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Saturday, July 5, 2025

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किसान पदयात्रा के शंखनाद साथ बही अन्नदाताओं के पीड़ाओं की धारा

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Young Writer, चंदौली। जनपद के असना में गुरुवार को किसान क्रांति का शंखनाद हुआ। इस दौरान किसानों ने पदयात्रा शुरू की तो अन्नदाताओं की पीड़ाओं की धारा पदयात्रा संग चल पड़ी। किसान दुखी है व्यथित है यह किसान पदयात्रा में शामिल किसानों के चेहरे साफ बयां कर रहे थे। मंच समाजवादी था, लेकिन पदयात्रा में राजनीतिक रंगत नगण्य थी। पदयात्रा निकली तो किसान जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से इतर किसान अपनी बात व अपनी मांग पर केंद्रीत थे। पदयात्रा में चलते-चलते हो रहे चिंतन-मंथन व आपसी संवाद में किसान सरकार व सरकारी तंत्र से बेहद खफा नजर आ रहे थे।

किसान पदयात्रा की अगुवाई करते सपा नेता मनोज कुमार सिंह डब्लू।
किसान पदयात्रा की अगुवाई करते सपा नेता मनोज कुमार सिंह डब्लू।

उनका कहना था कि प्राकृतिक आपदा के बावजूद खेती-किसानी को संभाला जा सकता था लेकिन बड़बोली सरकार व बड़बोले अफसरों की शिथिलता, उनकी किसान हितों के प्रति उदासीनता ने सब पर पानी फेर दिया और किसानों के खेतों तक पानी पहुंचाने की सरकारी भारी-भरकम मशीनें बेकार व निष्क्रिय साबित हुई। किसानों के चेहरे पर एक तरफ जहां आक्रोश का ताप था तो दूसरी ओर उनकी पीड़ाएं और वेदनाओं की लहर हिलोरे मार रही थी। जिसे देखकर यह कहा जा सकता है कि पदयात्रा का माहौल बेहद संवेदनशील व नाजुक स्थिति में था। किसानों को देखकर यह लग रहा था कि कब किस मोड़ पर उनकी भावनाओं का ज्वालामुखी फूट पड़े। लेकिन पदयात्रा संतुलित थीं और पदयात्रा के हर चरण में लोकतांत्रिक मर्यादाओं का अनुपालन करती थी। उधर, इसके नेतृत्वकर्ता व कार्यक्रम के कर्ताधर्ता मनोज कुमार सिंह डब्लू जो स्वयं एक किसान परिवार से हैं और खेती किसानी में उनकी आत्मा बसती है। बेहद शांत व स्थित नजर आए। इस दौरान जब भी किसी गांव-गली व चैराहे पर किसानों व ग्रामीणों से मुलाकात और आपसी प्रेम व सम्मान का आदान प्रदान हो रहा था किसानों की पीड़ा झलक उठती। हालांकि हर मोड़ पर पदयात्रा को लेकर चल रहे किसान व सपा नेता मनोज कुमार सिंह डब्लू यह भरोसा देते गए कि सरकार उनकी बात सुनेगी और हरहाल में उसे किसानों की बातों को सुनना पड़ेगा। क्योंकि सरकार का यही तो काम है। वह धरती पुत्रों को ऐसे निराश व अकेला नहीं छोड़ सकती। सरकार ने किसानों को लेकर बड़े-बड़े वादे किए हैं अब ऐसी विषम स्थिति में किसानों को मुआवजा, उनके ट्यूबवे के बिल को माफ कर सरकार को बड़ा दिल करने का मौका है और मौके की यही मांग भी है। यदि सरकार ने इसमें हीलाहवाली की तो एक बार फिर किसान उसका विरोध करेंगे। उन तमाम लोकतांत्रिक अधिकारों के जरिए सरकार तक अपनी बात पहुंचाने का प्रयास करेंगे, जो अधिकार उन्हें संविधान देता है।

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