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Saturday, July 5, 2025

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जिन्दगी की मँझधार में डूबा हुआ ’साहिल’

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Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह की कलम से

धर्मेन्द्र गुप्त से मिल-जुलकर बोल-बतियाकर भले आप सोच सकते हैं कि वे जिन्दगी के किनारे-किनारे चलकर कहीं आ-जा रहे हैं। मंगर उनका गजल संग्रह ‘अपना-अपना चाँद’ पढ़ा/पढ़कर देखा तो देखा कि इसमें तो ‘साहिल’ जिन्दगी की मँझधार में डूबा हुआ ‘साहिल‘ है। जिन्दगी के रस ने साहिल को साहिल नहीं रहने दिया। जीवन में डूबकर ही द्रष्टा अनुभोक्ता बनता है। वैयक्तिकता जीवन रस में विलीन होकर ही निर्वैयक्तिक चेतना की अनुभव थाती पाती है, जिससे काव्य रचना संभव होती है। जीवन रस का पान करके ही कवि इस रहस्य को समझ सकता है-
‘‘रोज सियाही पीता चाँद, फिर भी कितना उजला चाँद।’’
रोज-रोज अथाह कालिमा को पीकर-पचाकर भी

उज्ज्वलता की असीम आभा को बनाये रखने का बोध धमेन्द्र गुप्ता ‘साहिल‘ के काव्यबोध को ऊंचाई और गरिमा से अनायास जोड़ देता है, जो नितान्त अभ्यर्थना के योग्य है। यह संग्रह भले ही संक्षिप्त है, मगर इसमें धरती की छाती फोड़कर निकलने वाले उस अंकुर का आश्वासन मौजूद है, जिसमें विशाल वट वृक्ष की छाँह अपना रूप ग्रहण करने को मचल रही है।
धर्मेन्द्र गुप्त साहिल की काव्य संवेदना का केन्द्र प्रेम है। मगर यह भाषा का प्रेम नहीं है। भाषा में प्रेम नहीं है। मैं कहना चाहता हूँ ‘साहिल’ की काव्य संवेदना में, उनके काव्यबोध में जो प्रेम है, वह जीवन में है। जीवन के लिये प्रेम है। जीवन से अभिन्न है। वह बड़ा व्यापक भी है और गहरा भी है। साहिल की कविता में प्रेम विषय के रूप में नहीं है, वह उनकी कविता की अन्तर्वस्तु के रूप में है। इसीलिये वह विविध रूपों में व्यक्त हो सका है। बहुविध रूपों में व्यक्त हो सका है। हम देखते हैं कि उनके संघर्ष में प्रेम है, क्षोभ में प्रेम है, उलाहना में प्रेम है, पछतावा में प्रेम है, धोखे में प्रेम है, नींद में प्रेम है और सपने में भी प्रेम है। उन्हें अपने में यानी जिन्दगी में प्रेम है। तभी वे कह सके हैं –
खुद से मिलने जैसा मिलना केवल प्रेम में ही संभव हो सकता है। ध्यान से देखने पर साहिल की कविता में बहुत-सी विलक्षण ध्वनियां सुनाई देवी हैं, जो दुर्लभ रोमांच से भर देती है।
‘साहिल’ की कविता अपने समय के प्रचलित काव्य-उपादानों से भिन्न उपादानों के द्वारा भिन्न प्रविधि से रची गई कविता है। इनकी कविता का शिल्प एक बहुव्यवहृत विद्या में बिल्कुल अपनी निजता की मुकम्मल पहचान कायम करता है। यह पहचान विल्कुल सहज है, सादी है मगर इनकी सादगी बहुस्तरीय अर्थव्यंजना से संवलित होने के कारण बड़ी विलक्षण है। बड़े ही जटिल जीवन अनुभवों को बड़ी सूक्ष्मता से व्यक्त कर सकने की योग्यता के कारण ‘साहिल’ गजल में बहुत कुछ नया जोड़ने में समर्थ हो सके हैं। उनके कथन में भाव और भंगिमा दोनों की अद्भुत संगति उनके रचनाकर्म की मौलिकता को स्थापित करती है। बड़े ही सघन बिम्बों की रचनाधर्मिता कविता को बार-बार पढ़ने के लिये आमंत्रित करती है। कम कविताएँ होती हैं, जो अपने पाठ में बार-बार उतरने को उत्प्रेरित करती हैं। साहिल की काव्य रचना बार-बार पढ़ने को विवश करती है और हर नये अर्थ से अभिभूत करती है। मैं ‘साहिल’ की रचनात्मक प्रतिभा और सृजनात्मक कौशल का अभिनन्दन करता हूँ।
काँपती उंगलियों से सच लिखने का साहस, सामर्थ्य और कौशल ‘साहिल’ की कविता को सार्थक और श्रेष्ठ कविता बनाता है।
‘‘तेरी खातिर बदल लिया खुद को और अब खुद बदल गया है तू’’ जैसी बेधक अनुभूति को अनुरंजक रूप में कह सकना कवि के सामर्थ्य का साक्ष्य है। यहाँ प्रेम के माध्यम से वृहत्तर सामाजिक सच की बिडम्बना का उद्घाटन होता है। ‘साहिल’ के काव्यबोध में रेखांकित करने योग्य एक बात यह भी है कि जहाँ-जहाँ उनका आत्मबोध व्यक्त हुआ है, उसमें मनुष्य होने की ललक ही ईमानदार रूप में दिखाई देती है, किसी भी तरह के गर्व या ग्लानि से सर्वथा मुक्त। किसी भी अभियक्ति की कलात्मक विधा में किसी रचनाकार की उपस्थिति प्रायः एक-सी जीवन स्थितियों में उसके भिन्न जीवन बोध के आस्वाद पर निर्भर करती है। धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’ अपनी विद्या में अपनी मौलिकता के कारण अपनी उपस्थिति दर्ज करते हैं। उनकी रचना पारंपरिक विरासत में कुछ नया जोड़ती है।  

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