चंदौली। मुहर्रम की नौंवी गुरुवार को जिले में देर रात तक चौक पर ताजिए बैठाए गए। इस दौरान शासन-प्रशासन की ओर से जारी गाइडलाइन का पालन करते हुए लोग मातम, मर्सिया और नौहाख्वानी कर लोग इमाम हुसैन को याद किए। वहीं या अली-या हुसैन की सदाएं गुंज उठाई। अखाड़ेदारों ने भी अलम उठाने के साथ ही अपने कला कौशल का प्रदर्शन किया। शुक्रवार को ताजिए कर्बला में दफन किए जाएंगे। सुरक्षा के मद्देनजर पुलिस अधिकारी भारी पुलिस बल के साथ चक्रमण करते रहे।
कोरोना संक्रमण के मद्देनजर शासन-प्रशासन की ओर से पिछले बार की तरफ इस बार भी मुर्हरम पर्व पर सार्वजनिक जगहों पर ताजिया रखने जुलूस निकालने की मनाही है। हालांकि चौक पर ताजिया बैठाने और 50 लोगों को शामिल होने की अनुमति दी गई है। लेकिन इस दौरान कोविड-19 गाइडलाइन का पालन करने का निर्देश दिया गया है। इसके तहत गुरुवार की शाम से जिले में कोविड नियमों का पालन करते हुए चौक पर ताजिए बैठाए गए। यह सिलसिला देर रात तक चलता रहा। विभिन्न अंजुमन के लोगों ने मातम किया। वहीं नौहाख्वानी और मर्सिया पढ़कर इमाम हुसैन को याद किया। इस दौरान कर्बला की दास्तान सुनकर मौजूद लोगों की आंखे छलछला गई। उधर, अखाड़े के युवकों ने अलम उठाया और अपने कला कौशल का प्रदर्शन देर रात तक किया। इस बीच कई स्थानों पर झमाझम बारिश हुई। फिर भी लोगों का उत्साह कम नहीं हुआ। उधर जनपद में कानून एवं शांति व्यवस्था व आम जनमानस में सुरक्षा की भावना को बनाए रखने के दृष्टिगत पुलिस अधीक्षक अमित कुमार के निर्देश पर प्रत्येक थाना क्षेत्र में पुलिस चक्रमण करती रही। वहीं कोरोना संक्रमण से बचाव एवं जारी दिशा निर्देशों के पालन करते हुए आपसी सौहार्द के साथ त्यौहार मनाने की अपील किया गया।
अजाखाना-ए-रजा में चल रही मजलिस का दौर खत्म
चंदौली। मुहम्मद साहब के नवासे इमाम-हुसैन ने करबला के मैदान में यजीद के साथ जंग कर संदेश दिया था कि सच और हक के लिए सिर कट जाए। लेकिन इंसान को झुकना नहीं चाहिए। आज दुनिया भर में तालिबान और उस जैसी कट्टरपंथी ताकतें इस्लाम को बदनाम करने में जुटी हुई हैं। इसलिए ऐसे समय में इमाम हुसैन की कुर्बानी व शक्षिाएं और ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती हैं। तालिबान सिर्फ अफगानस्तिान के लिए खतरा नहीं है। बल्कि पूरी इंसानियत के लिए चुनौती और खतरे की घंटी है। यह बातें नगर स्थित डा. अब्दुल्ला मुजफ्फर के अजाखाना-ए-रजा में आखिरी मजलिस में मौलाना हामिद हुसैन ने कही।
उन्होंने कहा कि करबला इंसानियत के लिए एक सबक है। इस सबक को सभी सीखें और बुराई के खिलाफ पुरजोर तरीके से खड़े हों। मुसलमानों की ओर से हर साल मुहर्रम का त्यौहार गम के रूप में मनाया जाता है। मुहर्रम के शुरूआती दस दिनों में करबला के मैदान में यजीद नाम के जालिम बादशाह ने मुहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन को इसलिए बेरहमी से कत्ल कर दिया। क्योंकि उन्होंने यजीद की झूठी शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करने से इंकार कर दिया। डा. एसए मुजफ्फर ने कहा कि अजाखाना-ए-रजा में हर साल चंदौली के अलावा आसपास के जिलों की अंजुमनें भी हिस्सा लेती रही हैं। लेकिन इस बार कोविड गाइडलाइन के चलते कार्यक्रम को सीमित रखा गया। मजलिस में इमाम हुसैन की कुर्बानी को खिराजे अकीदत पेश की गई। इस दौरान मायल चंदौलवी, ताबिश चंदौलवी, दानिश कानपुरी, शहंशाह मिर्जापुरी आदि मौजूद रहे।