चंदौली। पार्टी स्थापना के बाद समाजवाद के झंडे को चंदौली में अपनी कड़ी मेहनत व राजनीतिक कौशल से स्थापित करने वाले पूर्व सांसद रामकिशुन यादव व उनके परिवार की राजनीति इस वक्त हासिए पर आ गयी है। बावजूद इसके आज भी इन्हें कुशल राजनीतिक कौशल से हारे हुए रण को जीत में बदलने के महारथी कहा जाता है। इनका सभी दलों के नेताओं में सम्मान है, लेकिन वर्तमान में यह खुद की पार्टी से कटे-कटे नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं पिछले कई सालों से लगातार मिल रही हार ने इसकी साख व शख्सियत पर गहरा प्रभाव डाला है। विधानसभा चुनाव-2022 अब बेदह करीब है और कभी भी चुनावी बिगुल बज सकता है। बावजूद इसके पूर्व सांसद रामकिशुन की सक्रियता उस पैमाने पर नहीं दिख रही, जिसकी लोगों को उम्मीदें थी। वहीं उनकी पार्टी से चुनाव लड़ने के अन्य आकांक्षी व भावी एवं संभावित प्रत्याशी मैदान में अपनी जमीन को मजबूत करने की जद्दोजहद कर रहे हैं, लेकिन पूर्व सांसद रामकिशुन का परिवार उस लिहाज से मौन है। कुल मिलाकर पूर्व प्रमुख बाबूलाल यादव व्यक्तिगत तौर पर अपनी सक्रियता को बनाए हुए दिख रहे हैं। लेकिन पूर्व सांसद का राजनीति रण से दूरी बनाए रखना समाजवादी पार्टी के लिए बड़ी चिंता बन सकती है। क्योंकि हालिया संगठन भी पूर्व सांसद को कुछ खास तवज्जो देता नहीं दिख रहा है, जबकि पूर्व सांसद का राजनीतिक कौशल, दशकों पुराना अनुभव जो उन्हें अपने पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी व पूर्व विधायक गंजी प्रसाद से मिला है उसका लाभ समाजवादी पार्टी के हित में लिया जा सकता है, लेकिन संगठन लगातार इससे परहेज करता नजर आ रहा है। अंदरखाने क्या चल रहा है यह कह पाना बड़ा मुश्किल है, लेकिन पूर्व सांसद रामकिशुन यादव की खामौशी बहुत कुछ बयां कर रही है। अब देखना यह है कि वह कब अपने मौन व मंथन को तोड़कर चंदौली की चुनावी सक्रियता का हिस्सा बनते हैं।
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हार कर भी जीते हुए नजर आते हैं बाबूलाल
चंदौली। लगातार दो विधानसभा चुनाव में हार को झेल रहे पूर्व प्रमुख नियामताबाद बाबूलाल यादव आज भी कहीं से हताश व निराश नहीं नजर आते हैं, बल्कि पहले की तुलना में अब दोगुनी ऊर्जा व ताकत के साथ अपने विधानसभा इलाके के एक-एक बूथ को मजबूत बनाने में पूरी शिद्दत के साथ जुटे हैं। उन्होंने पिछले पांच साल अपनी कमियों पर काम किया और उसे मजबूती में बदलने में काफी हद तक सफल रहे। उनकी सक्रियता को देखकर यह अंदाज लगा पाना मुश्किल है कि वह एक हारे हुए जनप्रतिनिधि हैं या जीत हुए। उन्होंने लोगों से अपने जुड़ाव को और मजबूत बनाया। आज मुगलसराय विधानसभा का कोई भी चट्टी-चौराहा नहीं है, जहां बाबूलाल खड़े हों और उनके जानने-पहचानने वालों समर्थकों की भीड़ उनके इर्द-गिर्द नजर न आए। यह सबकुछ उन्होंने बीते पांच साल के अथक मेहनत से अर्जित किया है। ऐसे में टिकट को लेकर उनकी दावेदारी मजबूत तो है ही साथ ही वह जीत के भी हकदार नजर आ रहे हैं। फिलहाल जीत-हार का फैसला मतदाताओं के मूड पर निर्भर करता है लेकिन उनका व्यक्तित्व व आचरण एक उम्दा जनप्रतिनिधि के मानक पर खरा उतरता नजर आ रहा है।
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…रामकिशुन परिवार को लगातार मिल रही हार
चंदौली। पिछले चुनावों के रिकार्ड को देखा जाय तो पूर्व सांसद रामकिशुन के व्यक्तित्व के लिहाज से यह बिल्कुल भी ठीक नहीं रहा। उनके छोटे भाई बाबूलाल यादव को वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से टिकट मिला। उस समय रामकिशुन तत्कालीन सांसद थे और सपा की सूबे में अच्छी लहर थी। बावजूद इसके बब्बन सिंह चौहान से वह मात खा गए। इसके बाद 2014 में समाजवादी पार्टी की सरकार रहते हुए भी रामकिशुन यादव अपनी सीट को बचाने में नाकाम रहे और उन्हें डा. महेंद्रनाथ पांडेय से हार का सामना करना पड़ा। इस हार के बाद रामकिशुन यादव की साख को गहरा आघात लगा। अभी यह सबकुछ खत्म भी नहीं हुआ था कि जिला पंचायत चुनाव में उनके पुत्र संतोष यादव के जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव लड़ने व जीतने की मंशा को पार्टी ने फलीभूत नहीं होने दिया। संतोष का टिकट कटने से रामकिशुन व उनका परिवार काफी आहत रहा। ऐसे में 2017 में एक बार फिर विधानसभा चुनाव आया और रामकिशुन यादव पार्टी को अपने भरोसे में लेकर अपने भाई बाबूलाल यादव के लिए फिर से टिकट लेने में सफल रहे। चुनाव लड़े और कड़ी मेहनत की, लेकिन उनकी मेहनत व समाजवादी पार्टी का जनाधार दोनों मिलकर बाबूलाल यादव को जीत की दहलीज तक नहीं पहुंचा सके और एक बार फिर बाबूलाल यादव के हिस्से में आ गयी। इसके बाद लोकसभा में चुनाव लड़ने व जितने की आकांक्षा पाने रामकिशुन को पार्टी ने गठबंधन का झटका देकर चंदौली संसदीय सीट अपने सहयोगी दल जनवादी पार्टी के हवाले कर दी। इन तमाम घटनाक्रमों के साथ-साथ पूर्व सांसद रामकिशुन यादव के परिवार व सपा पार्टी के बीच दूरिया बढ़ती गयी। संगठन के सूत्र बताते हैं कि पार्टी व रामकिशुन परिवार के बीच जो खाई बन गयी है वह निरंतर बढ़ती जा रही है। जो संगठन के साथ-साथ रामकिशुन परिवार के लिए ठीक नहीं है। दोनों एक-दूसरे के पूरक है यदि तालमेल का अभाव होगा तो दोनों की खास पर बट्टा लगेगा और राजनीतिक नुकसान दोनों का होना तय है। फिलहाल संगठन व पूर्व सांसद रामकिशुन यादव के अंदर क्या चल रहा है यह बड़े से बड़ा राजनीति का जानकार फिलहाल बता पाने की स्थिति में नहीं है। लेकिन एक बड़ा सवाल जो अब भी कायम है कि क्या रामकिशुन यादव हार के दुर्भाग्य को अबकी बार जीत के सौभाग्य में बदल पाएंगे। यदि उन्हें ऐसा करना है तो संगठन का साथ व सहयोग उनके लिए बहुत जरूरी होगा? इसके लिए जरूरी है कि रामकिशुन यादव व संगठन के बीच तालमेल हो और दोनों एक-दूसरे के साथ मिलकर पूरी शिद्दत व ताकत से चुनाव लड़े और जीत हासिल करें।
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टिकट मिलेगा या कटेगा यह सुनिश्चित नहीं
चंदौली। अबकी बार विधानसभा चुनाव-2022 में रामकिशुन परिवार को टिकट मिलेगा या कटेगा यह सुनिश्चित नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित है कि समाजवादी पार्टी की शीर्ष नेतृत्व रामकिशनु परिवार के राजनैतिक कद व रसूख को नजरअंदाज नहीं कर सकता। ऐसा माना व जाना जाता है कि चंदौली के हर विधानसभा सीट पर रामकिशुन यादव का अपना व्यक्तिगत वोट बैंक है जो किसी की हार को जीत तथा जीत को हार में बदलने की ताकत रखता है। ऐसे में भले ही जिला संगठन से रामकिशुन के समन्वय ठीक ढंग से बैठ नहीं पा रहा हो, लेकिन शीर्ष नेतृत्व उनके राजनीतिक वजूद को नजरअंदाज करके विधानसभा चुनाव की रणनीति पर बिल्कुल भी अमल नहीं करना चाहेगी। क्योंकि ऐसे निर्णयों से समाजवादी पार्टी को ना सिर्फ चंदौली बल्कि पड़ोसी जिला वाराणसी में भी नुकसान की आशंका से इन्कार नहीं किया जा सकता। ऐसा इसलिए क्योंकि चंदौली के साथ-साथ रामकिशुन वाराणसी की राजनीति में अच्छा-खासा हस्तक्षेप रखते हैं और वहां भी इनके समर्थकों की तादाद अच्छी खासी है।