16.5 C
New York
Tuesday, October 22, 2024

Buy now

समन्वय की महिमा का सन्देश : डा. उमेश प्रसाद सिंह

- Advertisement -

Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार Dr. Umesh Prasad Singh

अभी-अभी चुनाव समाप्त हुआ है। मतगणना पूरी हुई है। परिणाम घोषित हो चुके हैं। सारी अटकलों, अनुमानों, आग्रहों, दुराग्रहों से संपोषित तर्कों के जाल-जंजाल को ध्वस्त करता जनादेश सबके सम्मुख उपस्थित हो गया है। एक्जिट पोलों के ढोल की पोल खोलता जनता का निर्णय जनतंत्र के आँगन में उतर आया है। उसके प्रकाश में अँधेरे में दबी-छिपी हुई वास्तविकताओं की विद्रूपताएँ उद्भासित हो उठी हैं। इसके प्रकाश में अतिशय आत्मविश्वास में डूबे हुए चेहरे की उतरी हुई रौनक भी साफ दिखने लगी है। अराजक महत्वकांक्षा की अनपेक्षित ग्लानि का गुबार भी समय की आँख को सूझने लगा है। नाना तरह के समूहों में शिकायत का अंधड़ भी धूल उड़ाने लगा है। बहुतों की जबान बदचलन हो उठी है। जाने कितने कितनों पर आँख तरेरने लगे हैं। धुँआ-धुँआ के बादलों के बीच हुआँ, हुआँ का शोर वातावरण को बदरंग बनाने में बेचैन दिखने लगा है। यह सब है। यह सब सतह पर है। सतह के नीचे गहराई में कोई गंभीर ध्वनि गूँज रही है। उस ध्वनि को कोई सुने, न सुने,मगर वह गूँज रही है।

जो ध्वनि गूँज रही है, वह भारत की जनता की सामूहिक अस्मिता की ध्वनि है। वह ध्वनि भारतीय आत्मा की ध्वनि है जो शताब्दियों, सहस्त्राब्दियों से इस महादेश के शून्य के अनन्त अन्तराल में गूँजती रही है। वह ध्वनि भारतीय जन में जीवित जनतंत्र की ध्वनि है। यह ध्वनि भारतीय जनतंत्र की दशा-दुर्दशा को लेकर उठने वाले प्रश्नों के उत्तर की ध्वनि है। यह ध्वनि कह रही है कि हमारे जनतंत्र की आत्मा संसद में नहीं, संविधान में नहीं, सरकार में नहीं, विपक्ष में नहीं,वह भारतीय जन में बसती है।

यह सच है कि भारतीय जन का स्वरूप देश में भी और देश के बाहर भी सम्मान जनक पद को प्राप्त नहीं है। सत्ता के आकांक्षी राजनीतिक, श्रेष्ठताबोध की ग्रंथि से ग्रसित बुद्धिजीवी और आर्थिक अधिपत्य के अन्धे अहंकार में डूबे उद्योगपति भारतीय जनता की गँवार छवि के ही प्रस्तोता बने रहने में गर्व का अनुभव करते है। मगर यह भी सच है कि भारतीय जनता इन सब धारणाओं, अवधारणाओं की परवाह नहीं करती। उसका विश्वास विशेषण में नहीं रहता। वह संज्ञा बने रहने की ही हमेशा से उपासक रही है। कोई कुछ भी कहें, वह सबसे बेखबर अपने सहज जीवन में व्यस्त और मस्त रहती है। वह घटनाओं, परिघटनाओं के प्रति त्वरित प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करती। अवसर की प्रतीक्षा करने का धैर्य उसने विरासत में पा रखा है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि भारतीय जनता नींद से अनुकूल अवसर आने पर जागती है। जब जागती है तो इतिहास के प्रवाह में विवेकपूर्ण सार्थक हस्तक्षेप करके उसे सही दिशा में अग्रसर होने को प्रेरित करने में सफल होती है। खण्डित दृष्टिकोण की संकुचित सीमा से बाहर निकल कर तटस्थ और समग्र बोध में देखने पर भारतीय जनता के सामूहिक मंतव्य की महत्ता को समझा जा सकता है।

अभी-अभी सम्पन्न चुनाव से प्राप्त जनादेश को गहराई से समझा जाय तो यह दलगत राजनीति के स्वीकार या नकार से अधिक व्यंजक संकेतों को उद्घटित करता है। यह जनादेश अतियों के अस्वीकार का जनादेश है। अतिआत्मविश्वास के दम्भ के विरूद्ध जनादेश है। अपने को शक्तिमान और सर्वसमर्थ समझ लेने के भ्रम के भंजन का जनादेश है। यह जनादेश संकीर्णताओं से उबरने की सलाह का जनादेश है। पाखण्ड को मुँह न लगाने का जनादेश है। यह जनादेश विद्वेष के प्रसार के प्रतिरोध का जनादेश है। यह किसी दल के समर्थन या विरोध के निहितार्थ पर अवलम्बित जनादेश नहीं है। यह पक्ष और विपक्ष के सारे दलों के प्रति अपनी-अपनी आतियों औ अपनी-अपनी संकीर्णताओं से बाहर निकलने के अनुरोध का उद्घोष है। यह जनता के सामूहिक विखंडन की वृत्ति से बाहर निकलने के अनुरोध का उद्घोष है। यह जनता के सामूहिक अस्तित्व के बँटवारे के विनम्र विरोध की अभिव्यक्ति है। यह राजनीति में भाषा की मर्यादा के अनुपालन के अनुरोध का आमंत्रण है। यह राजनीति से व्यवहारिक पाखण्ड से विमुक्त होने का आह्वान है।

भारतीय जन और भारतीय जनतंत्र कई तरह की वैचारिक अतियों की विकृतियों के विक्षोभ का प्रहार सह चुका है। उसने छद्म धर्मनिरपेक्षता की प्रताड़ना की पीड़ा को भोग लिया है। जड़ों को हिलाकर उलसा देने वाली धर्म के ऊफान की आँधी के आलोड़न का दंश झेल चुका है। देश की समग्रता को खण्ड-खण्ड में विखण्डित करने के स्वार्थी मंसूबों की मार से सिहर चुका है। अब यह सब वह नहीं चाहता। अब वह लोकतंत्र की उदार गरिमा के उज्ज्वल अभिषेक की आकांक्षा की उपासना में समर्पण चाहता है।

अब इस महादेश की अन्तर्चेतना एक विराट धर्म प्राण समाज व्यवस्था की स्थापना की आवश्यकता की तरफ संकेत कर रही है। अपनी विरासत की गरिमा के अनुकूल उदार और समावेशी सोच के विस्तार के लिए अग्रसर होने का आह्वान कर रही है। असहमतियों को दबाने, कुचलने और उनका उपहास करने की जगह विरूद्धों के बीच सामंजस्य की साधना में प्रवृत्त होने की प्रेरणा दे रही है। विचार के लिए विचार करने की जगह, श्रृंगार के लिए विचार करने की जगह जीवन में विचार की प्रतिष्ठा के लिए उत्प्रेरित कर रही है। प्रकृति में भिन्नताओं का होना स्वाभाविक है, भिन्नताओं के आधार पर संघर्ष की प्रकृति समाज को अशांत करती है, विश्रृंखल करती है, बलहीन करती है। भिन्नताओं को अभिन्नता के सूत्र में गूँथकर समन्वय की साधना से जिस माला का निर्माण होता है, उससे मनुष्यता के सौन्दर्य की शोभा बढ़ती है। शासन व्यवस्था अधिकार सुख के विलास के लिए नहीं होनी चाहिए। उसे मनुष्यता के उत्थान की उत्प्रेरणा के लिए होना चाहिए। नायकत्व अहं के आस्फालन में नहीं है। अपनी श्रेष्ठता के दम्भ के विस्फोट में नहीं है। नायकत्व की सार्थकता व्यक्तिगत अहं के सामूहिक अहं में विलय होने की प्रक्रिया में चरितार्थ होती हैं।

यह जनादेश कहना चाहता है कि दलों को दलीय हितों की संकुचित सीमा से बाहर निकल कर राष्ट्रीय उत्थान के निमित्त समन्वय की विराट चेतना के स्पन्दन से जुड़ने की जरूरत है। आपसी सद्भाव के विकास को वरीयता देने में प्रवृत्त होना है। जनता कहना चाहती है कि भारतीय राजनीति को जन को वोट की तरह और जनसमुदाय को वोट बैंक की तरह देखने की बजाय उसे मनुष्य के रूप में देखना अधिक महत्वपूर्ण है। बिखरे हुए मनुष्यों में बिखरी हुई विद्युतशक्ति के निरुपाय कणों को समन्वित करके मनुष्यजाति के मंगल विधान के महास्वप्न को साकार करने के अभियान में नियोजित करने के संकल्प का उदय ही नए युग के सूर्योदय का प्रतीक है। यही हमारी महत्तम विरासत है। इस विरासत का वंदन हमारे समय की सबसे बड़ी मांग है। हमारा समय हमारे समय के नायक को जयशंकर प्रसाद के शब्दों में पुकार रहा है-
शक्ति के विद्युतकण जो व्यस्त, विकल बिखरे हैं हो निरुपाय। समन्वय उनका करे समस्त, विजयिनी मानवता हो जाय।। एक समावेशी, उदार और सहिष्णू सामाजिक निर्माण की अपेक्षा भारतीय अस्मिता की सुचिंतित पुकार है।

Dr. Umesh Prasad Singh
Lalit Nibandhkar (ललित निबंधकार)
Village and Post – Khakhara,
District – Chandauli, Pin code-232118
Mobile No. 9305850728

Related Articles

Election - 2024

Latest Articles

You cannot copy content of this page

Verified by MonsterInsights