शमशाद अंसारी
Young Writer, चंदौली। विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में बसा नौगढ़ का औरवाटांड बांध रविवार को साहित्य संगम का गवाह बनेगा। प्राकृतिक सौन्दर्य के बीच साहित्य का मंच सजेगा तो वहां साहित्यकारों के विचारों की खूबसुरती व सुंदरता की भव्यता देखते बनेगी। यह पहला अवसर होगा जब शहर और भौतिकवादी भीड़ से दूर वन के बीच साहित्य पर चर्चा बुलाई गयी है। जाहिर है यह साहित्य में रूचि रखने वाले का नवाचार है। पहाड़ों में साफ, शुद्ध व ठंडी हवाओं के बीच मन शांत होगा तो उसकी गहराई में बसे-रचे विचार मुखार बिंदू तक आएंगे, जो इस ठंड में साहित्य के मंच के चहुंओर अलाव जैसी गर्मी पैदा करेंगे। चर्चा-परिचर्चाओं के बीच साहित्य श्रृंखलाओं में बहुत कुछ जोड़ा जाएगा। कुछ अपवादों को कांटा-छांटा जाएगा। साहित्य के कतिपय त्रुटियों पर चिंतन-मंथन के बाद साहित्य के लिए नई-नई शब्दावली गढ़ी जाएगी। और इस अद्भुत और कभी-कभार होने वाले अभूतपूर्व साहित्यिक घटना का औरवाटांड बांध और आसपास की वादियां गवाह होंगी, जो कभी गोलियों की तड़तड़ाह, खौफ और मौत के मंजर का गवाह होती थी।
‘वन के बीच साहित्य चर्चा’ का आमंत्रण उन तमाम लोगों के लिए है जो साहित्य में रूचि रखते हैं। हर वक्त साहित्य को कुछ नया और अद्भुत समर्पित करने की सोच रखते हैं। साहित्य के अस्तित्व में नयापन लाने के साथ ही समाज में सहिष्णुता, सौहार्द व सद्भाव कायम करने के लिए साहित्य को रचते हैं और जिनके अंदर साहित्य बसता है। इस साहित्य चर्चा में ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह की पुस्तक ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’ पर परिचर्चा रखी गयी हैं। जी हां! वही हस्तिनापुर जिसे राजा हस्ती ने बसाया और कालांतर जो कौरवों व पांडवों की राजधानी रहा। महाभारत के कई प्रसंग हस्तिनापुर से जुड़े हैं। महाभारत काल बीत गया, लेकिन हस्तिनापुर के मायने व महत्व आज भी कायम है। यूपी में चुनाव चल रहे और हस्तिनापुर का इन चुनावों से भी गहरा नाता रहा है। पुराने कहावत और अब तक रिकार्ड यह बताते हैं कि हस्तिनापुर की जीत से लखनऊ की गद्दी तय होती हैं। यानी महाभारत काल से लगायत कलयुग तक हस्तिनापुर सियासत का केंद्र बिंदु बना हुआ है। औरवाटांड बांध पर सजे साहित्य मंच पर ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’ पुस्तक के एक-एक पन्ने, पैराग्राम व शब्दों पर चर्चा-परिचर्चा होगी। उसके मतलब व मायने निकाले जाएंगे। तब के समय में उन शब्दों के क्या मायने थे और अब के समय में इनका का मतलब है और आगे आने वाले पीढ़ियों के लिए शब्दों की गुथी यह श्रृंखला कितना प्रभावी रहेगी भविष्य की संभावित इन बातों पर भी साहित्यकारों का मत होगा और उसने मतभेद को भी सुनने और जानने की पहल होगी। यह सबकुछ शांत, सुंदर और प्राकृतिक सुंदरता के बीच कल-कल, छल-छल करते पहाड़ी पानी के धाराओं के किनारे मुकम्मल होगा और जब यह साहित्य चर्चा मुकम्मल होगी तो एक बार फिर से यहीं लौट आने के वादे और इरादे भी होंगे। इस साहित्य चर्चा के दरम्यान के राष्ट्रीय चेतना प्रकाशन के प्रकाशक डा. विनय कुमार वर्मा व रामजी प्रसाद ‘भैरव’ सभी का इस्तकबाल करते नजर आएंगे।