Story Credit लारेंस सिंह
Young Writer, चंदौली। शगुन की हल्दी व हाथों की मेंहदी हर लड़की का अरमान होता है। फिर चाहे वह गरीब मजदूर के घर की बेटी या करोड़पति या अरबपति घराने की लड़की। सभी अपने शुभ लगने का बेशब्री से इंतजार करती हैं। वर्षों का इंतजार और सजे सपने उस वक्त साकार होते हैं जब बेटी मंडप में बैठती है और अपने जीवन साथी के साथ सात फेरे लेती है। लेकिन इन दिनों सरकारी बंदोबस्त व बदइंतजामी के कारण उन गरीब बेटियों के शुभ विवाह व लगन को बार–बार टाला जा रहा है। जिससे सामूहिक विवाह में शामिल होने वाले परिवार व उनके घर की बेटियों का इंतजार बढ़ रहा है। साथ ही विवाह जैसी अतिजटिल कार्यक्रम में बार–बार बदलाव करना पड़ रहा है जो एक लड़की के पिता के लिए कितना कठिन है यह हर वह इंसान समझ व जान सकता है जो एक बेटी का पिता है‚ लेकिन संवेदनहीन हो चुकी सरकार व सरकारी कारिदें इसे समझ नहीं पा रहे या यूं कहें कि सबकुछ समझकर भी नासमझी दिखा रहे हैं। जी हांǃ बात हो रही है कि सूबे के अतिमहत्वाकांक्षी योजना मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह योजना की। जिसके आयोजन की तिथि एक पखवारे के अंदर तीन बार बदल दी गयी। अब यह नई तारीख शासन की ओर से 11 दिसंबर निर्धारित की गयी है।
विदित हो कि मुख्यमंत्री सामूहिक विवाह सम्मेलन की तारीखें बदलने से बहुत से गरीब व सम्मेलन में बेटियों की शादी के लिए आश्रित परिवारों को बेटियों को लग चुकी हल्दी छुड़ानी पड़ी है। वहीं कुछ जो थोड़ा बहुत सामर्थ्य दिखा सकते थे आंशिक संसाधनों के जरिए किसी तरह बेटियों की शादियां रचाई। पहले 20 नवंबर फिर 5 दिसंबर और अभी 11 दिसंबर की तारीखें तय होने से बेटियाें के सपने धरे के धरे रह गए। इस साल विवाह सम्मेलन के लिए शासन और प्रशासन द्वारा जिस तरह का मजाक बेटियों के साथ किया जा रहा है उससे बेटियों को रुसवा होना पड़ रहा है। बताते चलें कि विवाह सम्मेलन में जिला प्रशासन से 20 नवंबर की तारीख तय की गई थी जिसमें जनपद द्वारा सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई थी तथा विवाह की तैयारियां कन्या व वर पक्ष द्वारा कर ली गई थी लेकिन निर्धारित तिथि से पूर्व ही शासन द्वारा सम्मेलन की तारीख 5 दिसंबर निर्धारित की गई। जनपद विवाह की तैयारियों में जुटा, रजिस्ट्रेशन शुरू हो गए लेकिन फिर वही मजाक हुआ और समाज कल्याण विभाग ने 5 दिसंबर की तारीख को निरस्त करते हुए अब 11 दिसंबर को विवाह सम्मेलन आयोजित की तारीख भेजी। तीसरी बार विवाह सम्मेलन की तारीख बढ़ने से वर एवं कन्या पक्ष के परिवारों में अफरा-तफरी का माहौल पैदा हो गया। विवाह की तारीखों के पूर्व विवाह की अन्य रश्में में भी होती है और एक बार हल्दी लगने के बाद विवाह की मेहंदी रचने की प्रतीक्षा रहती है। जिसके चलते जिन कन्याओं को हल्दी लग गई उन्हें मजबूरी में निर्धारित तारीखों में शादी करना पड़ा, लेकिन जिनके पास कोई संसाधन नहीं थे उन्हें हल्दी भी छुड़ानी पड़ी। कुल मिलाकर मुख्यमंत्री के महत्वपूर्ण कल्याणकारी इस योजना को कभी शासन स्तर से तो कभी प्रशासन स्तर से पलीता लग रहा है तथा बच्चियों को रुसवाईयों का सामना करना पड़ रहा है।