गड्ढ़ामुक्त दावे को झुठला रही गड्ढायुक्त सड़कें


पब्लिक बोली, नेताओं व अफसरों को अपने कमीशन की फिक्र
चंदौली। यह तस्वीर गड्ढ़ामुक्त दावे करने वाली प्रदेश सरकार की वास्तविकता की तस्वीर है। मवैया गांव के पास का यह दृश्य चकिया-मुगलसराय मुख्य मार्ग का है, जो सड़कों की स्थिति को बयां करती है। साथ ही उन तमाम सरकारी दावों की पोल खोलती है जो सरकारी बैठकों व राजनीतिक मंच से किए जाते हैं। खैर! परेशान हाल जनता है। नेता या अफसरों का क्या? वह लग्जरी कारों से आते हैं और गुजर जाते हैं, दुश्वारियां तो उन स्थानीय आवाम को उठानी पड़ती है जो उस रास्ते से नियमित साइकिल, पैदल या बाइक से आवागमन करते हैं।
हालात-सूरत यह है कि कभी कोई बाइक वाला बारिश के पानी से भरे गड्ढे की गहराई व चैड़ाई का अनुमान नहीं लगा पाता है और उसकी जद में आकर गंदे पानी से सराबोर हो जाता है। वाहन की क्षति के साथ ही उसे शारीरिक चोट की पीड़ा को झेलना पड़ता है। पैदल राहगीर अक्सर कीचड़ व गंदे पानी के छिटे पड़ने से आए दिन जलालत झेलते हैं। कमोवेश ऐसी स्थिति जनपद के अधिकांश मुख्य रास्तों की है जो गड्ढों की शक्ल अख्तियार कर चुके हैं। इतना ही नहीं बारिश के मौसम में ये सड़कें लोगों के लिए जानलेवा भी साबित हो रही है। हाल ही धानापुर इलाके में सड़क पर गड्ढों से बचने के प्रयास से हुए हादसे में बाइक सवार को जान तक गंवानी पड़ गयी थी। इसी तरह लोगों के चोटिल होने की घटनाएं आम हो गयी है। बावजूद इसके न तो लोक निर्माण विभाग के जिम्मेदार अफसर इसे संज्ञान ले रहे हैं और ना ही सत्ता पक्ष के जनप्रतिनिधि ही इसे गंभीरता से लेते हैं।


क्या है जनता का आरोप
चंदौली। सड़कों की मरम्मत व रखरखाव के बाबत जब लोगों से बातचीत की गयी तो उन्होंने कहा कि सड़कों के निर्माण को लेकर प्रशासनिक तंत्र व नेताओं का रवैया कभी ठीक नहीं रहा है। जो भी नेता सत्ता में रहता है उसे सड़क की गुणवत्ता व लोगों की सुविधा से ज्यादा अपने कमीशन की फिक्र होती है। विभागीय अफसर बिना कमीशन लिए कोई टेंडर पास नहीं करते, जिसका सीधा असर सड़कों की गुणवत्ता पर पड़ता है जो सड़कें पांच साल में खराब होनी चाहिए, वह पांच माह में ही दम तोड़ने लगती है। इसके लेकर एक बड़े जन आंदोलन की जरूरत है, ताकि लोगों को जन-धन दोनों हानि से बचाया जा सके।