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Sunday, June 1, 2025

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जागरण की मुनादी : Dr. Umesh Prasad Singh

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Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार Dr. Umesh Prasad Singh

कवि धूमिल साहित्य की दुनिया में अपनी सोच और अपने भाषिक तेवर को लेकर एक मुहावरे की तरह स्थापित हैं। भाषा में मुहावरा बन जाना आसान नहीं होता। मुहावरे रोज-रोज नहीं बनते। धूमिल का काव्यबोध अपने समय की व्यवस्था से उग्र असहमति और उसकी बेधक भर्त्सना का काव्यबोध है। धूमिल ने कविता में सबसे नया भर्त्सना का सौन्दर्यबोध सृजित किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धूमिल की भर्त्सना में किसी तरह की कुण्ठा नहीं है। उनकी भर्त्सना आकुंइ है। व्यवस्था में अव्यवस्था की अराजकता को भाषा की अराजक शक्ति से धूमिल ने जिस तरह उद्घाटित किया है, वह अन्यतम है। संवेदना और भाषा के क्षेत्र में नये इलाकों का उन्मोचन धूमिल का उद्वेलनकारी अवदान है।

धूमिल की कविता में उद्वेलन की अपूर्व क्षमता है। उनकी कविता अपने पाठक को आँधी की तरह हिला देती है। नहीं, वे केवल फुनगियों को, टहनियों को, डालों को नहीं हिलाते वे मजबूत तनों को झकझोर कर जड़ तक को हिला देते हैं। धूमिल की कविता पढ़ने वाले को उप्तप्त भी करती है और अनुतप्त भी करती है। उनकी कविता भ्रामक विश्वास को तोड़ सकने की सामर्थ्य से सम्पन्न है। भ्रम को विश्वास समझकर अपने को सम्पन्न समझने वाली समझ को धूमिल की कविता एक धक्के में ही एक बारगी विपन्न बना देती है। विपन्नता बोध का अद्भुत सौन्दर्य धूमिल की कविता का विलक्षण वैशिष्ट्य है।

भारतीय लोकतंत्र की विडम्बनामूलक भयावह सच्चाई को सबसे पहले महसूसने वाले और उसकी अभिव्यक्ति करने वाले धूमिल हिन्दी के सबसे बड़े कवि हैं। हमारे देश में जब लोकतंत्र की गरिमा का गौरव गान किसिम-किसिम के लोग किसिम-किसिम से गा रहे थे। गा-गाकर भारतीय जन को भरमा रहे थे धूमिल उसकी भयानक हिंस्र वृत्ति को परखकर-पहचानकर उसके दोगले इरादों को भाँप कर कविता में उसकी असलियत को उजागर करने के लिए सन्नद्ध भाषा को गढ़ने में तल्लीन हो रहे थे। जब हमारा लोकतंत्र मेकअप-मंडित मुखमण्डल में मंच पर अवतरित होकर विवश भारतीय जन की वंचना की वेदना को बहलाने और बहकाने की नौटंकी के आयोजन कर रहा था। धूमिल कविता के माध्यम से देश की जनचेतना को आगाह कर रहे थे।

दरअसल, अपने यहाँ प्रजातंत्र एक ऐसा तमाशा है जिसकी जान मदारी की भाषा है। वस्तुतः धूमिल की कविता, सिर्फ कला, कौशल के हलको से ताल्लुक रखने वाली वाहवाही लूटने वाली चीज नहीं बल्कि वह पाखण्ड को उजागर करने वाली एक बेधक प्रक्रिया है, जो केवल भाषा में नहीं बल्कि भाषा में होने से पहले भी और भाषा में हो लेने के बाद भी निरन्तर क्रियाशील रहती है। इसीलिये वे कहते हैं-
‘‘कविता क्या है?। कोई पहनावा है?। कुर्ता पायजामा है?
ना भाई ना। कविता। शब्दों की अदालत में
मुजरिम के कटघरे में खड़े बेकसूर आदमी का। हलफनामा है
क्या यह व्यक्तित्व बनाने की। खाने कमाने की। चीज है?
ना भाई ना। कविता। भाषा में। आदमी होने की तमीज है।……

धूमिल की कविता में आत्मबोध और युगबोध की आश्चर्यजनक संगति की अद्भुत और उद्दाम आकांक्षा अपने पूरे उफान में दिखाई देती है। उनकी यही आकांक्षा उन्हें भीड़ से अलग पहचान देती है और नारेबाजी के खोखलेपन से अलग धरातल पर प्रतिष्ठित करके व्यवस्था के बुनियादी प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।
धूमिल की कविता में आक्रोश की जबरदस्त गूँज गरगराती हुई सुनाई देती है। मगर वे सिर्फ सतही आक्रोश के कवि नहीं है। वे केवल तात्कालिक असहमतियों के कवि नहीं हैं। उनकी कविता केवल सामयिक विरोध की कविता नहीं है। धूमिल भावात्मक विद्रोह के कवि नहीं है। वे मुकम्मल विद्रोही कवि हैं। वे व्यवस्था की आन्तरिक संरचना में व्याप्त जनविरोधी चेतना की पहचान के कवि हैं। उनकी कविता जनपक्ष की जागृति के आह्वान की कविता है। उनकी कविता व्यवस्था के बुनियादी पाखण्ड को पहचानने के विवेक की कविता है। धूमिल की कविता अपने समय के विक्षोभ और विवेक का अद्भुत समन्वित स्वरूप रचने में समर्थ कविता है। वे भाषा में अपने समय के समग्र विक्षोभ को वाणी देते हैं और चेतना की जड़ता को जोतकर विवेक के बीज बोते हैं धूमिल सच्चे अर्थ में अपने समय के सचमुच किसान कवित हैं।

जनतंत्र के छद्म को जिस गहराई और बारीकी से धूमिल ने व्यंजित किया है, अन्यत्र दुर्लभ है। रोटी से खिलवाड़ करने वाले आदमी की पहचान का प्रश्न जिस पर समूची संसद मौन है, धूमिल की कविता का नितान्त मौलिक और जनतंत्र का सबसे मूल्यवान प्रश्न है। जैसे-जैसे लोकतंत्र का छद्म उजागर होता जा रहा है, इस प्रश्न की मूल्यवत्ता बढ़ती जा रही है। आज तो हालत ऐसी हो चली है कि रोटी से खिलवाड़ करने वाली प्रजाति के लोग संसद के भीतर धँसते जा रहे हैं।
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ
यह तीसरा आदमी कौन है?…
मेरे देश की संसद मौन है’’

कहने की जरूरत नहीं है कि आज वह तीसरा आदमी संसद के भीतर ही है और हर दूसरे आदमी के बाद तीसरी सीट बैठा आदमी धूमिल की कविता का तीसरा आदमी है। धूमिल की कविता की अन्तरात्मा प्रश्नों की आकुलता से भरी हुई है। उनके प्रश्न उत्तरों के भुखापेक्षी प्रश्न नहीं है। धूमिल के सवाल सच को छू लेने की उत्कट लालसा से उपजे हुए हैं, इसीलिए वे गढ़े हुए उत्तरों से लाख गुना संगत और सार्थक हैं।

धूमिल विपक्ष के कवि नहीं है। उनकी कविता विपक्ष की कविता नहीं है। विपक्ष भी व्यवस्था के भीतर एक दल है। वह सत्ता में नहीं है मगर वह भी सत्ता का उतना ही आकांक्षी है, जितना सत्तारूढ़ दल है। धूमिल का विरोध सिर्फ सत्ता का विरोधी नहीं है, वह व्यवस्था के समूचे खड़यत्र के विरूद्ध हैं। उनका विरोध व्यवस्था के आन्तरिक गठन के मनुष्य विरोधी चरित्र का विरोध है। वे व्यवस्था के ढाँचे को ध्वस्त करने के लिए प्रहार नहीं करते वे व्यवस्था की आत्मा पर चोट करने वाले अन्यतम कवि हैं। उनमें अस्वीकार का, इंकार का असम साहस है। उनके लिए उनकी कविता में उकना साहस और तेवर की तीक्ष्णता उनका साध्य नहीं है, वह उनके लिए जीवन की सचाई को पाने का साधन है। उनकी कविता एक मुकम्मल प्रतिपक्ष का सृजन करती है, जिसके मूल में सहज की अनिवार अभीप्सा है-
मैं साहस नहीं चाहता
मैं सहज होना चाहता हूँ
ताकि आम को आम और
चाकू को चाकू कह सकूँ।’’

धूमिल की कविता घोड़े की भाषा में आदमी के घोड़ा बन जाने की दारुण नियति और दुःसह दर्द की कविता है। धूमिल की कविता सवार नहीं, सवारी की कविता है। धूमिल की कविता अपने लिये नहीं किसी दूसरे के लिए पीठ पर बोझ लादकर फेचकुर फेकते दौड़ते रहने की कविता है। धूमिल की कविता हिन्दी में पहली बार घोड़े के मुँह से लगाम के असली स्वाद की कविता है। धूमिल की कविता प्रजातंत्र में मनुष्य होने की समूची ग्लानि को उसके संभाव्य आयामों में समूचे विस्तार और गहन गहराई में अभिव्यंजित करती कविता है। धूमिल का काव्यबोध भारतीय जनतंत्र की आन्तरिक असलियत का प्रमाणिक और संग्रहणीय दस्तावेज है। उनकी कविता केवल कविता नहीं है, वह मनुष्यता के सही इतिहास के लिये आधारभूत सामग्री के लिए स्रोत है। उनकी कविता निष्ठा की जगह केवल तुक के कारण विष्ठा की प्रतिष्ठापना घोर भर्त्सना की कविता है।

Dr. Umesh Prasad Singh
Lalit Nibandhkar (ललित निबंधकार)
Village and Post – Khakhara,
District – Chandauli, Pin code-232118
Mobile No. 9305850728

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