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Friday, August 22, 2025

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…सरकार बताए! कैसे माइनस में चली जा रही टोकन बुकिंग प्रणाली?

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Young Writer, चंदौली। ऐसा लग रहा है कि प्रदेश सरकार की योजनाएं इन दिनों माइनस में चल रही है। हाल फिलहाल आनलाइन टोकन प्रणाली इसका ज्वलंत उदाहरण है, जो इस वक्त चंदौली जनपद सहित प्रदेश के किसानों के गले की हड्डी बन गयी है। स्थिति इतनी खराब है कि कड़ाके की इस ठंड में किसानों के लाखों रुपये मूल्य की उपज क्रय केंद्रों पर लावारिस हाल में पिछले एक पखवारे से पड़ी। क्योंकि किसानों को उसे बेचने के लिए टोकन नहीं मिल पा रहा है। ऐसा नहीं है कि किसान टोकन के लिए प्रयास नहीं कर रहे हैं, लेकिन उनके काफी जद्दोहद के बाद भी किसान अपनी उपज बेचने के लिए टोकन हासिल करने में नाकाम है। क्योंकि आनलाइन टोकन के लिए किया गया सरकारी बंदोबस्त नाकाफी, लचर और किसानों की संख्या के अनुरूप नहीं है।

इस वक्त सुबह 09ः30 बजे किसान, उनके परिवार के लोग मोबाइल, कम्प्यूटर व लैपटाप पर इस उम्मीद के साथ डंट जाते हैं कि आज उन्हें हर हाल में टोकन मिल ही जाएगा, लेकिन जैसे ही घड़ी की सुई 10 पर पहुंचती है सरकारी वेबसाइट अचानक से धड़ाम हो जाती है। जब तक किसान व उनके परिवार के लोग पुनः वेबसाइट पर पहुंचते है खरीद के लिए उपलब्ध सारे टोकन खत्म हो चुके होते हैं। किसानों द्वारा कई क्रय केंद्रों का आनलाइन अवलोकन कियाजाता है, लेकिन उन्हें तय मात्रा में धान बेचने के लिए कहीं भी टोकन प्राप्त नहीं होता। दिलचस्प यह है कि किसी केंद्र पर खरीद के लिए उपलब्ध मात्रा शून्य होती है तो किसी तिथि पर यह माइनस में चली आती है। मंगलवार की बात करें तो खाद्य विभाग सकलडीहा के क्रय केंद्र पर धान बेचने के लिए टोकन बुक करना चाहा तो उसने पाया कि चार जनवरी को टोकन के लिए उपलब्ध मात्रा -194 थी। उक्त किसान का आरोप है कि आनलाइन टोकन बुक करने में विभाग और साइबर शातिर झोल कर रहे हैं। यदि ऐसी ही स्थिति कायम रही तो किसानों की उपज क्रय केंद्र पर रखे-रखे बर्बाद हो जाएगी। ऐसा नहीं है कि यह नयी बात है। यह सबकुछ पिछले एक सप्ताह से अधिक समय से हो रहा है। बावजूद इसके जिले के अफसर, सरकार में बैठे लोग, जिम्मेदार मंत्री व मुख्यमंत्री कान में तेल डाले बैठे है। एक तरफ जहां जनपद में किसान परेशान है, वहीं भाजपा के लोग मंच सजाकर अपने चुनावी रंग को चटख करने में लगे है। धान कीखरीद नहीं होने से किसान परेशान हैं, वहीं सत्ता पक्ष के लोग उपलब्धियां गिनाकर खुद ही अपनी पीठ थपथपाने में लगे है।

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