औरवाटाण्ड में महाभारत पर लिखित हस्तिनापुर एक्सटेंशन पर चर्चा
शमशाद अंसारी
Young Writer, नौगढ़(चंदौली)। जनपद के औरवाटांड बांध पर रविवार को वन के बीच साहित्य पर चर्चा विषयक गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह द्वारा रचित ‘हस्तिनापुर एक्सटेंशन’ पर चर्चा परिचर्चा हुई। इस दौरान देश के अलग-अलग हिस्सों से जमा हुए साहित्यकारों ने पुस्तक की लेखनी, उसके प्रभाव और लेखक के लेखन साहित्य के प्रति अपना नजरिया और विचारों को साझा किया। यह सबकुछ नौगढ़ के औरवाटाण्ड बांध के कल-कल करते जल के बगल और घने जंगल के बीच संपन्न हुआ। प्राकृतिक सुंदरता, सौम्य वातावरण के बीच साहित्यकारों ने एक सकारात्मक सोच और विचार से शमा बांध दी।
इस दौरान मुख्य अतिथि ओमधीर सेवानिवृत्त एडीशनल कमिश्नर वाराणसी ने हस्तिनापुर एक्सटेंशन पुस्तक व उसके लेखक को सराहा। कहा कि एक पुराण को अपने समय से टकराते हुए समेटता सराहनीय कार्य है। सत्ता का रूख हमेशा क्रूर रहा है तो लेखक हमेशा प्रतिरोध की आवाज रहा है और आज भी प्रतिरोध के साथ मजबूती से खड़ा नजर आता है।
पुस्तक पथ के संपादक एल उमाशंकर ने कहा कि हस्तिनापुर एक्सटेंशन कई प्रश्नों को जन्म देता है। पुस्तक के लेखक बेहद तार्किक व्यक्ति हैं। जिनका पूरा का पूरा व्यक्तित्व विचारों की प्रतिमूर्ति है। पुस्तक के बारे में उन्होंने और बहुत कुछ लिखे जाने की आवश्यकता जताई। पूर्व प्राचार्य डा. अनिल यादव ने कहा कि हस्तिनापुर एक्सटेंशन पठनीय और विचारणीय पुस्तक है। जो इस बात को समाज के बीच रखने का काम करती हैं कि सत्ता को पाना, उसे बनाए रखना, बचाए रखने के प्रयास इंसान को क्रूरता की अंतिम सीमा तक ले जाती है, जो उसकी नैसर्गिक प्रकृति हैं।
रेल राज भाषा अधिकारी डा. संजय गौतम ने कहा कि हस्तिनापुर एक्सटेंशन पुस्तक में डा. उमेश प्रसाद सिंह ने आयुर्वेदाचार्य के रूप में महाभारत के अर्क को उतारने का काम किया है। साथ ही पुस्तक में अपने अनुभव व समाज के ताप को संयुक्त रूप से बड़े सुंदर अंदाज में समाहित किया है। डा.राम प्रकाश कुशवाहा ने डा. उमेश प्रसाद सिंह ऋषि टाइप का लेखक बताया और कहा कि इनकी रचनाएं बेहद गंभीर विषयों पर आधारित होती है, लिहाजा इनकी सभी रचनाएं गंभीरता पूर्वक पढ़ता हूँ। हस्तिनापुर एक्सटेंशन दुर्याेधन और द्रोण सहित सभी किरदारों के बेहतर ढंग से पिरोया गया है।
डा. उमेश प्रसाद सिंह ने कहा कि पहले के मनोरंजन और अध्ययन के तीन साधन हुआ करते थे। पहला तुलसी की रामायण, दूसरा महाभारत और तीसरा आल्हा के गीत। बचपन से ही महाभारत के किरदारों और कहानी को लेकर जो स्मृतियों को पुस्तक का प्रारूप देने का प्रयास किया है। यह पारम्परिक ढांचे में ढला हुआ उपन्यास नहीं है। आप इसे उपन्यास मान सकते हैं और नहीं भी मान सकते हैं। वर्तमान में जो कुछ हो रहा है वह बाजार पर वर्चस्व और सत्ता को स्थापित करने का प्रयास है। पुस्तक में पूंजीवादी विस्तार की नीति को एक्सटेंशन शब्द से प्रदर्शित करने का प्रयास हुआ है।
संचालन करते हुए राष्ट्रीय चेतना प्रकाशन के प्रकाशक विनय कुमार वर्मा ने डा.उमेश प्रसाद सिंह को चंदौली साहित्य का अभिभावक बताया। कहा कि कविता से पुस्तक की शुरुआत कविता से की गई है जिसे पढ़कर एक ऐसा भाव पैदा होता है जो आपके अंदर पुस्तक को पढ़ने की जिज्ञासा पैदा करता है। उन्होंने पुस्तक के अलग-अलग अंश की कुछ सुक्तियों को अपने संचालन उद्बोधन में बीच-बीच में रखा। कहा कि नदी का आचरण पृथ्वी पर जीवन की अभ्यर्थना सबसे सुंदर कविता है।
आर्य समाज मंदिर के प्रमुख अरुण कुमार आर्य ने कहा कि सारे साहित्य वन में, एकांत में चिंतन करके लिखे गए। महर्षि बाल्मीकि ने जंगल में पुस्तकें लिखीं है। हस्तिानपुर एक्टेंशन के बारे में अपनी बात रखते हुए कहा कि महाभारत के बारे में जितना लिखा और पढ़ा जाए वह कम है। महाभारत में व्यवहार, राजनीतिक, कूटनीति सबकुछ समाहित है। कहा कि किसी भी साहित्य को जला दिया जाय तो उनता नुकसान नहीं होता, लेकिन साहित्य में यदि कुछ मिला दिया जाय तो ज्यादा नुकसान होता है।
केंद्रीय विद्यालय के राजेश प्रसाद ने कहा कि हस्तिनापुर एक्टेंशन पुस्तक को 12 अध्यायों में बांटा गया है और हर अध्याय में महाभारत के अलग-अलग पात्रों को केंद्र में रखकर विवेचना की गयी है जो शानदार लेखनी प्रमाण है। इसमें भीष्म और गंगा के संवाद को रखा गया है। साथ ही नारी की अस्मिता के संरक्षण की भी आवश्यकताओं को पुराने प्रसंगों के जरिए नए अंदाज में रचा व लिखा गया है। अंत नौगढ़ प्रधान दया नारायण जायसवाल के इस साहित्यिक मंच सजाने में दिए गए स्थानीय सहयोग के लिए सभी साहित्यकारों ने आभार जताया। इसके अलावा शैलेंद्र सिंह, हिमांशु उपाध्याय‚ अरुण कुमार आर्य, डा. रामसुधार‚ दीनानाक ‘देवेश‘‚ केशव शरण आदि ने अपने विचार रखे। अध्यक्षता डा. रामसुधार और धन्यवाद ज्ञापन रामजी प्रसाद भैरव ने किया।