चुआड़ से पीने का पानी जमा करते वनवासी बच्चे।
आजादी के 75 साल बाद भी कई गांवों तक नहीं पहुंचा विकास
नौगढ़। विकास का ढिढोरा खूब पीटा जा रहा है और इस पर अब तक सभी सरकारें लाखों-करोड़ों रुपये खर्च भी करती चली आ रही है। बावजूद इसके आज भी नौगढ़ की पहाड़ी में बसे कई गांव ऐसे हैं जहां विकास की किरण नहीं पहुंची। नतीजा वहां की गरीब व असशक्त आबादी आज भी अभाव व पिछड़ेपन के अंधेरे से निकलने के लिए जद्दोजहद है। यहां न तो बिजली है और ना ही पानी का ही मुकम्मल बंदोबस्त है। नतीजा चुआड़ के सहारे हजारों की प्यास बुझ रही है। अब पानी गुणकारी हो या मटमैला, लेकिन उसे पीना इन ग्रामीणों की नियती बन गयी है। कुछ ऐसा ही हाल नौगढ़ की पहाड़ी वादियों का है।
यहां आजादी के 75 वर्ष बाद भी चकरघट्टा क्षेत्र के सेमर साधोपुर समेत दर्जन भर गांव ऐसे है जहां ग्रामीणों को बरसात के दिनों मे नौगढ बांध में जलस्तर बढ़ने आवागमन के सभी माध्यम ध्वस्त हो जाते हैं। इसके अलावा पेयजल के संसाधनों का अभाव भी बरसात में ग्रामीणों को झेलनी पड़नी है। पहाड़ों से रिस कर जगह-जगह जमा चुआड़ का पानी ही इन ग्रामीणों के पेयजल का एकमात्र साधन है, जिससे इन ग्रामीणों की प्यास बुझती है। ग्रामीण बताते हैं कि जलस्तर नीचे होने व आयरन की प्रचुरता के कारण गांव में लगे हैण्डपम्प शो पीस बनकर सरकारी आंकड़ों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है। यही हाल कर्मनाशा नदी के तटवर्ती ईलाके मे आबाद रिहायशी बस्ती जरहर, मुसहर बस्ती दानोगड़ा, कौआ घाट, बूड़नवा घाट, खोझड़ो, कोठी घाट, चिरवाटांड़, धोबहीं आदि जगहों का है, जहां पर लोग नियमित कर्मनाशा नदी का पानी उपयोग में लाकर के पेट संबंधित विभिन्न बीमारियों के आगोश में रहते हैं। इसके इतर सरकारी दावे व प्रशासनिक आंकड़ों पर गौर फरमाए तो नौगढ़ पिछड़ेपन को दूर करने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च हो चुके हैं। बावजूद इसके इन ग्रामीण इलाकों का पिछड़ापन दूर नहीं हो सका। ऐसे में आज भी लोगों की दिनचर्या दुश्वारियों के साथ शुरू होती है और मूलभूत सुविधाएं हासिल करने के जद्दोजहद के साथ ढल जाती है। इन्हें ग्रामीणों को आज भी विकास की किरण का इंतजार है, ताकि इनके जीवन से भी पिछड़ेपन का अंधेरा दूर हो सके।