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Saturday, September 30, 2023

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खास गांव में शौचालय बनाने से पहले ही‚ रखरखाव के नाम पर निकलने लगा धन

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खास गांव स्थित सामुदायिक शौचालय का भवन

खास ग्राम पंचायत में शौचालय रखरखाव के नाम पर भ्रष्टाचार

इलिया। यह सच है शौचालय का। सच है सरकारी धन के उपयोग व उसके दुरुपयोग के बीच के अंतर का। जी हां! बात हो रही कि ग्राम पंचायतों में निर्मित सामुदायिक शौचालयों का। इन्हें स्वच्छ भारत मिशन के तहत बनाया गया। एक-एक शौचालय पांच से छह लाख रुपये के करीब जनता का पैसा खर्च हुआ। मंशा थी कि लोग खुले में शौच की कुप्रथा को त्यागकर शौचालय के इस्तेमाल की नयी आदत को अपनाएंगे। लेकिन इस महत्वाकांक्षी योजना को भ्रष्टाचार का ग्रहण लगा और यह भी अपनी मंशा व मूल उद्देश्य से भटक गयी। इसका ज्वलंत उदाहरण है खास गांव स्थित सामुदायिक शौचालय।इसकी वर्तमान हालात को देखते ही समझ आ जाएगा कि सामुदायिक शौचालय न केवल वर्तमान में निष्प्रोज्य है, बल्कि इसके उपयोग के बाहर होने के बाद भी रखरखाव के नाम पर ग्राम पंचायत लगातार सरकारी धन आहरित कर रही है। जी हां! यह बात आपको चौंका सकती है, लेकिन चैकिए नहीं यह बिल्कुल सच है। इस आरोप को सरकारी अभिलेख प्रमाणित व पुष्ट करते हैं। वर्तमान वित्तीय वर्ष में 54 हजार रुपये रखरखाव के मद में स्वयं सहायता समूह के नाम पर निकाली गयी, जबकि शौचालय का रखरखाव हुआ ही नहीं। तस्वीरों पर गौर करे तो सामुदायिक शौचालय की टंकी खुली हुई है जो ग्रामीणों खासकर बच्चों व वृद्धजनों के लिए जानलेवा है। यह तय है कि सामुदायिक शौचालय के निर्माण में टंकी को ढकने का धन भी आहरित हुआ होगा। यदि ऐसा है तो उसकी टंकी को क्यों नहीं ढका गया? इसके अलावा शौचालय में लगे दरवाजे पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके है। वहीं जलापूर्ति करने वाली पाइप लाइन भी अपूर्ण है, जबकि शौचालय अभी नया है और बहुत से कार्य अभी तक मुकम्मल नहीं हुए हैं जैसा की ग्रामीणों का आरोप है।

खास गांव में सामुदायिक शौचालय का क्षतिग्रस्त दरवाजा।
खास गांव में सामुदायिक शौचालय की खुली टंकी। 

ग्रामीणों के मुताबिक शौचालय के फर्श पर टाइल्स लगाने का कार्य अधूरा है। छत पर टंकी लगी है, लेकिन उसमें पानी भरने के लिए न तो समरसेबल की स्थापना हो पायी है और ना ही हैंडपम्प आदि का ही बंदोबस्त हो पाया है। ऐसे में सामुदायिक शौचालय का उपयोग ग्रामीणों ने कभी किया ही नहीं। बावजूद इसके उक्त सामुदायिक शौचालय के रखरखाव के नाम पर 54 हजार रुपये ग्राम पंचायत से निकाल लिया गया। अब सवाल यह उठता है कि जब शौचालय पूर्णतः बना ही नहीं, और ग्रामीणों के उपयोग में आया भी नहीं तो ये 54 हजार रुपये ग्राम पंचायत ने किसके रखरखाव में खर्च कर दिया। हालात ऐसे हैं कि शहाबगंज ब्लाक क्षेत्र के अधिकांश ग्राम पंचायतों में यह खेल खेला जा रहा है। यह तय है कि इसमें कहीं न कहीं जिम्मेदार अफसरों व कर्मचारियों की भी मिलीभगत है, तभी तो इस पर अब तक पर्दा पड़ा हुआ है।  

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