Young Writer, चंदौली। मतदान को लेकर जिला प्रशासन ने पिछले एक माह से बड़े-बड़े दावे किए। स्वीप कार्यक्रमों पर लाखों रुपये खर्च कर मतदाता जागरूकता लायी। साथ ही 80 वर्ष की अवस्था पार कर चुके वृद्धजनों व दिव्यांगों को घर पर ही पोस्टल बैलेट के जरिए मतदान कराने का दावा किया। साथ ही जागरूकता कार्यक्रमों में निर्वाचन आयोग की नयी पहल के खूब कसीदे पढ़े गए, लेकिन जब इन प्रयासों को मूर्त रूप देने का अवसर आया तो जिलाप्रशासन की तैयारियां अचानक से धड़ाम हो गयीं। नतीजा न तो दिव्यांगजनों को पोस्टल बैलेट मिला और ना ही वृद्धजनों को ऐसे में कोई लाठी के सहारे बूथ तक पहुंचा तो किसी को परिवार के लोगों ने सहारा देकर पोलिंग बूथ तक पहुंचाया।
बात चंदौली की करें तो यहां जिला मुख्यालय पर ही वृद्धजन व दिव्यांगजन पोलिंग बूथ पर सहारे के साथ वोट देने के लिए पहुंचे। भले ही निर्वाचन संबंधित दायित्वों में जगह-जगह चूक रही, लेकिन वृद्ध व दिव्यांगजनों के मतदान को लेकर उत्साह में कहीं कोई कमी नहीं थी, लेकिन यदि इन्हें घर से मतदान की सुविधा होती तो वृद्धजनों को काफी सहूलियत मिलती। जैसा कि निर्वाचन आयोग की ओर से मतदान प्रतिशत बढ़ाने और वृद्ध व दिव्यांगजन मतदाताओं की सुविधा के लिए पहल की गयी थी, लेकिन यह पहल सात मार्च को मतदान तिथि के दिन केवल कागजी साबित होकर रह गयी। तमाम दुश्वारियों के बावजूद दिव्यांगजनों व वृद्धजनों में युवाओं की भांति मतदान को लेकर उत्साह देखने को मिला। नगर के लल्लन चौरसिया 80 वर्ष अपने पुत्र प्रमोद चौरसिया के साथ बूथ पर पहुंचे और वोट डाला। इस बाबत प्रमोद चौरसिया ने बताया कि घर पर मतदान करने संबंधित किसी भी कर्मचारी ने सम्पर्क नहीं किया। उम्मीद थी कि पिताजी को घर पर ही मतदान की सुविधा मिलेगी, लेकिन ऐसा नहीं होने पर एक किलोमीटर दूरी तय करके मतदान करने के लिए उन्हें लाना पड़ा। यह हाल जिला मुख्यालय चंदौली का है तो जनपद के अन्य हिस्सों में वृद्धजनों व दिव्यांगों को पोस्टल बैलेट के जरिए मतदान कराने की क्या स्थिति होगी। इसका सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है। कहीं न कहीं इस अव्यवस्था के लिए जिला प्रशासन व नोडल अफसर की जवाबदेही बनती है।