Young Writer, कंदवा। श्री रामलीला समिति, अमड़ा की ओर से रामलीला का आयोजन किया गया। इस शुभ अवसर पर धनुष यज्ञ का मंचन किया गया, जिसने रामायण की दिव्यता और उसके नाटकीय पलों को जीवंत कर दिया। मंचन के दौरान राजाजनक ने स्वयंवर की एक कठिन शर्त रखीकृजो योद्धा भगवान शिव के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा देगा, वही देवी सीता के साथ विवाह का अधिकारी होगा।
स्वयंवर में एकत्रित राजा-महाराजाओं में उत्साह और प्रतिस्पर्धा चरम पर थी। रावण और बाणासुर जैसे महाबली योद्धाओं ने आत्मविश्वास से भरे, धनुष उठाने का प्रयास किया। दोनों के बीच वाक युद्ध से सभा में सन्नाटा छा गया, परंतु जब वे धनुष उठाने में असफल रहे, तो दर्शकों की उम्मीदें टूटती सी दिखीं। फिर भी, अन्य वीरों ने बारी-बारी से अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने का प्रयास किया, किंतु वे भी असफल रहे।
तब गुरु विश्वामित्र के आदेश पर भगवान श्रीराम ने पवित्र शिव धनुष को उठाया और अपनी अद्वितीय शक्ति से उसे तोड़ दिया। यह दृश्य इतना सम्मोहक था कि दर्शक आनंदित हो उठे। तत्पश्चात देवी सीता ने भगवान श्रीराम को वरमाला पहनाई, और इसके साथ ही परशुराम के क्रोध और लक्ष्मण के साथ उनके संवाद का मंचन भी हुआ। इस संवाद में परशुराम और लक्ष्मण के अभिनय ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया और वातावरण को रोमांच से भर दिया। रामलीला में हर किरदार का अभिनय दर्शकों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ गया। भगवान श्रीराम की भूमिका में हरिओम पाठक ने अपनी अदाकारी से श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। लक्ष्मण की भूमिका में ऋषभ सिंह का अभिनय जीवंत रहा, जबकि परशुराम की भूमिका को घनश्याम यादव ने अत्यंत प्रभावशाली ढंग से निभाया। राजा जनक के रूप में विशाल सिंह, साधु राजा के रूप में बादल सिंह, दुष्ट राजा के रूप में राहुल सिंह, रावण की भूमिका में अतुल उपाध्याय, सीता के रूप में आयुष, विश्वामित्र के रूप में मृत्युंजय सिंह और शतानंद की भूमिका में विष्णु ने अपनी कला का बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस आयोजन की कुशल निर्देशन और व्यास की भूमिका बलराम पाठक और यशवंत पाठक ने बखूबी निभाई। इस अवसर पर अनिल सिंह, शिवानंद सिंह, शिवकांत सिंह, परमानंद सिंह, नीरज सिंह,अंकित सिंह, आकाश सिंह, पप्पू जायसवाल, रामबचन सिंह, त्रिभुवन सिंह,समर बहादुर सिंह, अभिनंदन पांडेय, विनोद सिंह, अरविंद सिंह, पप्पू खरवार, दिग्विजय सिंह और पवन सिंह उपस्थित रहे।