Young Writer, चंदौली। मुहर्रम की नौवीं तारीख को नगर के अजाखाना-ए-रजा में आखिरी मजलिस खिताब फरमाते हुए मौलाना अबू इफ्तिखार ने समाज के सभी धर्मों में सामंजस्य की जमकर वकालत की। बताया कि वैमनस्यता फैलाना कभी भी इस्लाम का हिस्सा नहीं रहा, जो लोग समाज को बांटने का काम करते हैं वो किसी भी सूरत में मुसलमान नहीं हो सकते। कहा कि रसूले पाक ने हमेशा देश प्रेम की वकालत की इसलिए अपने मुल्क से मुहब्बत करना हर मुसलमान का फर्ज है। मौलाना ने मजलिस के बाद देश की सुख और समृद्धि की दुआ भी की।
उन्होंने बताया कि इमाम को हिंदुस्तान से भी विशेष लगाव था और अपने आखिरी समय में जब यजीद इमाम को लेकर घेराबंदी कर रहा था इमाम हुसैन हिंदुस्तान आना चाहते थे लेकिन सेना के हमले की वजह से इमाम की अंतिम इच्छा अधूरी रह गए। दसवीं मुहर्रम को जब इमाम हुसैन के सारे साथी और परिजन कत्ल कर दिए गए तो इमाम ने पचपन बरस की उम्र में घोड़े पर सवार होकर लाखों की फौज के सामने अकेले साहस और शौर्य का अद्भुत प्रदर्शन किया। यजीद की फौज ने छल बल से इमाम पर हमला किया और धोखे से शहीद कर दिया। मजलिस के बाद सिंकदरपुर और नगर के तमाम अज़ादारों ने नौहाख्वानी और मातमजनी की। इस दौरान मायल चंदौलवी, दानिश कानपुरी, गजन्फर इमाम, अली इमाम, रियाज अहमद, नसीम इत्यादि मौजूद रहे।