दो दशक से गंगा कटान की जद में धानापुर इलाके के दर्जनों गांव
अबुल खैर ‘खुशहाल’
Young Writer, धानापुर। बारिश का बेसब्री से इन्तजार हो रहा है। ऐसे में एक बड़ा और गरीब तबका ऐसा भी है जो यह दुआएं कर रहा है कि बारिश ना हो। क्योंकि बारिश हुई तो कईयों की उम्मीदें व उनके अरमान बारिश के पानी के साथ हमेशा-हमेशा के लिए बह जाएंगे। क्योंकि बारिश होगी तो गंगा नदी में उफान आएगा जो अपने साथ कछार पर मौजूद कीमती व उपजाऊ जमीन को अपने साथ बहाकर दूर ले जाएगी। पीछे कुछ रह जाएगा तो वह है गरीबी, बेबसी, लाचारी और उम्मीद को खोने का गम। जी हां! यह किसी फिल्म के मार्मिक दृश्य का प्रसंग नहीं, बल्कि धानापुर इलाके में गंगा कटान का दंश झेल रहे गरीब, किसानों की दास्तां है जो दिन गुजरने के साथ ही कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी की तरह तेजी से पांव पसार रही है और जिससे हताहत होकर गंगा के तटीय इलाके के लोग दर्द को कराह रहे हैं, लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उनकी इस पीड़ा को चुनावी मुद्दे के रूप में जोर-शोर से उठाया जाता है, लेकिन चुनाव बाद लोगों के जीवन, उनकी आजीविका व उनके आवास-निवास से जुड़ी इस गंभीर समस्या को हर कोई नजर अंदाज करता चला आ रहा है। ऐसे में एक बार फिर बारिश के आगमन के साथ ही तटीय इलाके में निवासरत लोग अपनी जमीन व अपना मकान बचाने की जद्दोजहद में जुट गए हैं।

विदित हो कि धानापुर इलाके में गंगा कटान से दीयां, पसहटा, बुढ़ेपुर, नौघरा, नरौली, बड़ौरा, सकरारी, सोनहुली, नगवा, मेढ़वा समेत दर्जनों दो दशक से गंगा कटान की चपेट है। जाहिर सी बात है कि मर्ज पुराना है तो उसका दुष्प्रभाव भी प्रभावित इलाके और वहां के रहवासियों के लिए उतना ही घातक और पीड़ादायी होगा। स्थानीय पुरनिए बताते हैं कि गंगा कटान हर साल खेती-किसानी के लिहाज से कीमती व उपजाऊ जमीन को काटकर अपनी धरा में समाहित कर लेती है। यह सिलसिला अनवरत जारी है और इससे लगातार तटीय क्षेत्र के किसान भूमिहीन होते जा रहे है। एक वक्त था जब गंगा का तटीय इलाका मसालों के खेती की खुशबू गमक उठता था, लेकिन ना जब वो जमीन है और ना ही अब उन पर मसालों की खेती हो पा रही है। एक तरफ जहां जमीन खोने से किसान भूमिहीन होने का दंश झेल रहे हैं। वहीं हर वर्ष कृषि योग्य भूमि पर खेती-बारी से होने वाली आमद भी गंगा कटान की भेंट चढ़ गयी। देखा जाए तो गंगा कटान सैकड़ों परिवार की बर्बादी व तंगहाली का कारण बना तो इसके निदान के लिए गांव स्तर से आवाज उठी, जो धानापुर ब्लाक मुख्यालय पहुंचने के बाद जिला मुख्यालय और प्रदेश स्तरीय मुद्दा बनी। यहां तक की इसे केंद्र सरकार तक पहुंचाकर कटान से मुक्ति दिलाने का आग्रह व अनुनय-विनय किया गया, लेकिन आश्वासन के सिवान क्षेत्रीय लोगों को कुछ नहीं मिला। नतीजा आज कटान विकराल रूप से ले चुका है। स्थानीय लोग बताते हैं कि कटान से गंगा नदी की धारा भी बदल गयी है। उनका आरोप है कि जिम्मेदार अधिकारी, स्थानीय प्रशासन के साथ ही सरकार का रवैया गंगा कटान के प्रति उदासीन रहा। वहीं राजनेता, विधायक, सांसद व मंत्री केवल मंच से अपनी उपलब्धियां गिनाने में मशगूल रहे। जब भी चुनाव आते हैं कि प्रचार के शोर में गंगा कटान का मुद्दा उठाया जाता है, लेकिन उस पर कोई कार्यवाही नहीं होती। चुनाव बीतने के बाद सभी नेता इस मुद्दे को भूल जाते हैं। ऐसा ही विधानसभा चुनाव में भी हुआ, लेकिन चुनाव बीते तीन माह से अधिक का वक्त हो गया। बावजूद इसके न तो क्षेत्रीय विधायक ने इस बारे में कुछ किया और ना ही क्षेत्रीय सांसद व मंत्रिगण की ओर से कोई पहल हुई। इसका खामियाजा आज हम सभी ग्रामीण भुगत रहे हैं।





दुश्वारियों के बीच कट रही गरीबों की जिन्दगी
धानापुर। गंगा कटान से प्रभावित गोपाल निषाद, चिन्ता निषाद, परशुराम निषाद, रानी निषाद, रामदुलार व नरसिंह यादव का कहना है कि सरकार व जनप्रतिनिधियों ने उन्हें हमेशा छला है। आज स्थिति यह है कि गंगा कटान से हमारी जमीनें और कईयों के मकान नदी की धारा में समा चुके हैं। बरसात में नदी उफान पर होती है तो उसकी लहरे हम सभी के घर की दहलीज की नींव को छूने लगता है। कइयों के मकान ऐसी स्थिति में है कि वह कब धारा में समा जाए कहा नहीं जा सकता है। इसी डर के साए में हम सभी की जीवन जैसे-तैसे कट रहा है। बारिश जाते ही जर्जर कच्चे मकानों को तिरपाल से ढककर हम सभी अपने परिवार को एक अदद आशियाना जैसे-तैसे मुहैया करा पा रहे हैं। यदि राजनेताओं व सरकार ने तनिक भी ध्यान दिया होता है तो आज ऐसी विषम स्थिति हम लोगों के समक्ष नहीं होती है। कहा कि यदि सरकार व राजनेता आज भी हमारी समस्या को लेकर गंभीर हो जाएं तो हमारे जीवन से दुख-तकलीफ काफी हद तक कम हो जाएगा।
