सैयदराजा विधानसभा में सभी दल अपना दम व ताकत दिखाने में जुटे
Young Writer, सैयदराजा। ऐसा लग रहा है अबकी बार समाजवादी पार्टी सत्ता परिवर्तन के जनता के मिजाज को बहुत पहले ही भांप चुकी थ। यही वजह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में सपा नए रंग में नजर आ रही है। इसके साथ ही उसके चुनाव लड़ने का तौर-तरीका भी बदला हुआ है। सपा का चुनाव प्रचार-प्रसार जितना पटल पर दिख रहा है उससे कहीं ज्यादा अंदर ही अंदर पार्टी सक्रिय है। पर्दे के पीछे एक अलग ही चक्रव्यूह रचा जा रहा है, ताकि विरोधियों को उस व्यूह में फंसाकर जीत के दरवाजे तक पहुंच सके। फिलहाल समाजवादी पार्टी सैयदराजा में कुछ ऐसे ही अदृश्य व अचूक अस्त्र का इस्तेमाल कर रही है जो भौतिक रूप से चुनावी पटल पर कहीं नहीं है, लेकिन समाजवादी पार्टी की नजरिए से वह हर जगह मौजूद है।

स्थिति यह है इनका रंग-रूप, आकार-प्रकार और इनकी संख्या क्या है यह भी आज तक कोई नहीं जान पाया। यह भीड़ की शक्ल में बड़ी शांति से समाजवादी पार्टी के चुनावी रण को जीत में बदलने के काम में लगे हैं। सपा का यह तंत्र कब, कहां और क्या कर रहा होगा इसके बारे में मात्र समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी को खबर रहती है और चुनाव के दरम्यान इनका आपसी संवाद भी ऐसा रहता है कि सबकुछ सबके सामने हो भी रहा होता है लेकिन कहीं कुछ नजर नहीं आ पाता। इनके पास न तो नारों की ललकार है और ना जयकारों की गूंज। फिर भी ये पार्टी के लिए वोट की उन कड़ियों को जोड़ रहे हैं जो जीत के लिहाज से बेहद आवश्यक है। इनके कामकाज में किसी तरह का कोई हस्तक्षेप व रुकावट न हो। इसका पहले से ही रोडमैप पार्टी हाईकमान ने तैयार कर रखा है। समाजवादी पार्टी का यह अचूक अस्त्र इस चुनाव में कितना प्रभावी होगा यह तो 10 मार्च को मतगणना के बाद स्पष्ट हो ही जाएगा। लेकिन इतना जरूरी कहा जा सकता है कि इस बिना नाम, शक्ल व स्वरूप वाले प्रयासों का समाजवाादी पार्टी को लाभ मिलना सुनिश्चित है, जो सपा के खिलाफ सैयदराजा में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के चिंता व मंथन का विषय हो सकता है। फिलहाल सैयदराजा विधानसभा पूर्वांचल की सबसे हॉट सीट के रूप में गिनी जा रही है। जहां भाजपा अपनी पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान है। लेकिन अबकी बार प्रांतीय नेतृत्व के नेताओं की कमी और दूसरे प्रांत के नेताओं के चुनाव प्रचार में अतिक्रमण लाभ होने की बजाय नुकसान होता नजर आ रहा है। विपक्षी दलों के लोग दूसरे प्रांत से इन नेताओं को प्रवासी बताकर जनता के बीच इनके प्रभाव को नगण्य करके का दांव खेल चुके हैं। ऐसे में भाजपा के प्रवासी नेताओं की भी स्थानीय जनता में नाराजगी की वजह बनती दिख रही है। क्योंकि ये नेता राष्ट्रीय स्तर के मुद्दों की बात करते हैं जो शायद जनता को उनसे कनेक्ट नहीं कर पा रही है। इसमें भाषा शैली में विभिन्नता भी लोगों के जुड़ाव में बाधक की भूमिका में नजर आ रही है। हाल-फिलहाल चुनाव अपने चरम पर है और सभी दल अपने-अपने पास मौजूद अस्त्रों का इस्तेमाल पूरी ताकत व शिद्दत के साथ कर रहे हैं। अब देखना यह है कि सात मार्च को जनता के मिजाज में कौन फिट्ट बैठ पाता है।