Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना
वर्तमान हिंदी पत्रकारिता एक भयावह परिदृश्य से गुजर रहा है । आज उसके अस्मिता और नियत पर प्रश्न चिन्ह उठाये जाने लगे हैं । मग़र क्यों ? यह एक अछूता प्रश्न है । जिसका उत्तर हर कोई चाहता है , लेकिन जिनसे वह उत्तर चाहता है वे लोग कौन है । क्या सचमुच उनके पास उत्तर है , अगर है तो उत्तर बाहर क्यों नहीं आता ।
सच तो यह है कि पत्रकारिता की यह दशा पूंजीवाद और राजनैतिक गठजोड़ की इस नई स्थिति से उत्पन्न हुई है । किसी शायर ने कहा है -” वे दिन हवा हुवे जब पसीना गुलाब था , अब इत्र भी मलते हैं खुशबू नहीं आती ।” आज सचमुच जब भी पत्रकारिता की बात होती है , वर्तमान परिदृश्य की विद्रूपताएं मुँह चिढ़ाती हैं । क्या यह वही पत्रकारिता है , जिसने कभी सत्ता शासन के विरुद्ध मुँह खोला था । उसके ख़िलाफ़ जनता की आवाज़ बन के उभरी थी । इसका उत्तर हर ओर से एक ही आएगा , नहीं , बिल्कुल नहीं ।
आज पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले युवाओं के सपने पूंजीपतियों के बाज़ार में कौड़ियों के मोल बिक जाते हैं । जो नहीं बिकते उसे सत्ता की बर्बरता के आगे डाल , फूस की तरह रौंद दिया जाता है । देश की सैकड़ों ऐसी घटनाएं हैं जो पत्रकारों के उत्पीड़न से जुड़ी हैं । परन्तु न्याय के नाम पर उन्हें हताशा ही मिलती है । कुछ लोग तर्क देते हैं पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है । आज आजादी के दिनों वाली पत्रकारिता नहीं है । ऐसी घटनाओं के लिए वह स्वयं जिम्मेदार हैं । इस बात को मैं भी इनकार नहीं करता , कि आज आजादी के दिनों वाली पत्रकारिता नहीं है , लेकिन यह कहना कि पुराने लोगों से ज्यादा नैतिक आज के पत्रकार हैं तो यह विचारणीय हो जाएगा । डिजिटल युग में पत्रकारिता केवल लिखा पढ़ी में नहीं है , बल्कि नए कलेवर के साथ विजुअल हो चुका है । आज लोगों के पास न्यूज जानने के कई साधन है । वो जल्दी से सब जान लेना चाहते हैं । आज न्यूज़ के कई वेव पोर्टल भी हैं , जहाँ लोग आसानी से न्यूज पढ़ लेते हैं , उन्हें अखबार का इंतजार नहीं करना पड़ता । साथ ही ह्वाट्सएप और फेसबुक जैसे साधन भी उपलब्ध हैं , जिससे समाचारों का आदान प्रदान किया जाता है । यह सब पत्रकारिता के विकास का अंग है , और ठीक है । इसमें विचारणीय बात यह है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में आने वाले युवाओं और युवतियों को क्या उचित पारिश्रमिक पर नौकरी मिल जाती है । नहीं , उन्हें स्ट्रगलर मान कर लम्बे समय तक शोषण किया जाता है । उनकी आवश्यकताओं का भी ध्यान नहीं रखा जाता है । यह नहीं सोचा जाता कि उनकी अपने परिवार के प्रति कुछ जिम्मेदारी भी है । बहुत से पत्रकार लम्बे समय तक पत्रकारिता को सेवा देने के बाद रास्ते बदलने को मजबूर हो जाते हैं । या फिर गलत रास्ते पर चलकर धन उगाही में लग जाते हैं । इसके लिए जिम्मेदार कौन है । यह ज्वलन्त प्रश्न अब यक्ष प्रश्न बन चुका है ।
आज पत्र पत्रिकाओं और न्यूज़ चैनलों की भरमार है । लोगों को न्यूज़ के नए नए टेस्ट से अवगत कराया जा रहा है । कई कई चैनल न्यूज़ के नाम पर अंधविश्वास और रूढ़ियों को नमक मिर्च के साथ परोस रहे है । वो केवल बेचने में विश्वास रखते हैं । गलत सही का भेद करना उनकी समझ से परे है । खोजी पत्रकारिता के नाम पर खूब अनर्गल परोसा जा रहा है । इस पर अंकुश लगाने की बात अभी नहीं हो रही है । कब होगी यह भी सोचना होगा । हर क्षेत्र में विकास हुआ है तो पत्रकारिता के क्षेत्र में भी होना चाहिए , मैं सहमत हूँ , लेकिन सत्यं शिवम सुंदरम की परिकल्पना के साथ । युवाओं को सही गलत का भेद बताना होगा । उन्हें अवगत कराना होगा , तुम्हारे मुँह से निकलने शब्द लाखों करोड़ों लोग सुनते हैं , तुम्हारी लेखनी के शब्द भारत के निर्माण और उसे सशक्त बनाने में भूमिका अदा करते हैं , इसलिए अपने दायित्वों के प्रति सजग रहो ।
आज का पत्रकार देखा देखी राजनीति के चकाचौंध में खोता जा रहा है , राजनैतिक ग्लैमर उसे खूब भा रहा है । इसी कारण कई दफे खबरों के साथ न्याय नहीं हो पाता । जनता अपनी कमजोर पड़ती आवाज को , पत्रकारों के जरिये उठाना चाहती है , लेकिन राजनैतिक दबावों या धन के आकर्षण में आवाज़ दबा दी जाती है । न्याय के उम्मीद लगाए व्यक्ति की हिम्मत प्राथमिक स्तर पर ही टूट जाती है । इसका यह मतलब नहीं पत्रकार खबरों को नहीं उठाते , उठाते हैं लेकिन उनके ऊपर कहीं कहीं दबाव बना कर खबरों को रद्दी की टोकरी में डाल दिये जाते हैं ।
आज कल एक ट्रेंड और देखने को मिल रहा है । न्यूज़ फालोअप के नाम पर ऐसा कुछ परोसा जा रहा है कि एक वितृष्णा सी मन में पैठ जाती है । किस न्यूज़ को कितना परोसा जाय , इसका कोई मानक नहीं है , जब तक टी आर पी बढ़ रही है , न्यूज़ बन्द करने की आवश्यकता नहीं है । चाहे वह उचित हो या अनुचित । इन दिनों कई न्यूज़ देखने को मिले । सबसे चर्चित तो इन दिनों सीमा हैदर ही है । जिस चैनल को खोलिए , सीमा हैदर हाज़िर । ऐसा अचानक से नहीं है , बल्कि कुछ वर्षों में यह परिवर्तन आया है । न्यूज़ एंकर इन दिनों सीधे जज की भूमिका में दिखते हैं , लगता है देश की अदालतों का रोल इनके आगे छोटा हो गया है । आज पूरी पत्रकारिता को नए सिरे से चिंतन मनन की आवश्यकता है , उनकी भूमिका को लेकर समाज में कोई संदेह न हो ।
एक बात जो और मन में आ रही है , वह यह कि पत्रकार पढ़ना छोड़ चुका है । वह आज की व्यस्त लाइफ को जीने में यह भूल चुका है , हमारे जो पूर्वज पत्रकार थे , वे कितने अध्ययनशील थे । अपवाद स्वरूप आज भी कुछ लोग इस क्षेत्र में पढ़ने का जुनून पाले हुए है । यह अच्छी बात है । मग़र समाज पत्रकार से पढ़े लिखे होने की उम्मीद करता है । बात यह है कि आरम्भिक समय में साहित्यकार और पत्रकार दो अलग अलग लोग नहीं होते थे । जो साहित्यकार होता था , वह पत्रकारिता के क्षेत्र में भी था । और जो पत्रकारिता के क्षेत्र में था , वह साहित्यकार भी होता था ।आज की तरह दोनों को अलग थलग करके देखने वाली बात नहीं थी । आरम्भिक दौर में राजनैतिक व्यक्ति पत्रकारिता के क्षेत्र से होकर गुजरा हुआ परिपक्व व्यक्ति होता था , जिसे समाज और देश की अच्छी समझ होती थी । परन्तु आज वह बात नहीं है ।
आज के पत्रकारों के पास शब्दों की पूंजी नहीं है । अगर आप देखना चाहें तो किसी चैनल के एंकर के मुँह से निकलने वाले शब्दों को देखिए , मुझे लगता है डेढ़ से दो सौ शब्दों में उनकी पत्रकारिता पूरी हो जाती है । वहीं दशा प्रिंट मीडिया की है । अब अखबारों में गलतियों की संख्या बढ़ रही है , मतलब साफ है , व्याकरण का दोष अध्ययन की कमी के कारण ही है । कभी कभी तो मुख्य पेज पर गलतियां होती हैं । इस संदर्भ में उनके तर्क हैं जल्दबाजी में पेज छोड़ने के कारण ऐसा होता है । ठीक बात है अखबार को जल्दी में लिखा गया सहित्य कहा गया है । परंतु हमारी पीढ़ी के लोग अखबारों से लिखना सीखे । यह विश्वास शायद आज नहीं है । आज केवल पढ़ना है ।
पिछले दशकों में पत्रकारिता ग्लैमरस हुई है । लोगों का टेस्ट बदला है और मीडिया का भी । खबरों को प्रस्तुत करने का अंदाज पूरी तरह बदल चुका है । नई पीढ़ी खूब धड़ल्ले से आगे आ रही है । तकलीफ़ यह है दो चार प्रतिशत ही मनोवांछित सफलता पाते हैं । शेष मीडिया दफ्तरों के चक्कर काटने हैं , या फिर जैसे तैसे पत्रकारिता करते हैं । इसके पीछे का सच है , मीडिया में किसी गॉडफादर का न होना । जिनके सिर पर किसी गॉडफादर का हाथ है , वह आगे बढ़ जाता है । जिसके नहीं है वह धक्के खाते हुए अपना स्थान बनाने के लिए संघर्ष करता है ।
जीवन परिचय-
रामजी प्रसाद " भैरव "
जन्म -02 जुलाई 1976
ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट - चहनियाँ
जिला - चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास "रक्तबीज के वंशज" को उ.प्र. हिंदी संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार ।
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में "शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर" है ।
कविता संग्रह - चुप हो जाओ कबीर
व्यंग्य संग्रह - रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com