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Saturday, September 21, 2024

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कविता संग्रह

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Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह की कलम से

(1)
देखते-देखते

देखते-देखते
मौसम बदल जाता है
खुशी गम में
गम खुशी में
बदल जाता है
बदल ही जाता है देखते-देखते
पल में धूप है
पल में छाया है
पल में आया है
फलों से लदा
फूलों से सजा
हरे-हरे पत्तों से गझिनाया एक समय
और
गुजर गया है देखते-देखते
पेड़ से पत्ता-पत्ता झर गया है देखते-देखते।

(2)
पेड़ों का वसन्तोत्सव

हजार-हजार बाहें
आकाश में उठाये
नाच रहे हैं पेड़
बरस रही है चाँदनी
जंगल में
और पेड़
वसन्तोत्सव मना रहे हैं

पेड़
शायद नहीं जानते
चाँदनी की कहावत

इस तरह
अपनी खुशी में
इधर भूले हैं पेड़
और उधर
ठेकेदार के हाथ
जा चुका है जंगल

बरस रही है चाँदनी
जंगल में
और पेड़
वसन्तोत्सव मना रहे हैं।

(3)
हरियाली

खेतों से गुजरता
मिट्टी की नालियों में
आईने की तरह चमकता पानी
जिसमें एड़ी हिला रही है जाड़े की धूप
और बगल में मेड़ पर बैठी चिड़िया
गा रही है चहक-चहककर
चल रही है हवा बहक-बहककर
और दूर-दूर तक लहरा रही है फसल की हरियाली
यह है गाँव देहात की
मासूम सी खुशहाली

और इस खुशहाली में
लगता है सच में
भुला दिया है गाँव ने
दो साल पहले का सूखा
इस साल की बाढ़
पिछले महीने का डाका
खून-खराबा

(4)
बहता पानी

बहता पानी ही
मीठा होता है
साफ होता है
चिकना होता है
बहता पानी ही

बहता पानी ही
ठंडा होता है
बहते पानी में ही
नदी बहती है
बहते पानी में ही
जिंदगी बहती है
बहते पानी में ही
सृष्ठि बहती है
चाँदनी बहती है
बहते पानी में ही

बहता पानी
गंदा नहीं होता
कीचड़ का
फन्दा नहीं होता

बहता पानी
बहते पानी से
हवा में ताजगी है
पाकीजगी है
तीर्थों में
बहते पानी से
क्या चीज
अच्छी है

बहता पानी ही
मंगल होता है
बहता पानी ही
गंगा जल होता है

(5)
प्यार

प्यार
कभी मरता नहीं है
आग
जीवित रहती है
बुझी राख के नीचे दफन
कोई चिंगारी कोई धड़कन
कोई आँसू कोई सपना
पूरी तौर
मरता नहीं है प्यार
आस-पास की हवा जानती है।
किसी दिन
भड़केगी चिंगारी
उड़ेगी राख हवा के संग
जल उठेंगे जिस्म
अँधेरों की तरह

(6)
पेड़ से जीवन है

पेड़ कटेगा तो
पर्वत भी खिसकेगा
मौसम एकतरफा रहेगा
बाढ़ आयेगी इधर
सूखा पड़ेगा उधर

पेड़ कटेगा तो
रेगिस्तान आयेगा आगे
हिन्दुस्तान जायेगा पीछे

पेड़ कटेगा तो
धरती का आंचल फटेगा
उसकी सुन्दरता जायेगी
उसकी आबरू का संकट बढ़ेगा

पेड़ कटेगा तो
चिड़ियों का परिवार बिखरेगा
वातावरण ऐसा बनेगा
आकाश काला पड़ जायेगा
बड़े शहरों के आकाश सा
पेड़ कटेगा तो
चांद दिखेगा उदास सा
पेड़ रहेगा तो
सबसे कोमल स्पर्शों से भरी ठंडी हवा देगा

फल देगा
छाया देगा
हमारे लिए
खुद आबोहवा का जहर पीयेगा

पेड़ रहेगा तो
जीवन रहेगा

(7)
अमावस के दौर का दीपक

मैं अमावस के दौर का दीपक हूँ
और
तेज हवा के झोकों से
आजमाइस है मेरी

किसी पल
उठती है मेरी रोशनी
आकाश चूमते पेड़ों के बराबर
और किसी पल
अंधेरे के बीहड़ में
हो जाती है गुम

हवा समझती है
बुझ गया दीपक
तभी प्रकट होती है मेरी रोशनी
अंधेरे के बीहड में
उठती हुई
आकाश चूमते पेड़ों के बराबर
एक बार फिर

(8)
मेरी कहना है

उसकी शिकायत है
आज का मौसम ठीक नहीं है
और मेरा कहना है
कितनी अच्छी बरसात हुई है

अभी तो
हमारी बहस की
शुरुआत हुई है
और मेरा कहना है
गंगा का पानी
गंदला गया है
उसमें मिलों से निकलने वाला
जहर समा गया है
इस पर भी इस ओर न सोचना विचित्र है
उसका कहना है
गंगा पवित्र है

मेरा कहना है
इस शहर में कितनी अंधेर गर्दी है
वह कहता है
यह कहाँ नहीं है
मेरा कहना है
आदमी का सबसे बड़ा अभिशाप

गरीबी है
उसका कहना है
गरीबों की ही
सबसे बढ़िया जिन्दगी है

मेरा कहना है
आदमी को समय सापेक्ष्य होना चाहिए
उसका कहना है
जहाँ कोई मजबूरी है

हम रोज के दोस्त हैं
लेकिन हमारे विचारों में
कितनी बड़ी दूरी है।

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