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Tuesday, February 4, 2025

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झण्टों उस्ताद का सपना

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

झँटो उस्ताद को नींद का पहला झोंका आया ही था कि वह सपनों की दुनियां में विचरने लगे। नीले आकाश में सफेद सफेद बादल उनके आस पास घेरा बना कर खेल रहे थे । कहीं सुंदर सुंदर अप्सराएं हंसी ठिठोली करती चली जा रही हैं । कोई कोई तो झँटो उस्ताद को देखकर मुस्कुरा उठती । उस्ताद को भी अपनी बढ़ती उम्र का आभास नहीं था । वह युवा की तरह आनन्द के लहरों में गोते खा रहे थे । तभी राजा का स्वर्ण रथ उनकी ओर आता दिखाई दिया । रथ पर कई लोग सवार थे । जो हवा में हाथ हिला रहे थे । राजा भी विनम्रता से अभिवादन में हाथ जोड़े मुस्कुरा रहा , हालांकि मुस्कुराहट का साथ उसका चेहरा नहीं दे रहा था, फिर भी वह जबरजस्ती मुस्कुरा रहा था । कभी कभी रथ पर सजे पुष्पों को वह इधर उधर फेंक कर खुश हो रहा था।

फिर जाने कैसे अधनंगे लोगों की भीड़ राजा के सामने झुक झुक कर अभिवादन करने लगी । भीड़ की कृतज्ञता ऐसी थी कि जैसे उनका जीवन राजा का ऋणी है। राजा के रथ पर सवार लोग भीड़ देखते ही रथ से उतर कर राजा के फोटोयुक्त कार्यों के पर्चे भीड़ में बांटने लगे। भीड़ के चेहरे पर मुस्कान तैरने लगी । धीरे धीरे भीड़ बढ़ने लगी । अचानक भीड़ इतनी बढ़ गयी कि राजा का रथ मन्थर गति से चलने लगा । भीड़ रथ के दोनों किनारों पर चलने लगी । राजा भाषण देने लगा । वह एक एक कर भीड़ की दुःखती रग पर हाथ रखने लगा । भीड़ सुबकने लगी । फिर राजा ने दुःख दूर करने के सपने दिखाने लगा । भीड़ मुस्कुरा उठी । भीड़ के कुर्ते में जेबे नहीं हैं ।

राजा उपहार बांटने लगा । उपहार लोगों के हाथों में अट नहीं पा रहे थे । वे सिर पर रख कर भागने लगे । भीड़ छंटते ही रथ आंखों से ओझल हो गया । उस्ताद बादलों के साथ खेलते हुए आगे बढ़ गए । एक जगह नर पुंगवों का समूह रुदन कर रहा था । फिर देखते ही देखते रोटी के लिए लड़ने लगे । रोटी किसी के हाथ नहीं लगी । सब मन मार कर बैठ गए । उनके रोने का क्रम वैसे ही जारी था । उनका समवेत रुदन उस्ताद के मन को आहत कर रहा । उनकी प्रफुल्लता गायब हो गयी । उसके स्थान पर अवसाद ने मन को आवृत्त कर लिया । वे रुदन के स्वर को अनसुना नहीं कर सके । उनके पाँव स्वतः उधर मुड़ गए । पास आते ही उस्ताद ने उनसे पूछा -” आप लोग कौन हैं , क्यों रो रहे हैं ।” इतना पूछना भर था । उनका रुदन और तेज हो गया। उस्ताद उन्हें सांत्वना दे रहे थे । उन्होंने रोते हुए बताया ” हम लोक तंत्र की आत्मा हैं । हमारी दशा का जिम्मेदार राजा है।”

उस्ताद ने कहा-” लेकिन राजा तो लोकप्रिय है । वह लोगों को उपहार बांटता है । राजा के साथ भारी भीड़ है । ” लोगों ने कहा ” भीड़ को मूर्ख बनाया जा रहा है , हमें कुचला जा रहा है । “
” वह कैसे “उस्ताद ने आश्चर्य से पूछा
” देश में युवाओं को नौकरी न देकर , उन्हें भरमाया जा रहा है।

रोजगार के नाम पर अस्थिर जीवन दिया जा रहा है । महज कुछ सालों का रोजगार फिर सड़क पर , क्या इसी दिन के लिए युवाओं ने राजा को चुना था । राजा का धर्म के नाम पर लोगों को लड़ा कर , नफ़रत फैलाना क्या उचित है । विकास के नाम पर लोगो को भर्मित करना क्या ठीक है । देश की संपत्ति को अपने फायदे के लिए बेच देना ठीक है । हमारा राजा झूठ ज्यादा बोलता , क्या उसे यह शोभा देता है । अपने पूर्ववर्ती राजाओं को गाली देता है , क्या यह उचित है । वह अपने को इंसान की जगह भगवान मानता है । उसकी प्रजा भेड़ बकरियों की तरह है । जो समय आने पर वोट में तब्दील हो जाती हैं । भय , लालच , धर्म , वैमनस्यता आदि उसके हथियार हैं । जिसे वह समय समय पर प्रजा पर छोड़ता है । “
” इसमें गलत क्या है , सभी राजा करते हैं , उसने भी किया। ” झँटो उस्ताद ने टटोलने का प्रयास किया।

“यहाँ का नागरिक अब बौद्धिक नहीं रह गया है , जो खुद का विचार रख सके । वह राजा के तोतों का पाठ दुहरा रहे हैं। तोतें राजा का रटाया पाठ घूम घूम दुहराते हैं । प्रजा वही राग दुहरा रही है । जहाँ तक तुम्हारा कहना है कि सब राजा ऐसा ही करते हैं , तो तुम्हारा सोचना गलत है । हमारा राजा स्वयं को महिमामण्डित करने में जुटा है । सुना है स्वयं को भगवान का अवतार घोषित कर दिया है । अब वह दिन दूर नहीं जब स्वयं को पूजा करवाने की घोषणा कर दे।”
संवाद जोर पकड़ा ही था कि दरवाजे ठकठक से झँटो उस्ताद की नींद खुल गयी । देखा टी.वी चल रहा है । चुनाव का जुलूस अपने नेता का जयकारा लगा रहा है ।

जीवन परिचय-
रामजी प्रसाद ” भैरव “
जन्म -02 जुलाई 1976
ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट – चहनियाँ
जिला – चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास “रक्तबीज के वंशज” को उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार ।
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में “शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर” है ।
कविता संग्रह – चुप हो जाओ कबीर
व्यंग्य संग्रह – रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

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