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Saturday, July 5, 2025

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भीष्म पितामह का इंटरव्यू

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Young Writer, साहित्य पटल। रामजी प्रसाद “भैरव” की रचना

भीष्म को बाणों की शैय्या पर सोये हुए कई दिन बीत चुके थे । वे सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा में थे । पिता द्वारा इच्छा मृत्यु का वरदान , अब अभिशाप हो चुका था । तीर चुभे घाव रह रह कर टभक उठते थे । मशाले जल रही थी । उनकी सुरक्षा में लगे सिपाही ऊंघ रहे थे । तभी किसी ने विनम्रता पूर्वक प्रणाम किया ।
“प्रणाम पितामह “
“कौन ?” उन्होंने आँखे खोली ।
” मैं एक पत्रकार हूँ पितामह, आप का इंटरव्यू लेने आया हूं ।”
भीष्म ने अनमने ढंग से मुँह फेर कर आँखें बंद करते हुए कहा -” जाओ भाई जाओ , मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ नहीं है । मैं तो खुद ही मृत्यु के मुख में पड़ा हूँ । “
” पितामह, आप के पास मेरे लिए एक चीज है ।”
” वह क्या “
” मेरे प्रश्नों का उत्तर “
” नहीं नहीं , तुम जाओ मैं तुम्हारे किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे सकता ।”
” क्या अपने ऊपर लगे कलंक का भी उत्तर नहीं देंगे ।”
भीष्म थोड़े चैतन्य हुए -” कैसा कलंक “
” यही कि लोग कहते हैं महाभारत जैसे भयानक युध्द के जिम्मेदार , दुर्योधन से ज्यादा आप थे ।”
पितामह बिफर पड़े -” नहीं नहीं , यह एकदम गलत बात है , मैंने केवल हस्तिनापुर के हित का ध्यान रखा । सदा चाहा कि हस्तिनापुर सुरक्षित हो ।”
” लोग तो यह भी कहते हैं कि आप का आजीवन ब्रह्मचर्य रहने का निर्णय गलत था , और भी तो रास्ते हो सकते थे दसराज को संतुष्ट करने के , सीधे सीधे भीष्म प्रतिज्ञा करना तो कोई उचित कदम नहीं था। ।”
पितामह अपने ऊपर लगे आरोप से दुःखी होते हुए बोले -” यह तुम्हारा दोष नहीं है , यह पीढ़ी अंतराल का दोष है । पीढियां अपने पूर्वजों में कमियां ही ढूंढती हैं । जो निर्णय अपने समय में एकदम ठीक होता है , वही निर्णय बाद के पीढ़ी को दोषपूर्ण दिखता है ।”
पत्रकार भीष्म के दुःखती रग पर हाथ रख चुका था । वह बोला -” पितामह , आप समय को दोष देकर , अपनी कमियां छिपा नहीं सकते । आप परिवार के सबसे बुजुर्ग थे , केवल एक बार अपने अधिकारों का प्रयोग कर दुर्योधन को डांट दिया होता , तो आज यह दिन देखने को नहीं मिलता ।”
भीष्म लगभग सिर धुनते हुए बोले -” कैसे डांट देता भाई , पारिवारिक अधिकार भले मेरे पास थे , परन्तु राजकीय अधिकार पर धृष्टराष्ट्र का अधिकार था , और पारिवारिक अधिकार से बड़ा राजकीय अधिकार होता है ।
” अच्छा बताइये , काशी राज की कन्याओं के अपहरण में आप ने अन्याय नहीं किया ।”
भीष्म बचाव में उतरे -” पहली बात उस घटना को अपहरण मत कहो , उसे हरण कहा जाता है , रही बात अन्याय की तो उस समय प्रचलित प्रथा थी ।”
पत्रकार बोला -” पितामह , क्या स्त्री कोई वस्तु है जो , किसी के सुख के लिए , कोई शक्तिशाली व्यक्ति उठा ले । आप जैसा विचारक व्यक्ति कुरीतियों के खिलाफ़ आवाज उठा सकता था , लेकिन आप ऐसा नहीं , उल्टे ऐसी वाहियात चलन को बढ़ावा दिया ।”
भीष्म कसमसा कर रह गए , अपने गुस्से को पीकर बोले -” यह आरोप बेबुनियाद हैं , मैंने अपनी माता की आज्ञा पालन किया है ।”
” परन्तु पितामह , यदि आप की बातों को कुछ देर के लिए मान भी लिया जाय तो , क्या अम्बा के साथ हुए अन्याय को भुलाया जा सकता है । आप ने अपहरण के समय उनकी भावनाओं की कद्र नहीं की । विवाह मण्डप में खड़ी किसी स्त्री के आंखों में भावी भविष्य के सपने होते हैं , आप ने तो अपनी शक्ति से उसे कुचल दिया ।”
भीष्म ने मुंह फेरा ,-” यह झूठ है , सरासर झूठ , मैंने केवल परम्पराओं का पालन किया है ।”
” परम्पराओं के पालन में न्याय – अन्याय का ध्यान भी रखा जा सकता था । परंतु आप ने ऐसा नहीं किया ।”

” अम्बा ने अपने प्रेमी द्वारा ठुकराए जाने पर , मेरे ऊपर प्रणय का दबाव बनाया , जो मेरे लिए सम्भव नहीं था । मैंने आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लिया था ।”
” संकल्प किसी के जीवन से बढ़कर नहीं होता , अम्बा को आप ने अस्वीकार किया तो , अपने भाई को उसे स्वीकार करने को कह सकते थे । परन्तु आप ने ऐसा नही किया ।”
” एक राजा अपनी इच्छाओं का स्वयं मालिक होता है , उसने अम्बा के दोनों बहनों से विवाह कर लिया था । ऐसी स्थिति में मैं विचित्रवीर्य से कैसे कह सकता था । अंततः मैंने अम्बा को नियति के हवाले कर दिया ।”
” तो आप स्वीकार करते हैं अम्बा के साथ न्याय नहीं हुआ “
” मरता हुआ आदमी झूठ नहीं बोल सकता , अब लगता है अम्बा को न्याय मिलना चाहिए । ” भीष्म ने थोड़ी दबी ज़बान से स्वीकार किया ।
पत्रकार का हौसला बढ़ा , उसने लगे हाथों एक अंतिम प्रश्न पूछ लेना चाहा , ” पितामह , द्रौपदी के साथ हुए अत्याचार पर भी आप मौन थे । क्या भरी सभा में उसे निर्वस्त्र करना उचित था । वह रो रो कर गिड़गिड़ाते हुए , दुहाई देती रही ,
कि वह हस्तिनापुर की कुलवधू है , सभा में बैठे हुए आचार्य द्रोण , कृपाचार्य और आप जैसे महान विभूतियों के रहते दुर्योधन अपने मन की करता रहा , आप सभी चुप थे । पितामह , यदि उस दिन आप बोल दिए होते तो , शायद महाभारत जैसा युद्ध नहीं हुआ होता ।”
भीष्म कुछ देर के लिए चुप हो गए , जैसे कुछ गुन रहे हो , उनके सामने उस दिन का दृश्य उपस्थित हो आया । पत्रकार उत्तर की प्रतीक्षा में खड़ा रहा ।
“बोलिये पितामह , उत्तर दीजिये ।” पत्रकार ने अंततः टोका
” मैं हस्तिनापुर के सिंहासन से बंधा था । मैं मजबूर था ।”
भीष्म ने पत्रकार से आँखें हटा ली ।
” अपनी कमजोरियों को विवशता का नाम न दीजिये पितामह , सच तो यह है आप को सत्ता का मोह था , और सत्ता दुर्योधन के हाथ में थी ।”
” यह झूठ है ।”
” आप के सामने कर्ण ने द्रौपदी को वेश्या तक कहा , यह सुनकर भी आप कलेजा नहीं दहला । दुर्योधन और कर्ण जैसों की जिह्वा पकड़ने वाला कोई न था ।”
भीष्म ने बात दुहराई -” मेरी विवशता मेरी कमजोरी नहीं थी , बल्कि हस्तिनापुर के प्रति मेरा समर्पण था ।”
” परंतु पितामह , आप के मौन से स्त्री जाति सदा अपमानित महसूस करेंगी । आप द्रौपदी के व्यक्तिगत दोषी हैं ।”
” आयी थी द्रौपदी एक दिन मेरे पास , मुझसे पूछने उस दिन मैं चुप क्यों था ।”
” फिर क्या उत्तर दिया आप ने ।”
” क्या उत्तर देता , सच तो यह था ही द्रौपदी अपमानित हुई थी , हो सकता है संसार मुझे इसके लिए क्षमा न करे । द्रौपदी से मैंने कहा , बेटी मैं तुम्हारा दोषी हूँ , उस समय तक मेरे शरीर में दुर्योधन जैसे पापी का नमक था , मैं उसका अन्न खाता था , इसलिए ऐसा पाप मुझसे हो गया । तुम्हारे पति अर्जुन ने मेरे शरीर को बाणों से छलनी कर सारा का सारा रक्त निचोड़ डाला, आज मैं निश्छल मन से स्वीकार करता हूं , मैं तुम्हारा दोषी हूँ , हो सके तो मुझे क्षमा करना।”
पत्रकार ने पूछा -” तो क्या द्रौपदी ने क्षमा कर दिया।”
भीष्म ने दीर्घ स्वांस छोड़ी और कहा -” द्रौपदी ने क्षमा किया या नहीं मैं नहीं जानता, मगर तुम संसार को मेरे अभिशप्त कर्मों को जरूर बताओ, ऐसा मुझे विश्वास है। अब तुम जाओ, मैं आराम करूँगा । “
पत्रकार धीरे धीरे अंधेरे में खो गया ।

जीवन परिचय-
 रामजी प्रसाद " भैरव "
 जन्म -02 जुलाई 1976 
 ग्राम- खण्डवारी, पोस्ट - चहनियाँ
 जिला - चन्दौली (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल नंबर- 9415979773
प्रथम उपन्यास "रक्तबीज के वंशज" को उ.प्र. हिंदी  संस्थान लखनऊ से प्रेमचन्द पुरस्कार । 
अन्य प्रकाशित उपन्यासों में "शबरी, शिखण्डी की आत्मकथा, सुनो आनन्द, पुरन्दर" है । 
 कविता संग्रह - चुप हो जाओ कबीर
 व्यंग्य संग्रह - रुद्धान्त
सम्पादन- नवरंग (वार्षिक पत्रिका)
             गिरगिट की आँखें (व्यंग्य संग्रह)
देश की  विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाओं का प्रकाशन      
ईमेल- ramjibhairav.fciit@gmail.com

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