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Wednesday, February 5, 2025

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निचली पंचायत से यूपी के शीर्ष सदन तक पहुंचे ‘प्रभुनारायण’ सिंह यादव

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जनविरोधी कार्य करने वालों के समक्ष चट्टान की तरह खड़े नजर आते हैं सकलडीहा विधायक

चंदौली। समाजवाद की बात हो और सकलडीहा विधायक प्रभुनारायण सिंह यादव का नाम न लिया जाय, यह हो ही नहीं सकता है। यह वही प्रभुनारायण है जो सबसे छोटी पंचायत यानी ग्राम पंचायत से सूबे की सबसे बड़े सदन विधानसभा तक सफर तय किया है। मतलब साफ है कि इन्हें गांव की जमीनी राजनीति से लगायत प्रदेश के शीर्ष राजनीतिक का माहिर व महारथी कहा जा सकता है। पार्टी में इनके व दावे की मजबूती को इस बात से समझा जा सकता है कि समाजवादी पार्टी के वर्ष 1992 में गठन के उपरांत 1996 से पार्टी टिकट से चुनाव लड़ते आ रहे है। इस दरम्यान उन्होंने हार के दर्द को भी सहा, लेकिन जनता की सेवा व समर्पण में कमी नहीं आने दी। तमाम चुनौतियों व संघर्ष के बावजूद उनके जनकल्याण का जज्बा अपने रूरज रहा है।


पिछली सपा सरकार की बात करें तो उन्होंने वर्ष 2012 से 2017 तक ऐतिहासिक काम किया। जनता की मांग को प्राथमिकता दी और उसे शासन-प्रशासन के समक्ष पूरी मजबूती के साथ रखकर पूरा कराया। लम्बे समय से लंबित चले आ रहे बलुआ पक्का पुल के निर्माण में इनकी अहम भूमिका रही, लेकिन दुर्भाग्य ही रहा कि समाजवादी पार्टी की सरकार में उसका उद्घाटन कराने से चूक गए। बावजूद इसके उन्होंने सैदपुर पक्के पुल को निर्माण के साथ-साथ उसे अपनी ही सरकार में क्षेत्रीय जनता को समर्पित कराने में जी-जान लगा दी। इसके अलावा उन्हें सकलडीहा इलाके में विकास के लिए इबारत लिखी, जिसे कुछ खास लोग ही जान पाए। हां! इतना जरूर है कि आज प्रभु नारायण सिंह यादव अपने इलाके के एक-एक गांव, गली व मोहल्ले में अपनी पकड़ को सशक्त बनाए हुए हैं जिस अंदाज से वजह जनविरोधी कार्य करने वाले शासन तंत्र के खिलाफ चट्टान की तरह खड़े नजर आते हैं उनका इसी व्यक्तित्व को जनता ने पसंद किया। उन्होंने ऐसे दौर पर अपने तत्कालीन विधानसभा धानापुर में विधायिकी की, जब वहां संसाधनों का अभाव व अपराध का बड़ा प्रभाव था। बावजूद इसके वह पूरी दृढ़ता के साथ डटे रहे और जनकल्याण के कारवां को आगे बढ़ाते गए। वह अपने इलाके की जनता के सेवा के प्रति आज भी समर्पित नजर आते है। इसके अलावा समाजवादी पार्टी में उनकी अपनी मजबूत पैठ व पकड़ है। अपने इलाके में संगठन को सक्रिय बनाने में वह कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। आज भी वह सेक्टर व बूथ स्वयं चौपाल लगाते हुए नजर आ रहे हैं। मामला चाहे यूथ को बूथ पर मुस्तैद करने का हो या फिर बूथ पर वोट बढ़ाने का। संगठन से मिली हर जिम्मेदारी को एक बड़े नेता की बजाय एक आम कार्यकर्ता की तरह पूरा करते हैं ताकि समाजवाद व सपा के झंडे की बुलंदी पर किसी तरह की आंच न आने पाए।


शुरुआत से ही समाजवादी चेहरा रहे प्रभुनारायण सिंह यादव
चंदौली। सकलडीहा विधायक प्रभुनारायण सिंह का राजनीतिक सफर शानदार होने के साथ-साथ चुनौतियों से भरा रहा। वह पहली बार वर्ष 1989 में अपनी लोकप्रियता के बल पर अपने पैतृक गांव कैलावर से निर्विरोध ग्राम प्रधान चुने गए। यह अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि रही और उसी साल उन्होंने अपनी ग्राम पंचायत से चहनियां जिला पंचायत सदस्य बने। उस दौर में चहनियां ब्लाक में जिला पंचायत की मात्र एक सीट हुआ करती थी। इस तरह उन्होंने पूरे चहनियां ब्लाक का नेतृत्व संभाला और विकास को आगे बढ़ाते गए। उस वक्त जिला पंचायत का चयन ग्राम प्रधानों द्वारा किया जाता था। कुर्सी के इस खेल में उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी सत्य नारायण सिंह को मात दी और अपने राजनीतिक सफर को आगे बढ़ाया। इसके बाद 1995 उन्होंने जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा और बसपा उम्मीदवार रामअवध चौहान को करीब 1250 वोट से शिकस्त देकर विजय हासिल किया। 1996 में उनके राजनीतिक जीवन में बड़ा बदलाव आया। समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उन्हें पार्टी का चेहरा बनाया और वे धानापुर विधानसभा से चुनाव लड़े। अपने शानदार राजनीतिक कौशल व लोकप्रियता के बूते उन्होंने अपने शुरुआती दिनों अस्तित्व तलाश रही सपा को जीत के रूप में बड़ा तोहफा देने का काम किया। उस वक्त उन्होंने बसपा के ही ज्ञानेंद्र कुशवाहा को करीब 13900 वोट से शिकस्त दी। इनके बाद उन्होंने कभी राजनीति में पीछे मुड़कर नहीं देखा और आगे बढ़ते गए। अगले विधानसभा चुनाव यानी 2002 में एक बार फिर सपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया। अबकी बार उनके साथ बसपा ने एक ऐसे उम्मीदवार को मैदान में उतारा, जिसे हरा पाना उन दिनों में भी काफी मुश्किल था। बावजूद इसके प्रभु नारायण ने अपनी लोकप्रियता के बल पर बंदूक के आतंक व पैसे की बाढ़ की नदी पार कर जीत हासिल की। यह लड़ाई बेहद दिलचस्प थी और जब तक मतगणना में धानापुर विधानसभा का अंतिम वोट गिना जाता, तब तक लोगों की सांसे थमी रही। इस राजनीतिक घमासान में प्रभुनारायण सिंह यादव ने अपनी प्रतिद्वंदी सुशील सिंह को 26 वोट से शिकस्त देकर लगातार दूसरी बार विधायक बने। हालांकि इसके बाद उन्हें 2007 में धानापुर से हार का सामना करना पड़ा। वहीं 2012 में परिसीमन बदलने के बाद सकलडीहा से चुनाव लड़ते हुए प्रभुनारायण सिंह यादव अपने पुराने राजनीतिक प्रतिद्वंदी सुशील सिंह से एक बार फिर हार गए, लेकिन सरकार बनने की खुशी में सकलडीहा विधायक ने अपने व्यक्ति हार को हताशा में बदलने नहीं दिया। बल्कि वे दोगुने उत्साह व ऊर्जा के साथ पूरे पांच साल जनता के बीच बिताए। इसी का नतीजा रहा कि आगामी विधानसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद वह जनपद चंदौली से एकलौते सपा विधायक बनने में सफल रहे। यह जीत कई मायनों में इसलिए बड़ी थी क्योंकि जब पूर्वांचल के वाराणसी‚ भदोही‚ मीरजापुर व सोनभद्र में सपा का खाता नहीं खुल पाता तो ऐसी स्थिति में 14 हजार से अधिक वोट पाकर जीत दर्ज करके इन्होंने समाजवादी पार्टी की साख बचाई।

सकलडीहा विधायक का दावा….

सपा सरकार में सम्पूर्ण जनपद का होगा विकास
चंदौली। सपा विधायक प्रभुनारायण सिंह यादव चौथी बार विधायक बनने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। उनका लक्ष्य आकांक्षी जनपद चंदौली को विकास सं संतृप्त करने की है। उनका कहना है कि यदि सपा सरकार में वह जीतकर विधायक बनते हैं तो न केवल सकलडीहा विधानसभा, बल्कि समूचे चंदौली जनपद का विकास होगा। जिन आवश्यक ढांचे की आवश्यकता चंदौली जनपद को है उसे सरकार से चंदौली तक खींच लाने का काम होगा। किसी भी इलाके के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। विकास व जनकल्याण के कामकाज में किसी तरह की सीमा नहीं तय की जाएगी। बताया कि आज जिस तरह की राजनीति हो रही है वह दुर्भाग्यपूर्ण है इससे लोकतंत्र को गहरा आघात लगा है। कतिपय राजनेता चुनाव जीतने व कुर्सी हथियाने के लिए किसी भी स्तर तक चले आ रहे है। जनता को ऐसे नेताओं से सतर्क रहने की जरूरत है जो जनप्रतिनिधि होने का मुखौटा लगाए चुनाव में उनके बीच चले आते हैं।

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