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Monday, July 7, 2025

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गंगा कटानः आखिर कब रुकेगी कृषि भूमि की जलसमाधि

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किसान बोले, मजबूत राजनीति इच्छा शक्ति व अच्छे प्रोजेक्ट की जरूरत

Young Writer, धानापुर। गंगा कटान से कृषि भूमि का क्षरण जारी है। बरसात में गंगा की लहरे भले ही जमीन के टुकड़े को काटकर अपने साथ ले जाती है, लेकिन लहरों का यह टकराव जमीन पर होकर किसानों के सीने को छलनी कर जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि नदी का पानी किसी मामूली वस्तु को नहीं, बल्कि सोना उगाने वाली जमीन को अपने साथ बहा ले जाता है जो अपनी पीछे पीड़ा, दर्द और आर्थिक दुश्वारियां छोड़ जाता है। 1973 से अब तक गंगा कटान अनवरत जारी है, जो कृषि क्षेत्र के दायरे में एक किलोमीटर अंदर घुस चुकी है जिससे हजार से दो हजार एकड़ कृषि भूमि के कटान का अनुमान है और इस आघात को किसान झेलना व बर्दाश्त करता आया है। फिलहाल इसे लेकर कोई प्लान आफ एक्शन किसी के पास नहीं बेबस किसानों संग अकूत संसाधन व ताकत से लबरेस शासन-प्रशासन भी मूकदर्शन बना हुआ है, जो किसानों की पीड़ाओं को आक्रोश में बदल रहा है।

धानापुर में लोगों के आशियाने तक पहुंचा गंगा कटान का मुहाना।

विधानसभा चुनाव आते ही एक बार फिर गंगा कटान का जिन्न बोलत से बाहर निकल आया है। एक तरफ गंगा कटान को लेकर आरोप-प्रत्यारोप व वादे-इरादे हो रहे हैं। वहीं दूसरी ओर किसान गंगा कटान से गायब होती कीमती कृषि भूमि की चिंताओं में डूबा है। क्योंकि उन्हें अपनी बची-खुची कृषि भूमि को बचाना है यदि ऐसा नहीं हुआ तो वे भी भूमि हो जाएं। क्षेत्रीय किसान व बुढ़ेपुर निवासी धानापुर विकास मंच के गोविंद उपाध्याय गंगा कटान से पीड़ित, प्रभावित और आहत हैं। यह अकेले ऐसे किसान नहीं है, बल्कि इन जैसे हजारों किसान इस पीड़ा से प्रभावित हैं। गोविंद उपाध्याय की माने तो 1973 में जिस स्थान पर गंगा में स्नान करते थे अब गंगा वहां से एक किलोमीटर के दायरे में कृषि क्षेत्र को काट चुकी है। उनके मुताबिक फिलहाल सैदपुर घाट से गंगा पूरब की ओर बढ़ने पर सर्वाधिक कटान फुलवरिया से आगे सहेपुर गांव से शुरू हुई रामपुर दीयां में हुआ। गंगा के तटीय इलाके बुढ़ेपुर, हिंगुतर, प्रसहटा, दीयां, रायपुर में अर्द्धचन्द्राकार कटान हुआ। रायपुर में 1973 नगवा पम्प कैनाल में स्थापित हुआ। इस पम्प को चलाने के लिए अवैज्ञानिक तरीके से बंडाल बनाए गए, जिसका नतीजा यह रहा कि कैनाल ने जितनी कृषि भूमि को सिंचित किया, उसके सापेक्ष कई गुना ज्यादा कृृषि भूमि गंगा कटान के कारण क्षरण होकर नदी में समा गया। उसका नतीजा यह हुआ कि बहुत सारे किसान भूमिहीन हो गए। आज भी स्थिति यह है कि नगवा पम्प कैनाल चलाने के लिए नदी को काटकर पानी वहां पहुंचाना पड़ता है। कहा कि बुढ़ेपुर-नौघरा में एक तीन किलोमीटर लम्बा टापू बन गया है। यदि बालू के इस टीले को बाढ़ के समय काट कर गंगा की धारा को मध्य में परिवर्तित कर दिया जाए तो अगले 25 वर्ष में कटान का इलाका भर जाएगा और कटान से मुक्ति मिल जाएगी।

धानापुर क्षेत्र में गंगा कटान का दृश्य। फाइल फोटो।

मजदूर इच्छा शक्ति व अच्छे प्रोजेक्ट की दरकार
धानापुर।
धानापुर इलाके में दशकों से कायम गंगा कटान को समाप्त करने के लिए मजबूत राजनीतिक इच्छा के साथ ही एक उम्दा प्रोजेक्ट की जरूरत है, जो किसानों के सुझावों पर आधारित हों। क्योंकि कटान का दंश झेल रहे किसान ही इसके समाधान के तरीके सुझा सकते हैं, जिन्हें प्रशासनिक व तकनीकी जामा पहनाकर एक अच्छे प्रोजेक्ट की शक्ल दी जा सकती है। किसानों के मुताबिक दीयां से लेकर नरौली घाट तक बोल्डर व जाली से बांध दिया जाय तो यह प्रयास कटान की धार पर मजबूत वार होगा। साथ ही वाराणसी के चौकाघाट पर हुए नदी सुंदरीकरण जैसे कार्य को धानापुर में भी दोहराया जाना बेहद जरूरी है, जो कीमती कृषि भूमि की जल समाप्ति से बचा सकेगा। ऐसी हुआ तो नगवां से गुरैनी या कवलपुरा तक चला आ रहा जबरदस्त गंगा कटान रूकेगा। साथ ही नौघरा गांव अस्तित्व बचाया जा सकता है लेकिन इसके लिए वक्त बिल्कुल नहीं है।
इनसेट—–
मसाले की खेती वाली भूमि ने ली जलसमाधि
धानापुर।
एक वक्त था जब धानापुर में गंगा का तटीय इलाके की फिजा मसालों की खुशबू गमका करती थी, लेकिन गंगा कटान ने कृषि भूमि में ऐसा अतिक्रमण किया कि धीरे-धीरे मसालों की सुगंध फिजा से गायब हो गयी। किसानों के मुताबि वर्ष 1973 से लगायत अब तक दीयां से रायपुर के बीच हजार से दो हजार कृषि भूमि कट गयी। जिस पर आजवाइन, जीरा, मेथी, मंगरैल आदि मसालों की खेती होती थी। यह इलाका अरहर, चना व मसाले की खेती के लिए विख्यात था। तटीय इलाके में मल्लाह मसालों की खेती करते थे उनकी घर की औरतें खांची-डलिया में मसाले बेचकर अपने परिवार की आजीविका चलाते थे। साथ ही गंगा तट किनारे बोरो धान उगाए जाते थे, जो अब नहीं होता। पहले कृषि उत्पादन का जो रिकार्ड स्तर था वह कभी उस स्तर का उत्पादन नहीं हो पाया। वहीं किसानों की माने तो कटान के कारण गन्ने की खेती भी नाम मात्र रह गयी है।

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