टिकट के लिए पार्टी कार्यालय की गणेश परिक्रमा कर रहे सभासद व चेयरमैन पद के भावी प्रत्याशी
Young Writer, चंदौली। नेता अब छुट भइया भी नहीं रहे। निकाय चुनाव के वर्तमान परिदृश्य को देखकर आज इस जुमले को लिखना, पढ़ना व कहना पड़ रहा है। जी हां! स्थानीय राजनीति में छोटे राजनेताओं की प्रतिष्ठा व पहचान इस कदर धूमिल हो गयी है कि उन्हें वार्ड सभासद तक के चुनाव को लड़ने और जीतने के लिए दलों के जनाधार का सहारा है। चेयरमैन पद के लिए तो अलग ही मारामारी है। जबकि कुछ वर्षों पहले चेयरमैन व सभासदी के चुनाव को एकल व्यक्तित्व, प्रतिष्ठा व पहचान का चुनाव माना जाता था, लेकिन वर्तमान में लोकल राजनीति में नेताओं की पहचान इस कर खो गई है कि वे अब बिना दल के चुनाव लड़ने तक की सोच अपने अंदर विकसित नहीं कर पा रहे हैं। वर्तमान निकाय चुनाव-2022 इसका जीता जागता उदाहरण है।
चंदौली नगर पंचायत 15 वार्डों वाला निकाय है। जहां नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पिछड़ी जाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। वहीं वार्डों का अपना आरक्षण है। आरक्षण चक्र स्पष्ट होते ही भावी उम्मीदवारों के नाम व चेहरे भी धीरे-धीरे स्पष्ट हुए। इसके साथ ही चुनावी मैदान में अपनी धाक जमाने की बजाय अधिकांशतः भावी उम्मीदवार सत्ता पक्ष का उम्मीदवार बनने की दौड़ में अंधाधुंध भागे जा रहे हैं। हर कोई सत्ता पक्ष के चुनाव चिह्न पर अपनी जीत को सुनिश्चित देख उसे हासिल करने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा है। पार्टी कार्यालय की गणेश परिक्रमा से लगायत वार्ड प्रभारियों तक की ख़ुशामद की जा रही है। यहां तक की लोग वार्ड सभासदी के टिकट के लिए भी पूरी ताकत लगाने की बात करते व कहते हुए सुने जा रहे हैं।
चंदौली नगर निकाय चुनाव के इतिहास में शायद यह पहला अवसर होगा जब चेयरमैन व वार्ड सभासद का चुनाव लड़ रहे दिग्गजों का खुद पर इतना अविश्वास है। स्थिति यह है कि ये अब अपने व्यक्तित्व के बूते चुनाव लड़ने और उसे जीतने की बात तक नहीं सोच पा रहे हैं। ऐसे में यह आमजन को अपनी जीत का भरोसा कैसे दिला पाएंगे? यह बड़ा प्रश्न है। राजनीतिक परिदृश्य में इसे पहचान व व्यक्तित्व का पतन कहा जाता कहीं से भी गलत नहीं होगा। स्थानीय जानकार व पुरनियों की माने तो वर्तमान में चुनाव लड़ने वाले अधिकांश उम्मीदवार अपरिपक्व व गैरराजनीतिक छवि वाले लोग हैं जो राजनीतिक व सत्ता की चमक-दमक देखकर इसमें अपना भविष्य बनाने व अपनी तकदीर को चमकाने आए हैं जिनका न तो खुद का कोई सामाजिक ताना-बाना है और ना ही इनका कोई राजनीतिक सक्रियता और इतिहास रहा है जो इनके अविश्वास का सबसे बड़ा कारण है। अपनी जीत-हार के प्रति इसी अविश्वास व संशय को दूर करने के लिए इन्हें सत्ता के साथ व ताकत की जरूरत है ताकि उनके जनाधार की पतवार से ये अपनी राजनीतिक नाव को पार लगा सके।
सूत्रों से मिले आंकड़े बताते हैं कि सत्तारूढ़ दल भाजपा से चंदौली के चेयरमैन पद का उम्मीदवार बनने के लिए करीब आवेदन प्राप्त हुए हैं। यानी 15 वार्ड वाले चंदौली नगर के प्रत्येक वार्ड के सापेक्ष एक उम्मीदवार ने भाजपा से टिकट के लिए दावेदारी की है। इसी तरह वार्ड सभासद का टिकट पाने वालों का भी रेला भाजपा कार्यालय लगा हुआ, जहां एक-एक वार्ड से तीन से चार की संख्या में उम्मीदवार टिकट की डिमांड पार्टी से करते हुए नजर आ रहे हैं। अन्य दलों से उम्मीदवार दूरी बनाए हुवे है। अब देखना यह है कि किन्हें सत्तारूढ़ दल का साथ और सहयोग मिल पाता है और कौन इसके सहारे अपने चुनावी संघर्ष को जीत में तब्दील कर पाता है।