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Saturday, September 21, 2024

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वेदना के लिये शब्द और शब्दों के लिये बेचैन वेदना का कवि

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Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह की कलम से

केशव शरण को मैं तब से जानता हूँ, जब कुछ जानने की उत्कण्ठा हमारे भीतर जनम रही थी। हमारे भीतर कुछ जनम रहा था और हम एक अनछुये रोमांच में तैरना सीख रहे बच्चे की तरह छिपकोरियाँ खेलने में मगन थे। उस समय हमारे लिये हर दिन त्योहार का दिन था। वे हमारे कुछ खोजने के दिन थे। हम जीवन का अज्ञात खजाना खोज रहे थे। रहस्यों से भरे रास्ते हमारे रास्ते थेे।। रास्तों की लम्बाई हमें मालूम नहीं थी मगर हम अथक उत्साह से भरे थे। सौन्दर्य का सम्मोहन और विरूपता की वितृष्णा इतने अनिवार आकर्षण से हमारे पाँव अपनी ओर खींच रही थी कि कहीं भी विलम पाना हमारे लिये संभव नहीं था। हम अपने रास्ते चल पड़े थे। चल रहे थे। हम सब आस-पास थे। बिल्कुल पास-पास थे। साथ-साथ थे। हमारा साथ होना एक उत्सव की तरह था। हमारा सम्मिलन हमें शक्ति देता था। उत्साह और उमंग भरता था हममें। हम एक-दूसरे की ऊर्जा से स्फूर्त होते थे।
हमारे साथ हमारी पीढ़ी थी। मतलब कि उत्साह और उल्लास की एक पूरी जमात थी। हमारी पीढ़ी साहित्य की दुनियाँ में अपनी उपस्थिति अंकित करने के लिये अपने पाँव घर रही थी। हमारी जमात में दानिश थे, रामप्रकाश कुशवाहा थे, शिवकुमार ‘पराग’ थे, दिनेश कुशवाह थे, राजेन्द्र राजन थे, संजय गौतम थे, पुष्पा अवस्थी थीं, उमाशंकर चतुर्वेदी ‘कंचन’ थे, बद्री ‘विशाल’ थे, हिमांशु उपाध्याय थे, अशोक पाठक थे, अशोक कुमार सिंह थे, अजीत श्रीवास्तव थे और भी बहुत से लोग थे। बी.एच.यू. से लेकर अस्सी और लहुराबीर चौराहे तक शाम से देर रात का साहित्य चर्चा के किसिम-किसिम के विषय छिड़े रहते थे। इसमें अक्सर सुरेन्द्र वाजपेयी भी शामिल रहते। लहुराबीर पर कुमार विजय का होना एकदम सुनिश्चित था। काशी विद्यापीठ के आस-पास इन्दीवर होते ही थे। केशव शरण उस समय कहीं भी अनुपस्थित नहीं होते थे। आज भी उन दिनों की स्मृति हमें रोमांचित करती रहती है। प्रसाद जी की पंक्ति अक्सर याद आती है- वे कुछ दिन कितने सुन्दर थे।
केशव शरण की कविताएँ तब भी मुझे प्रिय थी और आज भी प्रिय हैं। उनकी कविताएँ मुझ अच्छी लगती हैं। उनके लिए मेरी स्मृति में जगह सुनिश्चित है। वे मेरे आत्मीय कवि हैं।
कविताएं क्यों अच्छी लगती है? यह जायज सवाल है। यह पूछ लेना बिल्कुल ही उचित है। मगर यह सवाल मुझे कत्तई पसन्द नहीं है। यह सच है कि हमारे अच्छा लगने के कारण हुआ करते हैं। मगर यह भी सच है कि तमाम कारणों की जाँच-पड़ताल के बाद हमें कुछ अच्छा लगे यह जरूरी नहीं। पहले कोई चीज बिना हमसे पूछे ही हमें अच्छी लग जाती है। पसन्द आ जाती है। फिर बाद में हम उसके कारण भी ढूँढ लेते है। केशव शरण की कविता भी मुझसे बिना पूछे ही अच्छी लग गई थी। अब लग गई तो लग गई। फिर क्या? फिर कुछ नहीं….. फिर बहुत कुछ……।

केशव शरण का सौन्दर्यबोध मुझे आकर्षित करता है। उनका सौन्दर्यबोध बड़ा गहरा भी है और व्यापक भी। उनके सौन्दर्य बोध की जड़ें भाव जगत के गहरे तल से रस खींचकर वस्तु जगत में अपनी छाया का विस्तार करती हैं। उनकी कविता में जो सुन्दर है, वह मनुष्य जीवन के लिये असंदिग्ध रूप में महत्तम है। मूल्यवान है। पेड़, पहाड़-बादल, वर्षा, हरियाली, नदी, झरना, कछार, बाग और मानवीय चेतना में उतरता वसन्त केशव शरण के सौन्दर्य बोध का केन्द्र है। उनका सौन्दर्य बोध इस दृष्टि से मुझे और अधिक अर्थवान लगता है कि वह हमारे सामयिक जीवन में अपनी अनुपस्थिति के दंश को बहुत बेधक बनाकर हमारी चेतना को बेचैन कर देता है। अपने सौन्दर्य बोध के माध्यम से जो नहीं है, उसके लिये बेचैनी उत्पन्न करने की कला केशव की कविता की विलक्षणता प्रमाणित करती हैं।
‘आईने की तरह चमकते पानी में एड़ी हिला रही जाड़े की धूप’ का बिम्ब जब केशव जी अपनी कविता में रचते हैं तो उनका सृजन सामर्थ्य हमें एक साथ कई धरातल पर चमत्कृत कर देता है। संवेदना के धरातल पर यहाँ हमें कवि भावजगत में बहुत गहरे ले जाता है। भावना के सौन्दर्य और रस की मिठास हमें आह्लादित करती है। इसके अतिरिक्त वह हमारे सम्मुख एक ऐसे चाक्षुष चित्र को खड़ा करता है, जो अपनी सजीवता और सरसता में विमोहित कर देता है। यह कविता में मानवीकरण नहीं, मानवीकरण की काव्य विरासत का नया विकास है। भाव को सजीव वस्तु में रूपान्तरित कर देने की कला ही विम्ब विधान की सार्थकता है। केशव शरण की कविता में सार्थक बिम्बों का विनियोग उनकी कविता की महत्ता को स्थापित करता है।
केशव शरण अपनी कायिक बनावट और बुनावट में भी मुकम्मल कवि दिखाई पड़ते हैं। उनकी चितवन और चेष्टाओं में उनके कवि होने की संभावना अपरिचितों को भी आसानी से दिख जाती है। प्रायः वे भाव जगत में इस तरह डूब जाते हैं कि अक्सर वस्तु जगत से उनके सम्बन्ध विच्छिन्न से दिख जाते हैं। वस्तु जगत में उनकी अनुपस्थिति उससे सरोकार हीनता की वाचक नहीं बल्कि भाव जगत से उनकी अनन्य संलग्नता की बोधक बन जाती है। उनकी कविता में भावजगत के सौन्दर्य और राग का वस्तु जगत में अभाव गहरी वेदना का सृजन करता है। इस वेदना को व्यक्त करने के लिये वे बेचैन रहते हैं। केशव शरण वेदना के लिये शब्द और शब्दों के लिए बेचैन वेदना के कवि हैं।

हमारे जीवन में, जीवन के लिये जो महत्तम है, वह क्यों नहीं है? उसके न होने के प्रति हमारी चिन्ता क्यों नहीं है? उसके न होने को लेकर हममें बेचैनी क्यों नहीं है? यह कैसी दारुण विडम्बना है। विडम्बना बोध का यह दारुण दंश केशव शरण की कविता का केन्द्रीय तत्व है। इसी केन्द्रीय तत्व के चारों तरफ सौन्दर्य और प्रेम के माध्यम से वे अपनी कविताओं में एक संवेदनात्मक सृजन का वृत्त बुनते हैं। इस वृत्त में हजार-हजार बांहे आकाश में उठाये पेड़ नाच रहे होते हैं। जंगल में चाँदनी बरस रही होती है। पेड़ वसन्तोत्सव मना रहे होते हैं। इस वृत्त में वसन्तोत्सव मनाते हुये पेड़ों का पूरा जंगल कटने के लिये ठेकेदार के हाथों में जा चुका होता है। कविता के इस वृत्त में केवल पेड़ों का जंगल ही नहीं है, बल्कि अपनी छोटी-छोटी खुशियों की उम्मीद में नाचते बेसुध जनों का वह जंगल भी है, जिसे जनतंत्र कहा जाता है। अपनी समृद्धि और अपने प्रभुत्व को बढ़ाने के लिये राजनीति के ठेकेदार के हाथ में जा चुका कटने के लिये जनतंत्र के जंगल की मूक वेदना भी केशव की कविता में कुछ अलग तरह की ध्वनियों में सुनाई देती है। प्राकृतिक प्रतीकों के माध्यम से सामाजिक जीवन सत्यों को ध्वनित करने का कौशल केशव शरण की कविता की अलग विशिष्टता है।
केशव शरण की काव्य संवेदना का मूलस्रोत प्रेम है। वे प्रेम की संवेदना के कवि हैं। उनके जीवन बोध में मनुष्य और प्रकृति विभाजित इकाई के रूप में नहीं हैं। मनुष्य और प्रकृति के बीच सहज, आत्मीय, और रागपूर्ण सम्बन्ध उनकी कविताओं की अन्तर्वस्तु के रूप में अपनी सुगन्धि फैलाते हैं। अपने काव्यबोध में केशव शरण आदिम आवेगों की आराधना के कवि हैं। सहज, जो अपने आप ही स्वच्छन्द है, उसकी उपासना में कवि की अस्मिता रमती है। बेरोक-टोक जीवन की गरिमा को जीवन में उपलब्ध हो लेना कवि की अभीप्सा है। एक अल्हड़ भोलापन केशव शरण की कविताओं में अलग रंग में दिखाई पड़ता है। जयशंकर प्रसाद का भोला सुहाग इनकी कविताओं में इठलाता हुआ हमारे चित्त को आकर्षित करता है।
केशव शरण की कविताएँ उल्लास और उदासी के ताने-बाने में बनी कविताएँ हैं। उल्लास काम्य है और उदासी प्राप्य है। उल्लास भाव जगत की उपलब्धि है और उदासी वस्तु जगत की स्थिति। भाव जगत और वस्तु जगत के अन्तर्सम्बन्धों की जटिल अभिक्रिया का तनाव संश्लिष्ट रूप में इनकी कविताओं में व्यक्त होने के लिये आकुल मिलता है।
केशव शरण की कविताएँ बहुस्तरीय अर्थ व्यंजना की कविताएँ नहीं हैं। बेहद विरोधी जीवन-स्थितियों की यातना का विक्षोभ उनकी कविताओं में गरजता नहीं है। उनकी कविताओं का शिल्प दूसरी तरह का है। उनकी कविताओं में आक्रोश नहीं है, विषाद है। मानवीय संवेदनाओं के क्षरण के प्रति उनमें गुस्सा नहीं है, ग्लानि है। अपने समय के अपराधी चरित्र के प्रति युयुत्सा नहीं है, क्षोभ हैै। अपने समय की तमाम विरोधी स्थितियों के बेधक आघात को वे अपनी आहत संवेदना के विक्षत स्वरूप के माध्यम से रचते है। व्यापक पीड़ा का करुण संगीत केशव शरण की काव्य ध्वनि में व्याप्त है। बिना किसी घोषित लड़ाई के, बिना किसी लड़ाई में शामिल हुये, अपने गाँव-घर में, अपनी राह में, अपने काम-काज में निरन्तर घायल होने और होते रहने की पीड़ा केशव की कविता में अपने सामयिक छद्म और उसके घातक इरादों के हिंसक कृत्यों को व्यंजित करती है। अपनी संवेदनात्मक अभीप्सा और अपने परिवेश की प्रवृत्तियों के संघातक संघर्ष को वे बड़े काव्यात्मक कौशल से अर्थ-विस्तार देते हैंः-
‘‘ मैं अमावस के दौर का दीपक हूँ
और
तेज हवा के झोंकों से
आजमाइश है मेरी।’’

केशव शरण की संघर्ष चेतना अपने दौर की कविता की संघर्ष चेतना से भिन्न ढंग की है। उनकी संघर्ष चेतना शोर-शराबे, ललकार, धिक्कार से दूर, कुछ अधिक सूक्ष्म धरातल पर, पूरी काव्यात्मक गरिमा में व्यक्त होने के कारण अधिक अर्थवान है।
केशव शरण के लिये कविता वाणी की विदग्धता नहीं है। कथन भंगिम की वक्रता के भी वे कवि नहीं है। वे बेहद सीधी और सादी उक्तियों के कवि हैं। प्रायः इतनी सादी उक्तियों के कवि कि सामान्यतः जहाँ कविता के होने में पाठक को सन्देह खड़ा हो जाय। बिल्कुल ही सामान्य जीवन स्थितियों और प्रसंगों को वे कविता बनाने में खतरनाक ढंग से प्रवृत्त दिखाई पड़ते हैं। कविता को पाने की ललक में वे अपने काव्य कर्म को किसी भी खतरे में डालने में जरा भी नहीं हिचकते। शायद यही कारण है कि केशव शरण जिस-जिस धरातल पर, जिस-जिस रूप में कविता को खड़ा करते हैं, वहाँ बहुत-से लोगों को कविता दिखाई नहीं पड़ती।
केशव शरण का प्रकृति से बड़ा गहरा प्रेम है। वे प्रकृति के अनन्य प्रेमी हैैं। वे वस्तु जगह और जीवन-जगत दोनों की प्रकृति में जहाँ-जहाँ, जिस-जिस रूप में कविता देख पाते हैं, दूसरों के लिये देख पाना संभव नहीं हो पाता। वे जो देखते है, उसका दूसरों का न देख पाना भी उनके लिये वेदना और यातना का कारण बन जाता है। उनकी यह वेदना उनकी कविताओं में मुखर है।
केशव शरण की कविता का शिल्प किसी भी तरह के उलझाव से सर्वथामुक्त है। उनकी कविता हमें यह सोचने में प्रवृत्त करती है कि क्या सहज जीवन-स्थितियों और वृत्तियों में अनिवार्य रूप से कविता व्यक्त है? उत्तर ‘हाँ’ में भी हो सकता है और नहीं में भी। मगर केशव शरण अपनी कविता में ‘हाँ’ के साथ खड़े दिखाई पड़ते हैं। केशव शरण का विलक्षण प्रकृति-राग और मनुष्येतर प्राणि जगत में उनकी संवेदना की व्याप्ति हमारी सामयिक सभ्यता की प्रवृत्ति को प्रश्नांकित करने की भूमिका में अधिक महत्वपूर्ण हो उठती है। उनकी कविताओं का महत्व नागरिक बोध के विकास की चिन्ता को भी कविता के विषय में सम्मिलित करने के कारण अलग दिखाई पड़ता है।
केशव शरण की कविता में व्याप्त और विन्यस्त प्रकृति राग आस्था के भयानक अकाल में भी हमारे मन में प्रकृति के अनुराग के बीज अंकुरित करता है। मानव और प्रकृति के बीच बेहद वितुलित सम्बन्धों के संकट काल में ये कविताएँ हमें आपसी सम्बन्धों के बारे में फिर से सोचने के लिये उत्प्रेरित और उद्बोधित करती हैं। केशव शरण की कविता में हमारे समय की बड़ी चिन्ता समाहित है।
केशव शरण मानवीय सभ्यता के विकास में बाधक बड़ी चिन्ता के कवि हैं। बड़ी चिन्ताओं के साथ होने से रास्ते अपने आप बड़े हो जाते हैं। केशव शरण कविता के बड़े रास्ते के कवि हैं।
अभी तक केशव शरण के चार कविता संग्रह,- ‘तालाब के पानी में लड़की’, ‘जिधर खुला व्योम होता है’, ‘एक उत्तर’, ’आधुनिक ऋचा’ और ‘दूरी मिट गई’ प्रकाश में आ चुके हैं। ‘गजल’ और ‘हाइकू’ में भी उन्होंने अपनी अभिव्यक्ति हिन्दी जगत के सम्मुख उपस्थित की है। इसके अलावा भी केशव जी की प्रभूत कविताएं व्यापक स्तर पर पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। इस संकलन में केशव शरण के चार कविता संग्रह से कविताएँ चुनी गई हैं। यह सच है कि इन कविताओं के चुनाव के पीछे मेरी वैयक्तिक काव्य रूचि जरूर प्रभावी होगी। मगर मैं विनम्र निवेदन करना चाहूंगा कि कविताओं के चुनाव के पीछे दृष्टि को नितान्त वैयक्तिक होने से बचाने की पूरी कोशिश की है। कविता के प्रेमी और पाठक के रूप में मैंने कविताओं का चुनाव करने की पूरी चेष्टा की है। कविता का समूचा मूल्य और महत्व उसके पाठकों के आस्वाद पर ही अवलम्बित होता है। कविता अपने पाठकों के हृदय में उत्पन्न होने वाले तोष में ही हमेशा अस्तित्ववान रहती है। मेरा विश्वास है कि केशव शरण की कविताएँ अपने पाठकों के हृदय में अपना अस्तित्व कायम कर सकने में कृतकार्य होंगी।

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