सपा सूत्रों की माने तो इस वक्त पार्टी को एक मंच और मजबूत रणनीति की जरूरत
Young Writer, चंदौली। सपा के पास वृहद संगठन का बल है और युवा साथियों का जोर भी। इसके अलावा समाजवादी के पास कुछ ऐसी राजनीति धरोहरें भी हैं जो पार्टी के वजूद को कायम रखे हुए हैं। बावजूद इसके आज समाजवादी पार्टी संकट के दौर से गुजर रही है। ऐसा इसलिए क्योंकि उसके अंदर बिखराव व विघटन है जैसा कि आज चंदौली के राजनीतिक विशेष जान व समझ रहे हैं। इन राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो समाजवादी पार्टी को एक मजबूत नेतृत्व की जरूरत है जो युवा शक्ति के प्रवाह को बेकाबू होने से रोके। साथ ही अपने लम्बे राजनीतिक अनुभव से विपक्षी राजनीति दलों को सधे हुए अंदाज में संतुलित पलटवार करने की सूझ-बूझ व समझ रखता हो। ऐसा राजनीतिक व्यक्तित्व ही सपाद को इस संकट से उबरकर विधानसभा चुनाव की चुनौती के लिए पार्टी कर सकता है।
समाजवादी पार्टी के लिए जब भी इस तरह की बातें होंगी तो पार्टी के सशक्त व पुराने नेता रहे रामकिशुन का नाम लिया जाएगा। क्योंकि उन्होंने अपने संघर्ष के लहू से पार्टी को सींचा। उन्होंने पार्टी का झंडा व डंडा उस वक्त उठाया, जब समाजवादी पार्टी पहचान की मोहताज थी। उन्होंने सपा को वाराणसी, चंदौली समेत पूर्वांचल में एक मजबूत पहचान दी। आज वही पहचान चंदौली में संकट के दौर से गुजर रही है। ऐसे में सपा के पुराने सिरमौर रामकिशुन को आगे आकर अपना नेतृत्व पार्टी से साझा करें। सबको व सबकुछ अपने नियंत्रण में लें और समाजवादी पार्टी को तत्कालीन संकट से उबारें, ताकि जो भी सपा के नेता व कार्यकर्ता पुलिसिया कार्यवाही से हाशिए पर चल रहे हैं वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करें और वह राजनीति वजूद भी कायम रहे। यह तभी हो सकता है जब रामकिशुन जैसा दिग्गज समाजवादी नेता पार्टी के लिए, पार्टी हित में आगे आए और एक बार फिर यह संदेश दे कि आज भी असल में समाजवादी पार्टी का चेहरा व चरित्र दोनों रामकिशुन का ही है। दायित्वों का बोझ आज बूढ़े हो चुके कंधों पर ही टिकी है, जिसकी बुनियाद स्वतंत्रता संग्राम सेनान स्वर्गीय गंजी प्रसाद यादव मजबूत कर गए है, जिसे डिगा पाना किसी भी राजनीतिक दल अथवा पुलिस-प्रशासन के बूते की बात नहीं है। पार्टी सूत्रों की माने तो रामकिशुन ही ऐसा व्यक्तित्व हैं जिनके नेतृत्व को पुराने समाजवादी साथियों के साथ युवा सपाई कभी नकार नहीं सकते। पार्टी सूत्र की बातों पर यकीन करें तो कुछ अतिमहत्वकांक्षी नेताओं-कार्यकर्ताओं की हड़बड़ाहट और नेतृत्व के विपरीत जाकर किए गए कुछ कृत्यों से आज पार्टी व पार्टी के लोग ऐसे संकट को झेल रहे हैं। पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष बलिराम यादव की गिरफ्तारी और उनकी जेल यात्रा उन्हीं अतिमहत्वकांक्षी योजनाओं के बिना किसी योजना के सूझ-बूझ के अभाव में पार्टी से इतर जाकर किए गए कार्यों का परिणाम है। ऐसे वक्त में रामकिशुन यादव को संकट मोचक के रूप में समाजवादी पार्टी की अगुवाई करने की जरूरत महसूस की जा रही है। अब देखना यह है कि रामकिशुन यादव अपने कुशल राजनीतिक कौशल के बूते किस तरह सपा व सपा के नेताओं का संरक्षण करते हैं।
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मनोज सिंह डब्लू भी हैं संघर्ष के मजबूत स्तम्भ
चंदौली। समाजवादी पार्टी के पास एक ऐसा नेता है जिन्होंने समाजवादी पार्टी को अपने एकल प्रयास से समाज के अंतिम व्यक्ति तक स्थापित करने का काम किया। जी हां! बात हो रही है सपा के राष्ट्रीय सचिव मनोज कुमार सिंह डब्लू की। इनका संघर्ष करने का जज्बा आज किसी से छिपा नहीं है। मुद्दा छोटा हो या बड़ा। यह सबके लिए प्रयास करते दिख जाते हैं। इन्हें न तो विधानसभा, लोकसभा के दायरे रोक पाए और ना ही इन्होंने कभी भी दायरे की राजनीति की। यही वजह है कि इनका वजूद इतना सशक्त हो गया है कि यह जिस राह से गुजर जाएं उन्हें रोककर हर कोई इनसे मिलना व जुड़ना चाहता है। इन्होंने गांव के किसानों, गरीबों व पीड़ित व प्रताड़ित लोगों के लिए लड़ाईयां लड़ी। इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। सत्ता के खिलाफ मुखर होने के कारण इन्हें कई बार पुलिस प्रताड़ना से इनका दमन करने का प्रयास हुआ। लेकिन इन्होंने समाजसेवा को लेकर अपनी दृढ़ता से सबको मात देते हुए आगे बढ़ते गए। पुलिसिया कार्यवाही को भी हंसकर झेला और सपा के एक मजबूत स्तम्भ की तरह खड़े हैं। यदि रामकिशुन के साथ मनोज सिंह डब्लू के नेतृत्व में पार्टी के लोग एक पुख्ता मशविरा और रणनीति के मुताबिक आगे बढ़े तो समाजवादी पार्टी पर आया संकट दूर होगा। साथ ही चंदौली में पार्टी की बड़ी जीत होगी, जो आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में संजीवनी की काम करेगी।
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मंच साझा कर मजबूती रणनीति बनाने की दरकार
चंदौली। सीएम योगी आदित्यनाथ की सभा में जाते वक्त हुए संघर्ष के बाद हाशिए पर चल रही समाजवादी पार्टी को अपना वजूद कायम रखना है तो जल्द ही कुछ करना होगा और वह भी पूरी मजबूती व ताकत के साथ। इस वक्त पार्टी के लोगों के अंदर बिखराव दिख रहा है जिससे पुलिस कार्यवाही के दरवाजे पहले ही खुल चुके हैं। ऐसी विषम स्थिति में सपा के नेता अपनी अलग-अलग थ्योरी पर टिके रहे तो आगे आने वाले चुनावों में उनका व उनकी पार्टी का टिक पाना मुमकिन से नामुमकिन हो जाएगा। इसलिए यह जरूरी हो गया कि सपा नेता मंच साझा करें और एक मजबूत रणनीति के साझेदार के रूप में संघर्ष की राह चुने, जो अब तक समाजवादी पार्टी की पहचान रही है। यदि इस पहचान को कायम रखने में संगठन नाकाम रहा तो पार्टी कार्यकर्ता हताश होंगे और उनकी हताशा पर डर का हावी होना लाजिमी है। आज चंदौली के राजनीतिक गलियारों में सपा चर्चा में है, लेकिन यह चर्चा सपा की कमजोरियों व नाकामियों की है। सुबह-शाम चट्टी चौराहे पर वे लोग समाजवादी पार्टी की कमियों व खामियों पर ज्यादा बातचीत करते नजर आ रहे हैं, जिनका सपा से लम्बा व गहरा लगाव व जुड़ाव है। अब देखना यह है कि क्या समाजवादी पार्टी चंदौली में ऐसे आस्थावान वोटरों व सपोटरों का भरोसा कायम रख पाती है?