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Saturday, July 27, 2024

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व्यंग्य: धनिया , पुदीना और कच्चा बादाम

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

एक दिन पीयूष तिवारी जी आये , कुछ अनमने थे , वैसे व्यंगकार अनमना नहीं होता , पर उनको चिढ़ सिनेमा वालों से था , आते ही विफर पड़े , मैंने कहा ” पहले चाय पानी कर लीजिए , फिर बातें होंगी ।
पर वे गुस्से से नथुने फुलाते हुए बोले – भाई साहब , कसम से ई सिनेमा वाले सारे विषयों का सत्यानाश कर रहे हैं ।”
मैंने उनकी इच्छा के विपरीत जल पीने को दिया , साथ में कुछ काजू कतली के टुकड़े भी प्लेट में , जो पत्नी ससुराल से झटक लायी थी ।
खैर इस समय पीयूष जी बार बार आपे से बाहर हो रहे थे , जब मैंने कई बार आग्रह किया तो काजू कतली उठा कर मुँह में डाला ,और उसके साथ शत्रु जैसा व्यवहार करने लगे , मतलब उसे दाँत से ऐसे पीसने की कोशिश कर रहे थे , जैसे कोई सिनेमाई उनके मसूढ़े के नीचे आ गया हो । उन्होंने ने ही एक बार मुझे बताया था , एक हादसे जैसी घटना के बाद वे वेदांती हो गए हैं । काजू कतली खाने के बाद पानी पी पी कर फिर गरियाने लगे । मुझे तसल्ली थी , चलिए अब बात हो सकती है ।मैंने पूछा -” भाई साहब , आखिर ये गुस्सा क्यों है ।”
उन्होंने लच्छेदार गालियों की ऐसी झड़ी लगाई कि अगर वहाँ सचमुच का कोई सिनेमाई होता तो , जूतम पैजार का शिकार हो ही जाता । बड़ा कुरेदने पर पीयूष जी ने बताया कि ” सिनेमा वाले हमारे विषय को चुरा कर गाना बना देते हैं , पहले धनिया फिर पुदीना और अब कच्चा बादाम । सालों ने नाक में दम कर दिया हैं , हम व्यंगकार क्या झख मारेंगे । फुलौरी बिना चटनी वाला गाना तो आप लोग पहले ही सुन चुके हैं । और तो और पान खाये सैया हमार , उसमें भी बनारस का जर्दा भी लिख दिया । इश्क , प्यार , मोहब्बत , जैसे विषय आदमी को अधूरा बनाते हैं , सो इस पर कलम चलाना तौहीन समझता हूँ । सुंदरी , अप्सरा , चाँद , तारे , हवा , पानी जैसी चीजों पर पूर्वजों ने इतना लिख मारा है कि हम लिख कर क्या उखाड़ लेगें , इनको भी मैं अपने विषय सूची से बाहर ही रखता हूँ । अब तो उम्र ही इस संधि वेला पर आकर ऐसी अटक गई है कि न भक्ति भाव वाले विचार आते हैं और न प्यार व्यार वाली फिलिंग । भारतीय दर्शन में हाथ डालते डर लगता है कहीं दाँत की तरह , बाल भी न खो दूँ । गांजा , भांग , शराब जैसे विषयों पर पहले से विश्वास नहीं है । सोचा शाकाहारी आदमी हूँ , शाकाहारी विषय पर ही लिखूंगा । पर साले मटियामेट करने पर उतारूँ हैं । अब आप ही बताइए । गुस्सा न करूं तो क्या करूँ ।”
मैं थोड़ा चिंतित हुआ , फिर बोला -” अच्छा तिवारी जी , आप चिंता न करें , कल कुछ विषय बताता हूँ ।”
वे सहृदय आदमी ठहरे , मुझ पर विश्वास कर मान गए , नमस्कार बन्दगी के बाद , जब वे बाहर निकले , मुझे लगा उनके होंठ कुछ बुदबुदा रहे थे ।शायद कच्चा बादाम वाले को गरिया रहे थे।

जीवन परिचय-
 रामजी प्रसाद " भैरव "
 जन्म -02 जुलाई 1976 
 ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट - चहनियाँ
 जिला - चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास "रक्तबीज के वंशज" को उ.प्र. हिंदी  संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार । 
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में "शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर" है । 
 कविता संग्रह - चुप हो जाओ कबीर
 व्यंग्य संग्रह - रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
             गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन      
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

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