संपादक जी सफल होते दिख रहे है । कुल 109 संस्मरणीय लेख संपादक के सफलता की न केवल गवाही दे रहे है, अपितु हिमालय जैसे व्यक्तित्व के संवाहक हेमंत का कद और भी चमका रहे हैं । इन संस्मरणात्मक लेखों में प्रख्यात आलोचक डा.नामवर सिंह के लेख से अगर हेमंत शर्मा के व्यक्तित्व मे चार चांद लगता है तो राष्ट्रवादी चिन्तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत का लेख हेमंत शर्मा के व्यक्तित्व को निःसंदेह राष्ट्रीय फलक का दर्जा प्रदान करता है। जो अपने आप मे काफी मायने रखता है । दोनो लेख दो भिन्न मतो का राष्ट्रीय संपादन करते है ।
यही हेमंत शर्मा के व्यक्तित्व की खासियत और विशेषता है। यही संपादक उमेश प्रसाद सिंह की जबर्दस्त सफलता है ।पद्मश्री से सम्मानित जेपी आन्दोलन से निकले वरिष्ठ पत्रकार, राजनीति, समाज और संविधान पर आधा दर्जन पुस्तकों के लेखक, वर्तमान मे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय ने हेमंत के व्यक्तित्व को अद्भुत धार दी है । पुस्तक के प्रारंभ मे संपादक ने कुल 14 पृष्ठ में हेमंत शर्मा के व्यक्तित्व को प्रक्षेपित करने का अथक प्रयास करते हुए अपने संपादन के सफलता की जोरदार दस्तक दी है‚ जिससे पाठक सहज ही पुस्तक का कायल हो जाता है । रही सही कसर शीला भट्ट ने पूरी कर दी है। पुस्तक के अन्त मे 30 पेज मे हेमंत शर्मा से संवाद को केंद्र मे रखकर संपादक ने हेमंत से वह सारी बातें शीला भट्ट के जरिए उगलवा ली है, जहां से पुस्तक के पूर्णता में कोई कसर बाकी रहने की संभावना सी थी । संपादक उमेश प्रसाद सिंह ने न केवल हेमंत शर्मा के सहपाठियों के लेख को पुस्तक मे स्थान दिया है अपितु शरद भैया, वीणा, ईशानी और पार्थ के लेखन से हेमंत के साथ अद्भुत न्याय भी किया है। पुस्तक मे संघ पृष्ठभूमि से दत्तात्रेय होसबाले का लेख है तो सत्ता के केन्द्र से अमित शाह व राजनाथ सिंह के साथ विपक्ष के असदुद्दीन ओवैसी, प्रोफेसर रामगोपाल यादव, राजीव शुक्ला की कलम भी हेमंत के व्यक्तित्व को बहुत ही बारीकी से उकेरती हुई अपना गन्तव्य तय करती है।
असल में यही हेमंत का साठ सफलतापूर्वक परवान चढता है । जो संभवतः संपादक का मंतव्य है । कवि, लेखक, पत्रकार, कलाकार भी साथ है । कुमार विश्वास, मालिनी अवस्थी, साजन मिश्र, प्रोफेसर देवी प्रसाद द्विवेदी, डा. वेद प्रताप वैदिक, प्रोफेसर आनन्द कुमार, स्वामी रामदेव, मोरारि बापू, बृजेश पाठक, आशुतोष आदि के लेखों ने क्रमशः हेमंत के व्यक्तित्व के अनछुए पहलुओं से पाठक को रूबरू कराया है तो हेमंत के साढे चार दशक पुराने सहपाठी व मित्र प्रोफेसर अरुण कुमार मिश्र, प्रोफेसर दिनेश कुशवाह, डा. शोभनाथ गुप्ता, डा. गोपाल सिंह, डा.रामप्रकाश कुशवाहा, अजय त्रिवेदी आदि ने अपने लेख के माध्यम से हेमंत के व्यक्तित्व का समुच्चय उभार पाठक तक पहुचाने मे सफलता हासिल की है। ईशानी के विदाई से व्यथित हेमंत को मुकम्मल बाप का एहसास कराता वीणा का मर्मस्पर्शी लेख निश्चित रूप से पाठक के आख से बरबस आसू छलका देता है।
यही पर आकर संपादक की कामयाबी परवान चढती सी नजर आती है। पुस्तक में 32 पृष्ठों मे हेमंत की महत्वपूर्ण तस्वीर बहुत कुछ बया कर रही है , कह सकते है यह पुस्तक हेमंत के साठ साल के संघर्ष का जीवंत दस्तावेज है । जहा कहना मुश्किल है कि हेमंत मे काशी है कि काशी मे हेमंत है। कुल मिलाकर दोनो न केवल अन्योन्याश्रित है अपितु दोनो एक दूसरे के पूरक है । और यही चीज हेमंत को औरो से अलग करती है । हेमंत मित्रो मे मित्र है तो पत्रकारों में पत्रकार, लेखकों में लेखक है तो कलाकारों में कलाकार। सम्बन्ध जीवी, उत्सव जीवी, हेमंत आवभगत और खाने खिलाने पिलाने के भी बेहद शौकीन है। चुटकीबाज हेमंत का अनूठा व्यक्तित्व उनके लोगो के सिर चढ़कर बोलता है।
संपादक ने पुस्तक को पूज्यनीय पिताश्री स्व मनु शर्मा को समर्पित कर अपने संपादन और पुस्तक की महत्ता मे चार चांद लगा दिया है । एक बात की कसक सबको रह गई है ,पेट भर कर कोई नही लिख पाया, हेमंत पर कहा से लिखना शुरू करे ।यह सबके लिए समस्या थी । सब और लिखना चाहते थे । परन्तु संपादक की अपनी अलग प्रतिबद्धता थी । बहुत लेख पुस्तक मे अपना स्थान हासिल नही कर पाए , इस चिन्ता से आज भी संपादक जी व्यथित है। खैर, अब हेमंत का पाठक वर्ग पुस्तक के विमोचन के इन्तजार में है । अन्त मे हेमंत के गुरूतर और सहज व्यक्तित्व को बधाई । निश्चित तौर पर संपादक उमेश प्रसाद सिंह ने कठिन परिश्रम कर पुस्तक को इस मुकाम तक पहुंचाया है । कुल 111 लेखो का संग्रह व संपादन कठिन ही नही दुरूह भी है ,लेकिन धैर्यवान व्यक्तित्व के यथार्थ मूर्तिकार उमेश प्रसाद सिंह जिस सहज भाव इस कार्य को अंजाम तक पहुंचाए, यह सबके बस का नही है। अवश्यमेव उमेश प्रसाद सिंह बधाई के पात्र ही नही अपितु हकदार भी है। अन्त में हेमंत और उमेश दोनों को शुभकामनाएं।