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Sunday, September 8, 2024

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रामजी ‘भैरव’ की रचनाः महिमा चुगलखोरी की

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

चुगलखोरी सीखने की चीज नहीं है । वह नैसर्गिक प्रतिभा है। जिसे अन्य प्रतिभावान की तरह ही उन्हें भी, प्रतिभा सम्पन्न कहकर उद्बोधित किया जा सकता है । जैसे महान गायक, महान लेखक, महान कवि, महान चित्रकार, महान कलाकार, उसी प्रकार विशष्ट गुणों से आच्छादित व्यक्ति को महान चुगलखोर कहकर संबोधित किया जाना न्याय संगत होगा । यदि आप किसी ऐसे व्यक्ति को सम्मान नहीं देते तो उसकी प्रतिभा की अनदेखी करते हैं ।उसके साथ अन्याय करते हैं ।इसके लिए समय आप को कभी माफ नहीं करेगा ।

चुगलखोर हर कोई ऐरा गैरा नहीं नहीं हो सकता । यह जन्मजात गुण है । रक्त में पाए जाने वाले कुछ गुण व्यक्ति को अच्छा चुगलखोर बना सकते हैं । इसके लिए शैक्षिक डिग्री की आवश्यकता नहीं होती । यह बाज़ार में बिकने वाली कोई शै भी नहीं है । जो पैसा देकर खरीद लिया । चुगलखोरी की प्रतिभा निखारने के लिए एड़ी चोटी एक करनी पड़ती है । तब कहीं जाकर व्यक्ति समाज में चुगलखोर का दर्जा पाता है । इसके लिए सालों फुसफुसाहट की भाषा बोलने का अभ्यास जरूरी है । यह हर कोई नहीं कर सकता, इसके लिए लोमड़ी सी चालाकी आवश्यक है । अगर कोई चुगलखोर किसी बात को साफ़ साफ़ कह दिया तो काहे का चुगलखोर, उसके लिए बिना बात की बात तैयार करने का गुण होना आवश्यक है । उसके लिए अपनी ईजाद की हुई भाषा और शब्दावली तैयार करनी पड़ती है । चुगलखोर को लोमड़ी सी चालाकी और कौवे सी चेष्टा रखनी पड़ती है । अच्छे चुगलखोर को चाहिए कि जिसकी चुगलखोरी करनी है , उस पर विशेष ध्यान दे । उसे कनखियों से बार बार अवलोकन करता रहे । चुलगखोर को हल्का स्पर्श और बात बात में हाथ दबाने की कला आनी चाहिए । चुगलखोर को अपनी बात ऐसे कहनी चाहिए जैसे एकदम सत्य बात हो । इसके लिए बात का सत्य होना जरूरी नहीं । बस चुगलखोरी का कड़ा अभ्यास जरूरी है । इस काम के लिए चुगलखोर को समाज का सबसे सज्जन व्यक्ति ढूंढ़ना चाहिए । खतरा कम रहता है । सज्जन व्यक्ति बिना मुँह का होता है । उसे बुरा भी लगता है तो भी वह प्रायः चुप रहता है । वह कुछ नहीं कहता , वह कुढ़ता है तिलमिलाता है, छटपटाता है , पर जाहिर नहीं होने देता । हाँ , अभ्यास हो जाने पर चुगलखोर किसी पर भी नुख्से आजमा सकता है । चुगलखोरी करने वाले व्यक्ति को विशेष रूप से इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि जिससे चुगलखोरी की जा रही है , वह कान का कच्चा हो । इससे बात बनते देर नहीं लगती । कान का कच्चा आदमी बात की पड़ताल नहीं करता,झट विश्वास कर लेता है । चुगलखोर की वास्तविक सफलता यह कि वह फूट डालने में सफल हो जाय । यहाँ तक पति पत्नी में भेद पैदा कर सके तो बड़ी सफलता मानी जायेगी । चुगलखोरी को प्रवृत्ति बना लेना , विशेषज्ञता का द्योतक है ।

चुगलखोरी का सुख धामिक पूण्य कमाने के बराबर है । चुगलखोर को आत्मविश्वास से लबरेज रहना चाहिए । यदि बात फूट जाय, और नौबत पूछा पुछववल की आ जाय तो भी आत्मविश्वास रूपी हथियार का प्रयोग कर आगे बढ़ जाना चाहिए । चुगलखोर को थोड़ा बेहया और निर्लज्ज होना आवश्यक है । यदि बात बिगड़ जाय और जान पर बन आये तो हँस कर टाल देने में कोई हर्ज नहीं, यह हुनर में आता है ।

चुगलखोरी में कमजोर आत्मविश्वास वाले व्यक्ति को हाथ नहीं आजमाना चाहिए । खतरा बहुत होता है । लेने के देने पड़ सकते हैं । चुगलखोर को हमेशा सावधान रहना चाहिए, सावधानी हटी, दुर्घटना घटी । चुगलखोर को अपना पक्ष कमजोर होता देख , अपनी मेधा का परिचय देना चाहिए, उसे तुरंत बातों का रद्दा लगाना शुरू कर देना चाहिए । उसे यह नहीं सोचना चाहिए कि इमारत कितनी बुलन्द होती जा रही है । मित्रों ! अब आप समझ गए होगें कि चुगलखोर क्या चीज होते हैं । वास्तव में चुगलखोरों ने हर युग , हर काल में बड़े बड़े काम किये हैं । यदि मैं सब लिखने बैठूं तो शायद सम्भव न हो पाए , इनके कलाबाजी और पुरुषार्थ के आगे बड़े बड़े पानी भरते हैं । चुगलखोरी को हमेशा निंदा की दृष्टि से देखा जाता रहा है , उसके निष्काम भाव सेवा को नहीं । मनुष्य के इस अज्ञानता पर मुझे रोना आता है , इससे अधिक मैं क्या कहूँ ।

यह जरूरी नहीं कि चुगलखोरी कोई टुटपुजियाँ या बेकार आदमी ही करे। यह काम पढ़ा लिखा उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति भी कर सकता है । बशर्ते वह इस कला का माहिर खिलाड़ी हो । एक मजा हुआ चुगलखोर , अपने पद का फायदा उठाते हुए, यह काम और भी सफलता से कर सकता है । एक बात और समझ में आ रही है कि चुगलखोरी पर अकेले पुरुष वर्चश्व नहीं होना चाहिए, यह काम स्त्री भी बखूबी कर सकती है । क्यों कि उनमें कानाफूसी की परंपरा पुरानी है ।
एक बात मुझे और समझ में नहीं आती कि इतिहासकारों से यह चुगलखोर प्रजाति कैसे बची रह गयी । सदियों से चुगलखोरी का काम हो रहा है, इतने बड़े बड़े किस्से और कहानियां हैं , क्या यह इतिहास में जगह पाने योग्य नहीं हैं। यह बड़े ही अफ़सोस का विषय है। भारत के पूर्ववर्ती राजाओं ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया । और ना ही आज की सरकारों ने कोई ठोस कदम उठाए। अरे भई , प्रजातन्त्र में सबको अधिकार और सम्मान मिलना चाहिए । आखिर इतने बड़े वर्ग की इतनी उपेक्षा क्यों। इन्हें राजकीय संरक्षण और राष्ट्र गौरव का सम्मान मिलना चाहिए । वर्ष में एक बार इस क्षेत्र के महारथियों को भारत रत्न से विभूषित किया जाना चाहिए। पता नहीं दुनियां के अन्य देशों में इनकी प्रजाति पाई जाती होगी या नहीं, लेकिन भारत में अकेले बुते इतनी बड़ी फौज खड़ी करना मामूली बात भी नहीं है। मैं चुगलखोरों और उनकी भावी पीढ़ी को हृदय तल से प्रणाम करते हुए , इनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ।

जीवन परिचय-
 रामजी प्रसाद " भैरव "
 जन्म -02 जुलाई 1976 
 ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट - चहनियाँ
 जिला - चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास "रक्तबीज के वंशज" को उ.प्र. हिंदी  संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार । 
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में "शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर" है । 
 कविता संग्रह - चुप हो जाओ कबीर
 व्यंग्य संग्रह - रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
             गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन      
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

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