चंदौली। दीपावली के बाद दिल्ली ही नहीं जनपद में तेजी से प्रदूषित हो रही हवा सेहत को नुकसान पहुंचा रही है। यहां पटाखे तो उस स्तर पर नहीं फूटे, लेकिन अन्य कारणों से हवा में जहर तेजी से घुल रहा है। मामला चाहे जिला अस्पताल के बाद कूडे के ढेर को जलाने का हो या फिर चंदौली जिला मुख्यालय के ईद-गिर्द फैक्ट्री व कम्पनियों से निकलता जहरीला धुंआ। प्रदूषण महकमा व जिले के जिम्मेदार अफसर तेजी से खराब हो रही हवा की सेहत में सुधार के लिए प्रभावी कदम उठाने में लापरवाही बरत रहे हैं, लिहाजा कस्बाई इलाका होने के बावजूद चंदौली व आसपास रिहायशी इलाकों में सांस व दमा के मरीजों की तादाद तेजी से बढ़ रही है।
विदित हो कि अक्टूबर माह के दूसरे पखवारे में गुलाबी ठंड ने दस्तक दी और इसी के साथ ओस व कोहरा के कारण हवा में नमी बढ़ी। ऐसे में चार नवंबर को दीपावली पर्व पर पूरे देश में हुई आतिशबाजी के कारण हवा में अचानक प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ा, जिससे देश की राजधानी दिल्ली में धुंध छायी। इसके बाद सरकार व प्रदूषण नियंत्रण के लिए जिम्मेदार अफसर हरकत में आए। बात जिले की करें तो यहां मात्र मिनीमहानगर मुगलसराय ही एक मात्र शहरी आबादी है। बावजूद इसके जनपद में मानक व नियम विरूद्ध तरीके से संचालित फैक्ट्रियां, ईंट-भट्ठे हवा को तेजी से जहरीला बना रहे हैं। चंदौली के प्रदूषण महकमे की बात करें तो इनकी भूमिका केवल संस्थाओं को बिना जांचे-पखरे एनओसी जारी करने तक रह गयी है, जिसके एवज में वह मोटी रकम वसूलते हैं जैसा कि प्रदूषण महकमे पर लम्बे समय से आरोप लगता आया है। चंदौली जिला मुख्यालय की बात करें तो चंद कदम की दूरी पर संचालित आरती मील की चिमनी हवा में जहर के साथ-साथ खतरनाक छोटे-छोटे कण भी फैला रही है, जो यदि किसी के आंखों में पड़ जाय तो उनके लिए वह मुसीबत के समान है। इन दिनों जिला अस्पताल के समक्ष कूड़े के ढेर को जलाने से पूरा वातावरण धुंध से भर जाता है, जिससे आसपास की आबादी व अस्पताल के मरीज व स्टाफ को सांस लेने में दिक्कतें हो रही है। मामला संज्ञान में आने के बाद एसडीएम सदर द्वारा जलते कूड़े पानी डालने की बात कहकर मामले को दबाने का प्रयास किया गया। हाल फिलहाल प्रशासन के मानक में केवल पराली जलाने से ही प्रदूषण फैलता है, यही वजह है कि उसकी सख्ती का दायरा किसानों तक सीमित रह गया है।
इनसेट—
प्रतिदिन आ रहे 150 मरीज
चंदौली। जिला अस्पताल के आकस्मिक चिकित्सा अफसर डा. संजय कुमार के मुताबिक ओपीडी में प्रतिदिन 1200 पंजीकृत होते है, जिसमें 150 मरीज ऐेसे हैं जिन्हें सांस व फेफड़ों से संबंधित रोग के लक्षण मिल रहे हैं। यह बदलते मौसम व प्रदूषित हवा का दुष्प्रभाव है। उन्होंने कहा कि धुल-धकड़ वाले इलाकों में जाने से पहले अपने नाक को मास्क या गमछा से अच्छी तरह ढंके। साथ ही चिकित्सकीय परामर्श अवश्य लें। मौसम में बदलाव भी लोगों के फेफड़ों प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है, लिहाजा सुबह-शाम विशेष सतर्कता बरतें।
इनसेट—
पटाखे सेहत के लिए खतरनाकः डा.आरबी शरण
चंदौली। अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी डा.आरबी शरण का कहना है कि पटाखों बेहर खतरनाक है। इसलिए पटाखों से पूरी तरह से तौबा करने में ही समझदारी है। पटाखों का शोर और उसका धुंआ हमारी साँसों और फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है। पटाखों से निकलने वाला धुंआ व शोर किसी बीमार की स्थिति को गंभीर बना सकता है, इसलिए उनका भी ख्याल रखना हम सभी की जिम्मेदारी है। ध्यान रखें कि सेनेटाइजर लगे हाथों से कतई पटाखों को न छुएं क्योंकि सेनेटाइजर का अल्कोहल व अन्य केमिकल पटाखों के बारूद के संपर्क में आते ही उत्साह के रंग में भंग डाल सकता है।