डा. उमेश प्रसाद सिंह, ललित निबंधकार
ईद कोई साधारण, सामान्य-सा नहीं है। यह भ्रातृत्व में व्याप्त विराटता के विस्तार का का पर्व है। यह पर्व भाई चारे की मनुष्य जीवन में महिला के यशगान का पर्व है।
संसार भर में मनुष्यों के बीच भौतिक और आत्मिक स्तर पर आश्चर्यजनक समानता प्राकृतिक रूप में प्रगट है। इसी तरह सारे धर्मों के बीच विलक्षण रूप से समानता और एक रूपता व्याप्त है। मगर सत्ता और भ्रामक श्रेष्ठता के पीछे विभ्रान्त आदमी धर्मों के बीच ऊपरी सतह पर मौजूद भिन्नता को ढूढ़कर उनमें व्याप्त विभेद को रेखांकित करता रहता है। ऐसा करने के पीछे उसकी स्वार्थी और संक्रीर्ण मानसिकता का प्रभाव होता है। जब-जब धर्म का उपयोग तलवार और ढाल की तरह होती है, समाज कमजोर और पतनशील होती है। धर्म मनुष्य और मनुष्य के बीच पारस्परिकता को मजबूत बनाने का सबसे सशक्त निमित्त है। पूरे महीने भर आत्म संयम के कठोर नियम के पालन से गहरे आत्मचिन्तन के उपरान्त ईद का पर्व मानवीय पारस्परिकता के यशगान के रूप में प्रतिष्ठित है। भ्रातृत्व की महिमा के आख्यान का यह महत पर्व मनुष्य जाति की मंगलेच्छा का अनूठा उदाहरण है। ईद के उपलक्ष्य में हार्दिक मंगल कामनाएं।