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Friday, April 19, 2024

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तुलसी दास का इंटरव्यू

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

एक दिन सबेरे सबरे तुलसी दास नहा धो कर अपनी लिखी किताब मानस का परायण कर रहे थे , तभी एक टुटपुंजिया अखबार का पत्रकार इंटरव्यू के लिए पहुँच गया । तुलसी ने संकेत से बैठने का इशारा किया । वह चुपचाप बैठ गया । जब तुलसी ने पाठ पूरा कर लिया तो किताब को बेठन में लपेट कर एक तरफ रख दिया । और बोले-
“कहिये श्री मान , क्या सेवा कर सकता हूँ ।”
पत्रकार अपना परिचय देते हुए कहा -” बाबा , एक पत्रकार हूँ , आप का इंटरव्यू लेने आया हूं ।”
तुलसी ने अपनी चुटिया खोली और लटें सीधी करते हुए बोले -” वो तो ठीक है ,परन्तु आज अचानक इसकी क्या आवश्यकता आ पड़ी ।”
पत्रकार अपना पेन और पैड निकाल चुका था , पन्ना पलटते हुए बोला -” बाबा , आजकल धरती पर आप को लेकर माहौल ठीक नहीं चल रहे हैं । आप की इसी किताब पर रोज बवाल मचता है ।”

तुलसी ने पास में रखे लोटे से दो घूंट पानी गले में उतारा और जनेऊ ठीक करते हुए पूछा -” क्या देश में चुनाव आने वाला है ।”
पत्रकार चकित होकर देखा -” आप को कैसे पता ।”
तुलसी ने उत्तर देने की जहमत नहीं उठाई उल्टे सवाल दाग दिया ।” क्या यह सब नेताओं के शह पर नहीं हो रहा है ।”
पत्रकार के पास जी कहने के अलावा कोई अन्य उत्तर नहीं था । दोनों ओर से कुछ देर के लिए चुप्पी आ गयी । पत्रकार सोच रहा था । बाबा तो अन्तर्यामी है । कैसे पल भर में सारी बात जान ली । तुलसी दास सोच रहे थे । राम के देश में कैसे कैसे लोग हो गए हैं । राम ने गद्दी को लात मार दी और चुपचाप वन चले गये । एक ये लोग हैं कुर्सी के लिए क्या क्या उधातम नहीं करते ।
तुलसी ने चुप्पी तोड़ी -” पूछिये , क्या पूछना चाहते हैं।”
पत्रकार ने गला साफ़ किया और बोला -” आज कल आप की कुछ विवादित चौपाइयों पर बहस छिड़ी है , बड़ा बवाल मचा है ।”
तुलसी दास ने कहा -” देखिये , जिसे आप विवादित चौपाइयां कह रहे हैं , उसे विवादित किसने बनाया , जाहिर है इन्हीं नेताओं ने , मैंने तो केवल राम कथा लिखी , जो प्रसंग आये , जैसे आये मैंने लिखा । मैंने विवाद तो नहीं लिखा न, कुछ लोग समय समय पर स्वार्थ की रोटी सेंकते है । अपनी दुकान चलाते हैं ।”
” मगर बाबा , महिलाओ और शूद्रों ने अलग अलग मोर्चा खोल रखा है आप के खिलाफ , उनको लगता है आप ने उन्हें अपमान की आग में झोंक दिया है ।” पत्रकार ने सवाल दागा ।
तुलसी उसी तरह निर्लिप्त भाव से बोले -” और पशुओं और गवारों , ढोलों को कब मौका दे रहे हैं आप के नेता ।”
” मैं कुछ समझा नहीं।”

” आप लोगों को कुछ समझने लायक छोड़ा है इन नेताओं ने , आप लोग उनके हथियार हैं , जब स्वार्थ की भठ्ठी गर्म होती है , रोटी सेंक लेते हैं । देश को किस प्रकार की आग में झोंक कर अपनी टी आर पी बढ़ानी है , वे अच्छी प्रकार से जानते हैं , यहाँ पर क्या पढ़ा लिखा , क्या अनपढ़ , सब बराबर हैं । “
” बाबा, एक बात बताइये , लोग आप को घर घर पूजते है , क्या शुद्र , क्या ब्राह्मण । फिर आप ने ऐसी आग लगाने वाली बात क्यों लिखी । जिससे किसी को ठेस लगे ।”
तुलसी के मुखमण्डल पर स्निग्ध मुस्कान तैर उठी , बोले -” ये आप का प्रश्न नहीं है पत्रकार महोदय , यह तो उन नेताओं द्वारा आप को रटाया गया है । देखिये , किसी भी रचना पर देश काल का बड़ा प्रभाव होता है । जिस समय मैं राम चरित मानस लिख रहा था , उस समय म्लेच्छों का शासन था देश पर , उनके क्रूरतम अत्याचार के आगे कौन आगे आया था । वे विधर्मी अपने धर्म को विस्तार देना चाहते थे , कभी तलवार के बल पर , कभी धन का लालच देकर , तो कभी सुविधा देकर । बहुत सारे लोग अभाव ग्रस्त जीवन से मुक्ति के लिए , विधर्मी धर्म अपना रहे थे । ऊपर से खुद काशी में भयंकर महामारी ने डेरा जमा रखा था , लोग बिना हर्रे फिटकरी के मर रहे थे । विधर्मियों द्वारा उन्हें कोई सुविधा नहीं दी जा रही थी । थक हार कर मुझे उतारना पड़ा महामारी के बीच , उनके उपचार की समुचित व्यवस्था , अपने शिष्यों द्वारा कराया , मरे हुए लोगों से उनके सगों ने मुंह फेर लिया था , उनका अंतिम संस्कार कराया , अधीर हो चुके लोगों को ढांढस बंधाया । मैंने शुद्र और ब्राह्मण में कभी भेद नहीं किया । उन्हें मैंने ” सियाराम मैं सब जग जानी ” मान कर मानव मात्र की सेवा की । किसी नेता को यह बात याद है । “

” लेकिन लोग तो कहते हैं , आप ने जान बूझकर ब्राह्मणवाद को बढ़ावा दिया है ।”
तुलसी हँस पड़े , जिस समय वे हँस रहे थे , उनका पेट जोर जोर से हिल रहा था । उनके दाँत मोतियों से चमक रहे थे । अचानक से उनका हँसना बन्द हो गया । उनका हाथ खुली हुई चुटिया पर गयी । जिसे वे सुलझा रहे थे । उनका इस तरह खुले केशों को सुलझाना गम्भीरता का द्योतक था । पता नहीं किसी और में यह गुण होगा या नहीं कि अभी पूरी मस्ती में झूम झूम हँस रहे थे , अचानक से गम्भीर हो उठे । पत्रकार ने उनके मन के भाव पढ़ने की असफल कोशिश की ।
तुलसी ने कहना शुरू किया -” क्या आप के नेता लोग यह नहीं जानते कि काशी आने पर मुझे भी ब्राह्मणों के कोप भाजन बनना पड़ा । उन्होंने मेरे सामने कितनी विघ्न बाधाएं खड़ी की । मेरे ग्रन्थ रामचरित मानस को नष्ट करने के कितने उपाय ब्राह्मणों ने किया । मुझे उसे बचाने के लिए बैरम खां का संरक्षण लेना पड़ा । मेरे ऊपर कातिलाना हमला कराया गया । मेरे पीछे मुस्टंडे लगाए गए । मुझे काशी से खदेड़ने के बहुत उपाय किये गए , जिसमें वे लोग सफल नहीं हुए । मेरे ऊपर मेरे राम की कृपा बरस रही थी । वे निष्फल हुए, और तो और मेरे गाँव , मेरी जन्मभूमि से मुझे पलायन करना पड़ा , जानते हैं क्यों ।”

पत्रकार के पास कोई उत्तर नहीं था । वह उनसे ही उत्तर की अपेक्षा किये बैठा रहा ।
तुलसी ने आगे कहा -” तुम्हारे नेताओं को क्या पता , ब्राह्मणों के इतने बड़े गाँव में , मुझ ब्राह्मण के लिए दो जून की रोटी नहीं थी । ऊपर से मेरे ऊपर व्यंग्योक्तियों का प्रहार था । उपेक्षा थी , तिरस्कार था । रोटी मांगने पर गालियां मिलती थी । लोग मेरी परछाई से बचते थे । कोई कोई दयाकर एकाध रोटी खिला देता था , पर अपने दरवाजे सोने नहीं देता था । थक हार कर मस्जिद में जाकर सोता था ।
” टुक टाक खाइबो, मसीत में सोइबो ।”
” फिर एक दिन भगवान के स्वरूप मेरे गुरु देव पधारे , मेरे ऊपर उनकी कृपा बरसी वे मुझे अपने साथ ले गए । मुझे विभिन्न प्रकार के ज्ञान से आच्छादित किया । मुझे अपने पैरों पर खड़ा किया । मुझे रामभक्ति का मार्ग दिखाकर कृतार्थ किया । जानते हो मेरे वे गुरु किस जाति के थे ।”
पत्रकार फिर निरुत्तर था । तुलसी थोड़ा उत्तेजित हुए , कान के पास हाथ लगाकर क्षमा याचना करते हुए बोले -” तुम लोगों की व्यर्थ चोंचलेबाजी की वजह से अपने गुरु की जाति देखनी पड़ रही है । “
बहुत देर के बाद पत्रकार बोला -” उनकी जाति क्या थी बाबा ।”
” वो ब्राह्मण नहीं थे , सुनार जाति थे । किसी ब्राह्मण ने तो मेरा हाथ नहीं पकड़ा , फिर मेरे ऊपर ब्राह्मणवाद का आरोप क्यों ।”
पत्रकार चुप ही रहा , तुलसी बोले -” इसका उत्तर न तुम्हारे पास है , और ना ही , तुम्हारे नेताओं के पास । वे जाति , धर्म की रोटी खाते हैं , इसलिए बार बार ऐसे बकवास फैलाते हैं , हिम्मत हो छापना अपने अखबार में तुलसी तुम्हारे वोट बैंक का हथियार नहीं है , वह राम का भक्त है और वही रहेगा ।”

जीवन परिचय-
 रामजी प्रसाद " भैरव "
 जन्म -02 जुलाई 1976 
 ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट - चहनियाँ
 जिला - चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास "रक्तबीज के वंशज" को उ.प्र. हिंदी  संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार । 
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में "शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर" है । 
 कविता संग्रह - चुप हो जाओ कबीर
 व्यंग्य संग्रह - रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
             गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन      
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

– Young Writer Chandauli.

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