Young Writer, चंदौली। जिस व्यक्तित्व के नाम में ‘सत्य’ भी हो और ‘प्रकाश’ भी। ऐसे व्यक्तित्व की जीवनी का ओज व उसका सार कोई भी समझ सकता है। जी हां! यह नाम उसी महान विभूति का है जिसे चंदौली व काशी का एक राजनीतिक चेहरा सत्य प्रकाश सोनकर के नाम से जानता और पहचानता है, जो महामना मदन मोहन मालवीय की बगिया में सशक्त व शानदार विद्यार्थी की तरह पुष्पित व पल्लवित हुए और उसी पावन प्रांगण से छात्र राजनीति में प्रवेश किया। राजनीति में उनकी एंट्री शानदार रही और पहले ही प्रयास में उन्होंने जीत के साथ बीएचयू के छात्र राजनीति में कई रिकार्ड भी स्थापित किए। इसके बाद वह चौधरी चरण सिंह और बाद में चलकर तत्कालिन सपा प्रमुख रहे मुलायम सिंह यादव के सानिध्य में अपने राजनीतिक जीवन को प्रौढ़ बनाया और जनता के दिलों में अपनी खास जगह बनाने में सफल रहे।
उन्होंने स्वच्छ राजनीति को अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बनाया और हार-जीत के उतार चढ़ाव के बीच अपने वादों व इरादों पर पूरी तरह से अडिग रहे। उन्होंने अपने वसूलों से कभी समझौता नहीं किया और विषम हालात में भी समस्याओं के समक्ष चट्टान की तरह डंटे रहे। काशी में जन्म के साथ-साथ शिक्षा-दीक्षा ली। बावजूद इसके उनकी कर्मस्थली सदैव चकिया रही और उन्होंने अपना व्यक्तिगत व राजनीतिक जीवन चकिया विधानसभा की आवाम को समर्पित किया और अंततः 17 दिसंबर 2011 को समाजसेवा करते-करते इस दुनिया को अलविदा कह गए। उनके जाने का गम आज कई लोगों के मन को उदास और आंखों को नम कर जाता है।
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जीत-हार के रोमांच से भरा है पूरा जीवन
चंदौली। चकिया के पूर्व विधायक सत्य प्रकाश सोनकर के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डाले तो उन्होंने बीएचयू से बीटेक व एमटेक की पढ़ाई पूरी की। इस दरम्यान उन्होंने वर्ष 1984 में बीएचयू छात्र संघ उपाध्यक्ष का चुनाव लड़ा और शानदार मतों से विजयी हुए। अपनी जीत के साथ ही उन्होंने बीएचयू में किसी दलित-पिछड़े प्रत्याशी की पहली जीत का रिकार्ड भी स्थापित किया। इसके बाद उन्होंने राजनीति में अपने पांव जमाने शुरू किए। चौधरी चरण सिंह की मजदूर किसान पार्टी से टिकट पाकर वर्ष 1985 में चकिया विधानसभा से चुनाव लड़े और हार गए। इसके बाद 1989 में जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े और 40 हजा वोटों से जीत दर्ज की। इसके बाद 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना हुई, तब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने सत्यप्रकाश सोनकर के राजनीतिक कौशल को देखते हुए उन्हें सपा यूथ फ्रंटल का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। वह सपा के यूथ फ्रंटल का पहला प्रदेश अध्यक्ष बनने का गौरव अर्जित करने में सफल रहे। वर्ष 1993 में सपा से उन्हें चकिया सीट पर प्रतिनिधित्व का मौका मिला, लेकिन वह बीजेपी उम्मीवार से मात्र 2100 मतों से पीछे रह गए। वर्ष 1996 में उन्हें सपा ने फिर से टिकट दिया और अबकी बार बसपा उम्मीदवार नंदलाल को 19 हजार मतों से मात देकर एक बार फिर विधानसभा पहुंचे। वर्ष 2002 में भाजपा प्रत्याशी शिवतपस्या से उन्हें दो हजार मत से मात खानी पड़ी। वहीं 2007 में बसपा उम्मीदवार जितेंद्र कुमार ने उन्हें शिकस्त दी। बीमारी के बाद वह अचानक से सक्रिय राजनीति से पृथक हो गए और अंततः उन्होंने अपना नस्वर शरीर त्याग दिया।
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अपने वादों व इरादों के पक्के थे सत्य प्रकाश
चंदौली। चकिया के पूर्व विधायक सत्य प्रकाश सोनकर के बारे में कहा जाता है कि वह अपने वादों व इरादों के पक्के थे। उन्होंने जनता से जो भी वादों किए उसे पूरा किया वह राजनीतिक लाभ-हानि की परवाह किए बगैर जनसेवा के भाव से राजनीति की और लोगों के दिलों पर राज किया। उन्होंने जनता को किए वादों को निभाते हुए मंगरौर पुल को टोल फ्री कराया। इस तरह पुल के टोल का भार जनता की जेब न पड़कर सरकारी खजाने पर पड़ा। फिर भी सपा सरकार ने सत्य प्रकाश सोनकर के वादों को महत्व दिया। ऐसे न जाने कितने अनगिनत कार्य सत्य प्रकाश सोनकर ने अपने जीवन में किए, जिससे लोगों को सहूलियत व सुविधाएं मिलीं।
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दलित-पिछड़ों के उत्थान के हिमायती थे सत्य प्रकाश
चंदौली। सत्य प्रकाश सोनकर दलितों व पिछड़ों के सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक नजरिए से उत्थान के पक्षधर थे। उनका मानना था कि बिना शिक्षित व संगठित हुए समाज की मुख्य धारा में जगह बना पाना दलित समाज के लिए मुमकिन नहीं। लिहाजा वह समाज की शिक्षित बनाने के लिए अलग जगाते रहे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि चकिया के विकास में अपना सर्वसव झोंक दिया। उनके बारे में लोग आज भी चर्चाओं के दौरान यह कहते हुए सुने जाते हैं कि वह सत्य व निष्ठा के प्रतिबिम्ब रहे। ऐसे नेता सदियों में मिलते हैं जो जाते-जाते सबको रुला जाते हैं। आज उनके कार्य व जनता के प्रति उनके लगाव का ही परिणाम है कि लोग पूरी शिद्दत व आस्था के साथ सत्य प्रकाश सोनकर को याद करते हैं।