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Sunday, September 8, 2024

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Loksabha Election 2024 : चुनाव की ज़हरीली हवा में सांस लेता आदमी

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

झँटो उस्ताद आज कलफ़ किया लकदक कुर्ता और पायजामा पहने , चौमुहानी से तीर की तरह मामा के पान की दुकान की ओर मुड़े , और पहुँचते ही दन से पान की फरमाइश कर बैठे । मामा ने कनछी देखा फिर अपने काम में मशगूल हो गए । दुकान पर भीड़ अधिक थी । मामा ग्राहक निपटाने में लगे हुए थे । पान की तलब उस्ताद के मन में हिरन की तरह कुलांचे भर रहा था । वे इधर उधर देखते मन को दबाने का यत्न कर रहे थे । तभी राम खेलावन वहाँ पहुँच गए । उस्ताद का चरण रज लिया और बोले – “अरे उस्ताद , अब तो चुनावी बिगुल बज गया है । हवा क्या कह रही है । “
” हवा ऐसे ही कुछ नहीं कहती मियां , इसके लिए हवाई किले बनाने पड़ते हैं ।”

” क्या मतलब।” राम खेलावन ने पूछा
” वाह बेटा , हमारी बिल्ली हमीं से म्याऊं । तुम तो ऐसे कह रहे हो , जैसे तुम न टीवी देखते हो , न अखबार पढ़ने हो ।”
“मैंने कब कहा उस्ताद जरुर देखता हूँ । “
“फिर झूठ मुठ का अनाड़ी मत बनो । क्या तुम नहीं जानते आजकल नेता हवा बनाने के लिए क्या कुछ कर रहे हैं ।”
“साफ साफ बताइए न , आप कहना क्या चाहते हैं ।” राम खेलावन पूरी विनम्रता से बोला ।
उस्ताद खुल चुके थे , सो बोलना शुरू किया ।” देखो राम खेलावन , ये जो चुनाव है न , बस कहने को लोकतांत्रिक व्यवस्था का हिस्सा है , इसके पीछे राजतंत्र वाला ही फार्मूला चलता है । अब भारतीय मीडिया को देखो कैसे चिल्ला रही है, किसके लिए चिल्ला रही है । किस किस मुद्दे पर चिल्ला रही है । यह किसी से छिपा नहीं है । वह वही दिखाना , पढ़ाना पसन्द करते हैं । जो राजा चाहता है । प्रजा के लिए , प्रजा के हितों का कब ध्यान रखा जाता है । आज भारतीय मीडिया दो बातों का विशेष ध्यान रख रही है । एक टी आर पी दूसरे विज्ञापन और दोनों चीजें राजा के इशारे पर पूरी हो जाती हैं।”

“उस्ताद जी, मैंने चुनाव की हवा के बारे पूछा , आप मीडिया की बधिया बैठाने लगे । “
“राम खेलावन , दरअसल बात यह है कि आजकल देश की हवा ही कुछ इस तरह से गड्ड मड्ड हो गयी है कि उसमें केवल चुनावी हवा को टटोलना थोड़ा मुश्किल काम है , फिर भी तुम पूछते हो तो बता देता हूँ । सुनो , चुनाव की हवा सत्ता के गलियारे से बह रही है । दागी से दागी नेता , सत्ता के गंगोत्री में डुबकी मार कर पवित्र हो जा रहे हैं । चाहे उनके ऊपर हत्या, छिनैती, फिरौती, बलात्कार जैसे सैकड़ो मुकदमें क्यों न हो ।

सत्ता की चकाचौंध में उनके दामन पर लगे दाग बिल्कुल दिखाई नहीं देते । ये भोली भाली जनता उनके फरेबी रूप को कैसे समझ पाएगी । देश की आबादी का बड़ा हिस्सा रोज रोटी के लिए जद्दोजहद करता है , ऐसे में मुफ़्त का राशन उनके ईमान को डगमगाने के लिए काफी है । देश के युवा का पुरुषार्थ अग्निवीर टाइप योजनाओं की उम्मीद में जय बोलने के लिए विवश है । उज्ज्वला योजना ने आधी आबादी का मन बड़े बड़े होर्डिंग और टीवी के विज्ञापनों से मोह रखा है । नेता, नेता कम अभिनेता ज्यादा लग रहे है। फिल्मी हीरो की तरह एक्शन दिखा रहे हैं और मजा मजाया डायलॉग भी बोल रहे हैं । ऐसा केवल सत्ता दल के नेता ही नहीं कर रहे हैं । बल्कि विपक्षी दल के बहुत से नेता भी स्वांग करने में जुटे हैं । एक नेता को किसान के खेत में फ़सल काटते देखा गया।

एक नेता को अपने समर्थकों के साथ चाय की दुकान पर चाय बनाते देखा गया । सत्ता दल की एक नेत्री ने मछली हाथ में लेकर प्रचार कर रही थी , जाहिर है मछुआरों की कोई बस्ती रही होगी । लोक तंत्र में सबसे बड़ा अभिशाप जाति व्यवस्था है । मग़र जब सत्ता तक पहुंचने की सबसे सुगम सीढ़ी जाति व्यवस्था ही है , तो क्यों नेता इसे हवा देंगे । जाति तो जाति धर्म भी कम जायकेदार मसाला नहीं है चुनाव के लिये । एक से एक स्वांग बनाये नेता लोग वोट के लिए घूम रहे हैं । किसी का मंदिर प्रेम दिखता है तो किसी का मस्जिद प्रेम । कुछ जगराते में जाते हैं तो कुछ इफ़्तार पार्टी । कोई किसी से उन्नीस नहीं है । सब बीस छूटते नजर आते हैं । पार्टियों के घोषणापत्र केवल घोषणा भर है । उसमें लोक हित की बात कम , लोक लुभावन बातें ज्यादा है । चुनाव जीतने के सबके अपने फार्मूले हैं । कहीं गाँव खरीदने की तैयारी हो रही है तो कहीं बस्ती , कहीं गुट तो कहीं छिटपुट वोट। कहीं दारू मुर्गा बंट रहा है । कहीं पैसा बांटा जा रहा है । कहीं काम कराने का प्रलोभन है तो कहीं नौकरी का कोरा आश्वासन।

नेता अपने आदमी बाजारों , कस्बो और गांवों में ऐसे तैनात करते हैं जैसे वे देवदूत हों । सबकी समस्याओं और अपने वोट के संदर्भ में बातें करते नहीं थकतें हैं । उनका प्रमुख गुण होता है , साथ ही अपने प्रत्याशी को देव पुरुष या अवतार घोषित करना। आज कल सोशल मीडिया भी कम महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा रही है । सत्ता पाने का एक हथकंडा यह भी है कि जनता को खूब गुमराह कैसे किया जाय । इसके लिए आजकल फेक आई डी बनाकर अपने अपने विपक्षी दलों पर कुतर्क के बलपर कीचड़ उछालना जरूरी पहल है । इससे जनता वोट में परिवर्तित हो जाती है । सुना तो यह भी जाता है कि कई पार्टी अपने प्रचार और विपक्षी पार्टी के दुष्प्रचार के लिए शोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं । इसके लिए बाकायदा आफिस बनाकर तेज तर्रार लोगों की नियुक्ति की गई है । उनका काम ही फर्जी और फेंक आईडी बनाकर अपने अपने विपक्षी दलों को जवाब देना । मजे की बात तो यह होती है कि उसे देखने या पढ़ने पर लगता है यह पब्लिक ओपिनियन है, जब कि ऐसा नहीं है । यह चाल घाट राजनीति में धड़ल्ले से चल रहा है।”

कहते कहते उस्ताद का ध्यान पान की ओर गया , “ममवा पान दे , मूड खराब हो गया ।” भीड़ छंट चुकी थी, मामा ने पान दिया तो मुँह में एक ओर ठूंसते हुए, चूना चाटा और बोले- “देखो राम खेलावन, चनावी हवा जहरीली हो गयी है, जिसमें सांस लेना आदमी के लिए कठिन होता जा रहा है , एक बात और……..
न जाने कौन जीतेगा न जाने कौंन हारेगा।
यकीनन जीत उसकी है जो ज्यादा गोल मरेगा ।।
पान घुलने लगा तो उस्ताद चुप हो गए । रामखेलावन समझ गए , अब उस्ताद बोलने से रहे । धीरे से आशीर्वाद लिया और चुपचाप खिसक गए ।

रामजी प्रसाद भैरव
रामजी प्रसाद भैरव

जीवन परिचय-
रामजी प्रसाद ” भैरव “
जन्म -02 जुलाई 1976
ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट – चहनियाँ
जिला – चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास “रक्तबीज के वंशज” को उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार ।
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में “शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर” है ।
कविता संग्रह – चुप हो जाओ कबीर
व्यंग्य संग्रह – रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

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