Young Writer, चंदौली। राजनीतिक में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की कवायदों का लगातार आघात पहुंचाया जा रहा है। भले ही महिला आरक्षण के मजबूत आधार पर नारी शक्ति का राजनेता के रूप में चयन सुनिश्चित हो रहा है, लेकिन उनकी भागीदारी आज भी नगण्य प्राय ही है। ऐसा क्यों, किसलिए और किनके प्रयासों से हो रहा है। इसे दुरूस्त करने की जहमत उठाने वाला कोई नहीं है। इसकी ताजा झलक शनिवार को जिला पंचायत के सामान्य बैठक में देखने मिला। बैठक में मात्र दो महिला जनप्रतिनिधि ही नजर आयीं।
देखा जाए तो चुनाव में कुल 12 महिला जनप्रतिनि सदन के लिए चुनी गयी है, लेकिन इन महिला जनप्रतिनिधियों को अपने क्षेत्र के जन की आवाज बनने का मौका बहुत कम मिल पाता है। उनकी जगह प्रतिनिधि बने उनके पति ही बैठक के पटल में गरजते-चमकते नजर आते हैं। हालांकि वह क्यों और किस आधार पर बैठक के पटल पर मौजूद हैं इस बाबत कभी जवाब-तलब नहीं होता, लिहाजा यह एक प्रथा का स्वरूप लेता जा रहा है। चंदौली में जिला पंचायत के कुल 35 सेक्टर निर्धारित है। इसमें 12 सेक्टर महिला जनप्रतिनिधियों के निर्धारित है, जिसमें छह सामान्य जाति, तीन अनुसूचित जाति एवं जनजाति तथा तीन अतिपिछड़े वर्ग की महिलाओं के लिए आरक्षित था और इन्हीं वर्ग की महिलाएं जनमत से चुनी गयी। लेकिन चुनाव के बाद निर्वाचित होने का प्रमाण-पत्र लेकर ये फिर अपने घर-परिवार संभालने के मूल काम में जुट गयी। राजनीति व जनसेवा का जिम्मा अब उनके पतियों द्वारा प्रतिनिधि बनकर संभाला जा रहा है। यहां तक आयोजित होने वाली सरकारी बैठकों में भी इनके पति ही उपस्थित नजर आते हैं। जैसा कि बुधवार को जिला पंचायत की सामान्य बैठक में नजर आया। यहां मात्र बबिता यादव व सीता जिला पंचायत सदस्य ही नजर आयीं। शेष 10 महिला जनप्रतिनिधि बैठक की पहल से गायब थीं। विभागीय सूत्रों की माने तो इस वक्त जिला पंचायत की बैठक में पति प्रतिनिधियों कब्जा बना हुआ है। अब देखना यह है कि यह प्रथा आखिर कब तक अनवरत जारी रहेगी।