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Friday, October 17, 2025

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शहाबगंजः वनांचल की पहाड़ियों पर आज भी कायम है ‘नो नेटवर्क’ जोन

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ग्रामीणों ने डीएम ईशा दुहन को पत्र देकर समस्या से कराया अवगत

Young Writer, इलिया। हैलो-हैलो.. आवाज नहीं आ रही, कौन बोल रहे हैं? नेटवर्क प्राब्लम है। ये शब्द अक्सर शहाबगंज के वनांचल के गांवों में सुनने को मिल जाते हैं। यहां के लोग इस समस्या से अक्सर परेशान होते देखे जाते हैं। वर्तमान में मोबाइल फोन पर बातचीत के जरिए कई जरूरी व महत्वपूर्ण काम निपटा लिए जाते हैं। जिससे भागदौड़ व अनावश्यक परेशानी से सभी बच सके। लेकिन शहाबगंज के ढोढनपुर, वनभिसमपुर, ताला, तेंदुई, छित्तमपुर के लोगों के लिए मोबाइल नेटवर्क ही सबसे बड़ी परेशानी है। गत दिनों माल्दह गांव में आयोजित जन चौपाल ने ग्रामीणों ने डीएम ईशा दुहन को पत्रक देकर पहाड़ी इलाके को मोबाइल नेटवर्क से जोड़ने की मांग कर चुके हैं।
ग्रामीणों को अगर फोन पर बात करनी हो तो पेड़ या पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है, ताकि नेटवर्क मिल सके। चंदौली जिला मुख्यालय से 40-50 किलोमीटर दूर स्थित दक्षिण पहाड़ी इलाके का ये हाल है। एक ओर सरकार डिजिटल इंडिया की बात करती है तो दूसरी ओर शहाबगंज विकास खण्ड के कई गांव ऐसे हैं, जहां आज भी मोबाइल की घंटियां नहीं बजती हैं। अगर इमरजेंसी हो और किसी को कॉल करना हो तो ये स्थानीय लोगों के लिए आसान नहीं होता है। इसके लिए ग्रामीण काफी जद्दोजहद करते हैं। किसी तरह एक कॉल करने के लिए उन्हें पेड़ पर और पहाड़ पर चढ़कर घंटों जुगत करना पड़ता है। क्षेत्र के लोगों को मोबाइल पर बात करने के लिए मशक्कत करनी पड़ती है। वहीं डिजिटल इंडिया का सपना दिखाने वाली सरकार भी इन गांवों के लोगों से दूरी बनाए हुए है। ग्रामीणों को नेटवर्क की सबसे ज्यादा समस्या कोरोना महामारी के कारण हुई। कोरोना महामारी के कारण वर्ष 2020 मार्च महीने में हुए लॉकडाउन में सभी स्कूल-कॉलेजों को अनिश्चितकालीन समय तक के लिए बंद कर दिया गया था। जिसके बाद स्कूल व कॉलेजों के बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन करायी गई। लेकिन इन ऑनलाइन क्लासों का फायदा क्षेत्र के बच्चे नहीं उठा पाए, क्योंकि यहां नेटवर्क उपलब्ध नहीं था। ग्रामीणों ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि कई तरह की दिक्कतें आती हैं। एंबुलेंस को नेटवर्क नहीं होने के कारण सही समय पर सूचना नहीं दे पाते हैं। वहीं, पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण सांप, बिच्छू सहित अन्य जहरीले जानवरों के काटने की घटनाएं भी ज्यादा होती है। इन घटनाओं के दौरान समय पर इलाज नहीं मिल पाता है। कोई भी हादसा होने पर इन गांव में रहने वाले लोगों को तुरंत मदद नहीं मिल पाती है। इसके अलावा झगड़ा या अन्य कोई घटना होने पर गांव में पुलिस को सूचना देना अभी संभव नहीं हो पाता है। अब तो परेशानी इतनी है कि अब जहां नेटवर्क आता है, उस जगह को लोगों ने चिन्हित कर लिया है। वहां खड़े होकर ही अब ग्रामीण अपने रिश्तेदारों से बात करते हैं, ऐसे में लोगों का जीवन खासा परेशानी भरा रहता है।

सड़क के साथ मोबाइल नेटवर्क से जुड़ना जरूरी
इलिया। ग्राम प्रधान रामअशीष मौर्य
का कहना है कि सबसे ज्यादा दिक्कत बीमार और गर्भवती महिलाओं को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस बुलाने में आती है. ग्रामीणों का कहना है कि अगर ऐसे हालात रहे तो डिजीटल इंडिया का सपना कैसे पूरा होगा। आने जाने के लिए सड़क तक नहीं है। नेटवर्क की समस्या है। किसी का कॉल आने पर पेड़-पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है। नेटवर्क नहीं होने के कारण बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई नहीं कर सके। सरकार से हमारी मांग है कि रोड के साथ ही नेटवर्क की भी व्यवस्था की जाए।

नेटवर्क के चक्कर में घंटों हो जाता है बर्बाद
इलिया। ग्रामीण एहसान अली
का कहना है कि पहाड़ी क्षेत्र से घिरा होने के कारण दूर-दूर तक मोबाइल टॉवर नहीं मिलता है। अगर किसी को बहुत जरूरी बात करनी हो तो पहाड़ी पर जाना पड़ता है। रात के समय कोई इमरजेंसी होने पर सुबह का इंतजार करना पड़ता है। जंगल से आने जाने में घंटों बर्बाद होता है। मोबाइल में बात करने में भी परेशानी होती है। पेड़ पर चढ़ना पड़ता है। किसी से बात करने के दौरान दो चार बार तो फोन कट होना आम बात है।

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