Young Writer, इलिया। आजादी के बाद 02 अक्टूबर 1959 को राजस्थान के नागौर जिले में पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ करने वाले देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू होते तो वह ग्राम पंचायतों की दुर्दशा को देख जरूर रो पड़ते। जी हां! उन्हीं पंचायतों की हो रही है जो ग्रामीण इलाकों को विकसित व सशक्त बनाने की परिकल्पना के साथ गठित व क्रियान्वित की गयी। लेकिन इस स्वायत्त संस्था के संचालन में कहीं न कहीं किसी स्तर पर ऐसी चूक हुई कि संस्था के सशक्तीकरण के सपनों को पंख नहीं लग सके। हालांकि सरकारों को पंचायतों को सशक्त बनाने के लिए समय-समय पर कई नवाचार किए। नवीन प्रयोगों से ग्राम पंचायतों के सुदृढ़ होने की आस भी जगी, लेकिन हर बार ग्राम पंचातय के वाशिदों को आपेक्षित बदलाव नजर नहीं आया। आज स्थिति यह है कि देश की सबसे छोटी मगर सशक्त पंचायत का सचिवालय ही दुव्यवस्थाओं की जद में है। कहीं इस पर अवैध अतिक्रमण का साया है तो कहीं यह मरम्मत, रखरखाव व उपेक्षा के कारण अखण्डर में तब्दील हो गयी है।
हाल-फिलहाल यूपी सरकार ने पंचायतों के कामकाज में कम्प्यूटर के बढ़ते हस्तक्षेप को दृष्टिगत रखते हुए पंचायत सहायक कम कम्प्यूटर आपरेटर पदों पर भर्ती किया। भर्ती प्रक्रिया में ही पक्षपात व कतिपय लोगों को अनैतिक ढंग से लाभ देने के आरोप लगे और शिकायतों का क्रम अभी भी बना है। बावजूद इसके जैसे-तैसे पंचायत सहायकों का प्रशिक्षण हुआ और अब उनकी तैनाती की प्रक्रिया को मुकम्मल किया जा रहा है। लेकिन सवाल यह उठता है कि जिन पंचायतों में सचिवालय नहीं है या अस्तित्व खोते जारहे हैं वहां ये कम्प्यूटर आपरेटर कहां बैठेंगे, जिनका कम्प्यूटर कहां स्थापित होगा। इनके कार्यस्थल का चयन पंचायतें कैसे करेंगी। इस तरह के तमाम बुनियादी सवाल है जो आज ग्राम पंचायतों की जनता शासन-प्रशासन से कर रही है। लेकिन इन सवालों के जवाब उन्हें नहीं मिल पाएं। नजीर के तौर पर शहाबगंज ब्लाक क्षेत्र के कुछ ग्राम पंचायतों को ही ले लीजिए। बात करें महड़ौर ग्राम सचिवालय की तो पूरी की पूरी बिल्डिंग जर्जर हो चुकी है, जिसे झाड़-झंखाड़ ने पूरी तरह से अपने आगोश में ले लिया है। साथ ही वहां कब्जे कब्जा व अतिक्रमण करके अरहर की फसल को बो दिया गया है। स्थिति यह है कि वर्तमान में वहां जानवर के बैठ न पाए। ऐसे में पंचायत सहायकों के बैठने की बात भी सोचना बेमानी होगी। वहीं भुड़कुड़ा पंचायत दुर्दशाग्रस्त है, लेकिन यहां की स्थितियों को थोड़े प्रयास से संभाला जा सकता है। इसी तरह कई ग्राम पंचायतें ऐसी है जहां पंचायत भवन पर अवैध कब्जा कायम है। वहीं कई ग्राम पंचायतों में सचिवालयों का अस्तित्व ही हासिए पर चला गया है। पंचायत विभाग के सूत्र बताते हैं कि ग्राम पंचायतों की अगली कार्ययोजना में ग्राम प्रधान के साथ ही पंचायतों के मानदेय आहरित होने की प्रक्रिया प्रारंभ हो गयी है। यह बात दीगर है कि अधिकांश ग्राम पंचायतों में पंचायत सहायकों ने अभी काम भी शुरू नहीं किया है, लेकिन उनके मानदेय के बंदोबस्त की व्यवस्था को प्रक्रिया में ला दिया गया है। अब देखना यह है कि पंचायतों की इस गंभीर पंचायत का निबटारा कब तक और कैसे हो पाता है।
इस बाबत शहाबगंज बीडीओ दिनेश सिंह ने बताया कि अभी इस तरह का कोई मामला में संज्ञान में नहीं है। अगर इस तरह का मामला है तो सोमवार को बैठक कर प्रत्येक गाँव के सचिवों से जानकारी ली जाएगी और जानकारी लेकर के व्यवस्था सुदृढ़ कराया जाएगा।