नक्सल प्रभावित गांव सेमर-साधोपुर में कीचड़ से होकर गुजरते हैं ग्रामीण
नौगढ़। यदि कोई राजनेता या अफसर विकास के कसीदे पढ़े या बड़े-बड़े दावे करता नजर आए तो उसका हाथ पकड़िए और नौगढ़ बांध की तलहटी में बसे सेमर-साधोपुर गांव खींच लाइए। यकीनन उसकी आंखें शर्मा जाएगी और वह खुद ही खुद को झूठा साबित कर बैठेगा। जी हां! यह वही गांव है जहां बुनियादी सुविधाएं के लिए गांव के बच्चे से लगायत बुजुर्ग यहां तक की महिलाएं, हर दिन जद्दोजहद करता है। बारिश में तो यहां की स्थितियां और भी नारकीय हो जाती है। शुक्रवार को सेमर-साधोपुर से एक ऐसी तस्वीर सामने आयी जिसने नीति आयोग के आंकड़े को फिर से पुष्ट किया कि वाकई चंदौली जिला विकास के मामले बहुत पिछड़ा हुआ है।
नक्सल प्रभावित नौगढ़ के पहाड़ों पर बसे सेमर-साधोपुर में बिजली, पानी, सड़क व शिक्षा जैसी सुविधाओं का अभाव कायम हैं। यहां के बच्चे जहां शिक्षा अर्जन के लिए दूरदराज के इलाकों में जाते हैं, वहीं ग्रामीण जीविकोपार्जन के लिए दिहाड़ी मजदूरी व कामकाज की तलाश में दूसरे इलाकों पर आश्रित रहते हैं। ग्रामीण बताते हैं कि सेमर साधोपुर गांव में आवागमन के लिए पक्की सड़क नहीं है। ऐसे में बरसात के मौसम में गांव से करीब तीन किलोमीटर की दूरी तय करना लोहे के चने चबाने जैसा अत्यंत दुरूह व मुश्किल है। नौगढ़ बांध के ऊपर से होकर कीचड़ से लथपथ होते हुए बच्चों को जूनियर हाईस्कूल औरवाटांड़ आते-जाते है। इसी रास्ते से गांववासी 20 किलोमीटर दूर नौगढ़ बाजार पहुंचकर आवश्यक वस्तुओं की खरीद व ब्लाक तथा तहसील स्तरीय कार्यों का निष्पादन करना पड़ता है।वहीं हाईस्कूल की शिक्षा गांव से 8 किलोमीटर की दूरी पर आसीन राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय जमसोत मे जाकर के करने में अनेकानेक असुविधाओ के दौर से शिक्षार्थियों को गुजरना पड़ रहा है। ग्राम प्रधान कृष्ण कुमार जायसवाल ने बताया कि नौगढ़ से बिहार राज्य की सरहद के समीप स्थित क्षेत्र के गहिला गांव तक पक्की सड़क बनी है।जिसके बीच रास्ते में लगभग 2 किलोमीटर तक का भाग औरवाटांड़ बांध का है जो कि कच्चा है। जिससे सेमर साधोपुर गांव जाने के लिए सड़क है जो वन विभाग का आधिपत्य में है जिस पर बिना अनापत्ति प्रमाण पत्र के सड़क पर पत्थर चौका या इंटरलॉकिंग का कार्य ग्राम पंचायत से नहीं कराया जा सकता है। इसके लिए उच्चस्तरीय अधिकारियों व प्रदेश सरकार को पत्र प्रेषित किया जाएगा।