सात समंदर पार भारतीय संस्कृति की अलख जगा रहे हैं नवीन
Young Writer, टांडकला। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनो में जान होती है। पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है। नाथूपुर टाण्डा के रहने वाले नवीन सिंह ने कुछ ऐसा ही कर दिखाया। सात समंदर पार कोरिया देश मे पांच वर्ष से न सिर्फ हिन्दी के बारे लोगों बता व सीखा रहे है बल्कि अपने देश की संस्कृति का भी अलख जगाए हुए है। कम उम्र में ही कई किताबें भी लिख चुके हैं, जिन्हें कोरिया में खूब पसंद की जा रही है। वह अपने ब्लॉग से हिन्दी व कोरियन संस्कृति को जोड़ने की एक मजबूती कड़ी बनकर उभरते नजर आ रहे हैं।
गंगा की गोद में बसे नाथूपुर टाण्डा के रहने वाले धर्मदेव सिंह सरस्वती इंटर कालेज में बड़े बाबू के पद से रिटायर्ड है। इनके पुत्र नवीन सात समंदर पार कोरिया देश में ऑटो मोबाइल इंजीनियर बनकर पांच वर्ष पूर्व पहुंचे थे आज भी वही कार्यरत है। नवीन का जन्म 1986 में हुआ है। इनकी प्रारंभिक शिक्षा खण्डवारी देवी इंटर कालेज से हुई। हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की पढ़ाई उदय प्रताप इंटर कालेज वाराणसी से हुई। एचबीटीयू कानपुर से अभियांत्रिकी से स्नातक की शिक्षा प्राप्त कर पिछले 13 वर्षों से निजी क्षेत्रों में कार्यरत रहे। विद्यालय स्तर पर विभिन्न पुरस्कारों सहित एचबीटीयू कानपुर व यूपीटीयू लखनऊ द्वारा शैक्षणिक उत्कृष्ठता का स्वर्ण पदक भी प्राप्त किया है। हिंदी व अंग्रेजी के साथ कोरियन का भी ज्ञान है। पिछले पांच साल से दक्षिण कोरिया में रहते हुए ब्लॉग के माध्यम से हिंदी व कोरियन संस्कृतियों के कड़ी बनने के लिए प्रयासरत है। कहानियां व कविताये विभिन्न राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में सम्मान प्राप्त कर चुके है। साहित्य अकादमी मुंबई से साहित्य शिखर सम्मान भी प्राप्त किया है। इनके द्वारा पुस्तक गूंज दबते स्वरों की भी लिखी है। पिछले पांच वर्ष से अपने देश की भाषा व संस्कृति को कायम करने के प्रयास में जुटे है। इनके पुस्तक का विमोचन कुछ दिन पूर्व वाराणसी में केंद्रीय मंत्री व सांसद चंदौली डा. महेंद्र नाथ पाण्डेय ने किया था।
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कोरिया के लोगों में है हिन्दी सीखने की उत्सुकता
टांडा कला। नवीन से फोन द्वारा वार्ता हुई तो बताया कि जब कोरिया की धरती पर कदम रखा तो संवाद और कार्य व्यवहार में कई तरह की परेशानियां आयी। किन्तु हिन्दी व भारतीयता के आकर्षक ने मुश्किलें आसान कर दी। कोरियाई मित्रो में हिंदी के शब्दार्थों को लेकर काफी जिज्ञासा है। ऐसे में खाली समय में वे मुझसे ज्यादा से ज्यादा जानने को उत्सुक रहते है। हिन्दी के प्रति उनका स्नेह सम्मान ऐसा है कि धीरे-धीरे मैं उनका हिन्दी का अध्यापक बन गया। वहां हिंदी और भारत के बारे कई किताबें प्राइमरी स्तर से ही पढ़ाई जाती है। वहां भारतीय मित्रों के साथ हिन्दी व भोजपुरी में बात करते है तो आसपास कोरियाई खड़े होकर सुनते है। वहां दक्षिण कोरिया में हिंदी साहित्य उपलब्ध कराने के लिए राजदूतावास के सम्पर्क में रहते है। यहां की संस्कृति, मंदिरों, नदियों की महत्ता भी बताते है।