18.5 C
New York
Saturday, September 21, 2024

Buy now

भरोसे का भार

- Advertisement -

Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह की कलम से

कहते हैं सौ बार धोखा खाने के बाद भी एक फिर अवसर आने पर जो विश्वास कर लेता है, सहज भाव से, वह सन्त है। संत वह है, जिसका विश्वास करने का स्वभाव है। विश्वास करना जिसने सीखा नहीं है, साधा नहीं है। विश्वास जिसका स्वभाव है, विश्वास जिसके स्वभाव है, विश्वास जिसके स्वभाव में है, संत है। विश्वास जिसकी वृत्ति है, वह साधु है। वह सज्जन है। भारत देश की आत्मा, सन्त आत्मा है।
इस देश की पहचान जिन लोगों के होने से होती है, आज भी उनमें विश्वास करने की उत्कष्ट वृत्ति है। विश्वास के प्रति भारतीय जन मानस में अगाध आस्था है। अडिग निष्ठा है। महत् संकल्प है। अपने भारतीय जाति में यह तितिक्षा का जो अपार बल है, वही उसे महान सिद्ध करता है। हजार तरह के दुःखों को सहते रहने के बावजूद किसी अच्छाई की संभावना के लिए एक और दुख को गले लगा लेने का धैर्य और उत्साह इस देश के साधारण जन की अभ्यर्थना के लिये हमेशा उत्प्रेरित करता रहता है।
स्वतंत्रता के बाद अपने शासन में भारतीय जनता बार-बार धोखा खाती रही है। वह बराबर विश्वास करती रही है। विश्वास टूटता रहा है, हर बार। फिर भी विश्वास की बान तनिक भी कमजोर नहीं हुई है। हमारे प्रधानमंत्री जी के नोटबंदी के फैसले का भारतीय जनता ने जैसा समर्थन दिखाया है, वह उसके विश्वास का अनूठा उदाहरण है। माननीय मोदी जी ने देश की जनता को बताया है कि सरकार के इस फैसले से कालाधन इकट्ठा करने वाले बईमान लोगों के धन्धे पर करारी चोट पड़ेगी। आतंकवाद की कमर टूट जायेगी। नकली नोटों की कालाबाजारी रुक जायेगी। आम जनता को जो ईमानदारी का जीवन जीती है, फायदा होगा।
आम जनता को फायदा हो, न हो इसकी उसे कोई चिन्ता नहीं। आम जनता आज भी यह मानती है कि उसका सबसे बड़ा फायदा भ्रष्टाचार के उन्मूलन में है। आज भी आमजन को बेईमानी बेहद नापसन्द है। वह अपनी पूरी आत्मिक ताकत के साथ बेईमानी के खिलाफ है। वह पूरे मन से बेईमानों के खिलाफ है। बेईमानों के खिलाफ तो नतमस्तक होने के लिए उसे राजनीतिक दल ही विवश करते हैं। भ्रष्ट, बेईमान, अपराधी और अत्याचारी लोगों को टिकट देकर राजनीतिक दल ही जनता को उन्हें अपना प्रतिनिधि चुनने को मजबूर करते हैं। घूसखोर और अन्यायप्रिय अधिकारियों को और अधिक अधिकार देकर सरकार ही जनता को उनका अनुशासन मानने को विवश करती रहती है। जनता तो इन सबके विरोध में अब भी अपनी जगह पर अडिग खड़ी ही है। ईमानदारी के प्रति अपनी पक्षधरता को इस देश की जनता ने नोटबंदी के प्रकरण में अभी सिद्ध करके दिखा दिया है।
अचानक नोटबंदी का फरमान सुनकर जनता सकते में जरूर आ गई। साधारण लोगों ने जो काट-कपट कर थोड़े-बहुत पैसे धर में दबा-छिपाकर गाढ़े वक्त के लिये रखे थे वे प्रायः बड़ी नोटों में ही थे। गृहणियों के गृहकोष में जो कुछ गुप्त धन था, वह भी उसी शक्ल का था, जो अब पाबन्द थी। यह आदेश घर-घर की आर्थिक गोपनीयता का भण्डाफोड़ करने वाला निकला। कालेधन पर कुठाराघात हो न हो यह तो बाद की बात है मगर महिलाओं के ‘प्रीवी कर्स’ पर तो वज्रपात हो ही गया। फिर भी उन्होंने हँसते-मुस्कुराते, झेंपते-लजाते यह आघात सिर-माथे लिया। किसलिये? इसलिये कि यह देश की भलाई के लिये है।
पूरा देश एक सुबह अचानक खालीहाथ होकर भौंचक एक-दूसरे को देखता रह गया। परेशानियों का पहाड़ सामने और पंगु हौसले पस्त। बहरे बाजार और चिल्लाती जरूरतें। दर-दर गिड़गिड़ाती बिमारी की रिरियाहट और आश्वासनों के बन्द दरवाजे। शादी-ब्याह की आपाधापी और खाली जेबों का कुहराम। अजीब हालत। काम की जगहों पर सन्नाटा और बैंकों के आगे अनियंत्रित भीड़। घरों में रुआंसी रसोइयां और सकताये चूल्हे। फिर भी कहीं कोई विरोध नहीं। किसिम-किसिम की आवाजों में विरोध का कोई भी स्वर पूरी तरह से अनुपस्थित। विपक्षी दलों के बयानों और संसद के हंगामे से जनता विचलित न हुई। उकसावे की तमाम कोशिशें निरर्थक सिद्ध हुई। एक अच्छाई के लिये जनता हजार दुख सहने को तैयार है।
धन्य है, इस देश की जनता। इस देश की जनता देश को परीक्षा के हर दौर में देवभूमि साबित कर देती है।
कोई भी ईमानदारी की बात कर दे, जनता उसके पीछे हो लेती है आँख मूदकर। कोई अच्छाई की बात कर दे, जनता खड़ी हो जाती है, उसके साथ, अपना काम छोड़कर। कोई भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष का ऐलान कर दे, जनता उसे उठा लेती है, सिर आंखों पर। कोई देश का सम्मान दुनिया में बढ़ाने का उद्घोष कर दे, जनता उसकी जयनाद से आसमान गूँजा देती है। जनता की आज भी कितनी आस्था है, ईमानदारी के प्रति। बुद्धिजीवी भले यह घोषणा कर दें कि हमारे समय में भ्रष्टाचार सहज स्वीकृत होकर आचार बन गया है, मगर जनता उनके निष्कर्ष को नकार देती है। जनता के मन में देश के प्रति कितन प्रेम है, देश के आत्म सम्मान की कितनी उसे चिन्ता है, वह समय आने पर छाती फाड़कर दिखला देती है।
प्रधानमंत्री के रूप में माननीय मोदी के तात्कालिक तकलीफदेह फैसले का जनता का अपार समर्थन विस्मय में डाल देता है। यह समर्थन हमें कई तथ्यों की तरफ देखने को उन्मुख करता है, शायद हम जिन्हें महत्वपूर्ण नहीं मानते।
जनता के समर्थन का विश्वास, सरकार के जनपक्षीय चरित्र की उसकी प्रतीक्षित अभीप्सा का उद्घोष है। हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार हमारे लिये हो, यह जनमानस की छाती में दबी हुई कितनी गहरी चाह है; इसे महसूसा जा सकता है। लोकतंत्र के मूल आदर्श के प्रति भारतीय जनता की कितनी उत्कष्ट निष्ठा है, उसे देखा जा सकता है।
यह प्रकरण इस बात की तरफ भी ध्यान ले जाता है कि काफी लम्बे अरसे से किसी प्रधानमंत्री ने कोई फैसला ही नहीं लिया। कोई ऐसा फैसला नहीं लिया, सरकारी मशनरी से बाहर जाकर जिससे जनता को लगे कि आमजन से उसका कोई सम्बन्ध है। प्रधानमंत्री के रूप में मोदी जी के फैसले से जनता के मन में अच्छाई की उम्मीद जगी है।
भारत की जनता ने अपना भरोसा अपने प्रधानमंत्री को दिया है। दे दिया है। भरोसे का भार अब उनके ऊपर है। भरोसे भार संभालना अब उनका काम है। इस बारे में सोचना अब उनका दायित्व है। अच्छा घटित हो यह उनकी जिम्मेदारी है।
जनता ‘ब्लैक मनी’ की पाबन्दी पर अपना पक्ष आशातीत ढंग से व्यक्त चुकी है। जनता ‘ब्लैक मैन’ को व्यवस्था से बाहर करने में अपने योगदान का आश्वासन दे रही है। उसका आश्वासन पक्का है। वह अच्छाई के लिये उठाये गये किसी भी असुविधाजनक कदम के साथ सारी कठिनाइयों को हँसते हुये सहते खड़ी है।
‘ब्लैक मैन’ कहाँ है? सबको पता है। उनका सुरक्षित ठिकाना व्यवस्था से बाहर नहीं, व्यवस्था के भीतर ही है। वे व्यवस्था बनाने में ही उसके अंग होकर बने पड़े हैं। वे व्यवस्था को जन विरोधी व्यवस्था बनाने में भिड़े है। जिनका दिल काला है, काला धन जुटाने में लगे हैं। देश के चेहरे पर कालिख पोतने में लगे हैं। समूचे तंत्र को कालातंत्र बनाने में लगे हैं। उनके बाहर होने से ही व्यवस्था साफ-सफेद हो सकती है।
यह बहुत आसान नहीं है। मगर बहुत कठिन भी नहीं है। इस देश की जनता बहुत कुछ नहीं मांग रही है। सदियों से कष्ट सहने की ताकत उसने पूरी-पूरी बना रखी है। अपने देश के किसान ‘कम्पनी प्रोडक्ट’ के मेगामार्ट से पहले देशी उत्पादों के खरीद के ‘मेगा सेन्टर’ मांग रहे हैं। मजदूर प्रतिदिन के काम मांग रहे हैं। बेरोजगार जीने-खाने भर के कमाने के अवसर मांग रहे हैं यह बस कुछ, कुछ अच्छा घटित होने की उम्मीद पर निर्भर है।
इस महान देश की जनता का भरोसा बचा लेना आपके हाथ है। यह बच जाय तो देश बचा रह जायेगा। यह भरोसा बढ़ जाय तो देश जरूर आगे बढ़ जायेगा।

Related Articles

Election - 2024

Latest Articles

You cannot copy content of this page

Verified by MonsterInsights