काशी विश्वनाथ कॉरीडोर के लोकर्पण पर जानिए रानी अहिल्याबाई का योगदान
Young Writer, पूर्वांचल डेस्क। यह स्टोरी इंदौर की रानी अहिल्याबाई होल्कर को समर्पित है। जी हां! यह वही अहिल्याबाई हैं जिनका जिक्र बीते रविवार को केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने दीनदयाल नगर केंद्रीय विद्यालय के प्रेक्षागृह के उद्घाटन के दौरान किया था। आज काशी के लिए पावन व ऐतिहासिक क्षण है और ऐसे वक्त में रानी अहिल्याबाई का जिक्र होना अपने-आप में लाजिमी है। इतिहास में दर्ज जानकारी के मुताबिक मुगल शासक औरंगजेब के शासन में इन्होंने काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त करने की कोशिश व मंसूबों पर पानी फेरा। साथ ही पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुके मंदिर को पुनर्निर्माण कराकर पूरी तरह से अस्तित्व में लाने का काम किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज काशी विश्वनाथ कोरिडोर को लोक समर्पित करने आ रहे हैं। ऐसे में रानी अहिल्याबाई के साहस, शौर्य व समर्पण को श्रेय देना लाजिमी है।
आइए जानते हैं रानी अहिल्याबाई जीवन के बारे में
इंदौर की रानी अहिल्याबाई होलकर ने देशभर के अलग-अलग स्थानों पर कई मंदिरों, घाटों का निर्माण कराया है, लेकिन काशी के इतिहास में उनका स्थान अमिट है। उनके योगदान के बिना श्री विश्वनाथ धाम का इतिहास पूरा नहीं होता। यही वजह है कि रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा विश्वनाथ धाम में लगाने का फ़ैसला किया गया है। इतिहास बताता है कि रानी अहिल्याबाई ने न सिर्फ काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया बल्कि बाबा की प्राण प्रतिष्ठा भी पूरे विधि विधान से शास्त्र सम्मत तरीके से करायी। काशी खंड में वर्णित विश्वेश्वर के धाम को पुनर्निर्माण करने में रानी अहिल्याबाई का योगदान अतुलनीय है।
काशी कोरिडोर में स्थापित है अहिल्याबाई प्रतिमा
धार्मिक आस्था के केन्द्र बनकर पूरी तरह से तैयार हो चुके काशी कॉरिडोर में रानी अहिल्याबाई की प्रतिमा स्थापित की जाएगी। इसके साथ ही मंदिर के अस्तित्व को बचाने वे फिर से स्थापित करने के लिए दिए गए योगदान को भी लिखा जाएगा, ताकि विश्वनाथ धाम दर्शन-पूजन करने के लिए आने वाले देश-विदेश के लोग रानी अहित्याबाई के योगदान से रूबरू हो सकें। 13 दिसंबर यानी आज के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को यह सौगात देने वाले है। यह निर्माण बाबा विश्वनाथ के प्रांगण के उस पुनर्निर्माण के करीब 250 साल बाद हो रहा है जब इंदौर की रानी अहिल्याबाई ने विश्वनाथ धाम का पुनर्निर्माण कराया था। इस कोरिडोर से देश के लोगों के लिए आध्यात्मिक ऊर्जा के साथ काशी और आस-पास के क्षेत्रों के लिए धार्मिक पर्यटन और व्यापारिक लाभ के लिए भी महत्वपूर्ण होगा. इससे राष्ट्र की अर्थव्यवस्था को भी बल मिलेगा।
कई मंदिरों का कराया निर्माण कार्य
रानी अहिल्याबाई ने भारत के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक मन्दिरों, धर्मशालाओं और अन्नसत्रों का निर्माण कराया था। कलकत्ता से बनारस तक की सड़क, बनारस में अन्नपूर्णा का मन्दिर , गया में विष्णु मन्दिर उनके बनवाये हुए हैं। इन्होंने घाट बंधवाए, कुओं और बावड़ियों का निर्माण करवाया, मार्ग बनवाए, भूखों के लिए सदाब्रत (अन्नक्षेत्र) खोले, प्यासों के लिए प्याऊ बिठलाईं, मंदिरों में विद्वानों की नियुक्ति शास्त्रों के मनन-चिंतन और प्रवचन हेतु की। उन्होंने अपने समय की हलचल में प्रमुख भाग लिया। रानी अहिल्याबाई ने इसके अलावा काशी, गया, सोमनाथ, अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, द्वारिका, बद्रीनारायण, रामेश्वर, जगन्नाथ पुरी इत्यादि प्रसिद्ध तीर्थस्थानों पर मंदिर बनवाए और धर्म शालाएं खुलवायीं। कहा जाता है कि रानी अहिल्याबाई के स्वप्न में एक बार भगवान शिव आए। वे भगवान शिव की भक्त थीं और इसलिए उन्होंने 1777 में विश्व प्रसिद्ध काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण कराया।
महिला सशक्तीकरण की पक्षधर
भारतीय संस्कृति में महिलाओं को दुर्गा और चण्डी के रूप में दर्शाया गया है। ठीक इसी तरह अहिल्याबाई ने स्त्रियों को उनका उचित स्थान दिया। नारीशक्ति का भरपूर उपयोग किया। उन्होंने यह संदेश दिया कि स्त्री किसी भी स्थिति में पुरुष से कम नहीं है। वे स्वयं भी पति के साथ रणक्षेत्र में जाया करती थीं। पति के देहान्त के बाद भी वे युध्द क्षेत्र में उतरती थीं और सेनाओं का नेतृत्व करती थीं। अहिल्याबाई के गद्दी पर बैठने के पहले शासन का ऐसा नियम था कि यदि किसी महिला का पति मर जाए और उसका पुत्र न हो तो उसकी संपूर्ण संपत्ति राजकोष में जमा कर दी जाती थी, परंतु अहिल्या बाई ने इस क़ानून को बदल दिया और मृतक की विधवा को यह अधिकार दिया कि वह पति द्वारा छोड़ी हुई संपत्ति की वारिस रहेगी और अपनी इच्छानुसार अपने उपयोग में लाए और चाहे तो उसका सुख भोगे या अपनी संपत्ति से जनकल्याण के काम करे। अहिल्या बाई की ख़ास विशेष सेवक एक महिला ही थी। अपने शासनकाल में उन्होंने नदियों पर जो घाट स्नान आदि के लिए बनवाए थे, उनमें महिलाओं के लिए अलग व्यवस्था भी हुआ करती थी। स्त्रियों के मान-सम्मान का बड़ा ध्यान रखा जाता था। लड़कियों को पढ़ाने-लिखाने का जो घरों में थोड़ा-सा चलन था, उसे विस्तार दिया गया। दान-दक्षिणा देने में महिलाओं का वे विशेष ध्यान रखती थीं।
सरकार ने वीरंगना को दिया सम्मान
अहिल्याबाई को एक दार्शनिक रानी के रूप में भी जाना जाता है। अहिल्याबाई एक महान् और धर्मपारायण स्त्री थी। वह हिंदू धर्म को मानने वाली थी और भगवान शिव की बड़ी भक्त थी। इस महान शासिका को श्रद्धांजलि के रूप में इंदौर घरेलू हवाई अडडे् का नाम देवी अहिल्याबाई होल्कर हवाई अड्डा रखा गया। इसी तरह इंदौर विश्वविद्यालय को देवी अहिल्या विश्वविद्यालय नाम दिया गया है। अहिल्याबाई किसी बड़े राज्य की रानी नहीं थीं, लेकिन अपने राज्य काल में उन्होंने जो कुछ किया वह आश्चर्यचकित करने वाला है। वह एक बहादुर योद्धा और कुशल तीरंदाज थीं। उन्होंने कई युद्धों में अपनी सेना का नेतृत्व किया और हाथी पर सवार होकर वीरता के साथ लड़ीं।