डा. उमेश प्रसाद सिंह बोले, लोकतांत्रिक मूल्यों के विचलन का परिणाम है ‘रामगढ़’ जैसी घटनाएं
Young Writer, चंदौली। ‘रामगढ़’ में हुई संघर्ष की घटना स्वस्थ लोकतंत्र को विचलित करने वाली है। आज के परिवेश में लोकतंत्र के नाम पर पूरा का पूरा सरकारी महकमा सरकार की खुसामद में जुट हुआ है। वह अपने मूल कर्तव्यों से काफी भटक गया है। जिसकी भी सरकार होती है पूरा पुलिस व प्रशासनिक तंत्र उसके इशारे पर या उसके इशारे के बगैर उसे खुश करने के लिए ऐसा काम करता है। ऐसी घटनाओं में लोकतांत्रिक मूल्यों व कर्तव्यों की बातों का हवाला देकर उसे सही साबित करने का प्रयास होता है, लेकिन ऐसी घटनाएं बताती हैं कि लोकतंत्र की मर्यादाओं का पालन नहीं हो रहा है। लोकतांत्रिक विचलन दोनों तरफ से है। फर्क बस इतना है कि किसी तरह से कम, तो किसी तरह ज्यादा। और ज्यादा हमेशा पुलिस-प्रशासन की ओर से होता रहा है।
वरिष्ठ साहित्यकार व ललित निंबधकार डा. उमेश प्रसाद सिंह ने रामगढ़ जैसी घटना को स्वस्थ लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया। उनका कहना था कि आज का जो परिवेश है उसे देखते हुए यह कहा जाना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि देश में छिछली राजनीति शुरू हो गयी है। जनतांत्रिक व्यवस्था व लोकतांत्रिक मूल्यों के नाम पर होने वाले विरोध-प्रदर्शन में जनता से जुड़े मुद्दे ही गौण हो जाते हैं और उनकी जगह राजनीतिक दल या फिर राजनेता अपने के व्यक्तिगत कार्यक्रमों को उछालने, उसे मीडिया व अन्य माध्यमों से जनता के बीच अपनी भूमिका को स्थापित करना उनका मूल मकसद रहता है।
रामगढ़ में पुलिस व राजनेताओं के बीच जो संघर्ष हुआ, वहां की परिस्थितियां कुछ ऐसी ही रहीं। एक तरह जहां लोकतांत्रिक मूल्यों व जनतांत्रिक व्यवस्था का हवाला देते हुए अशांति कायम करने के प्रयास हुए तो दूसरी ओर शांति व्यवस्था कायम करने के नाम पर पुलिस व प्रशासनिक तंत्र अपने मूल कर्तव्यों से भटककर सरकार की खुसामद करने का प्रयास लाठी के जोर पर करता नजर आया। नतीजा संघर्ष की स्थिति कायम हुईं और लोकतांत्रिक मूल्यों का दोनों तरफ से ह्रास हुआ। ऐसी घटनाओं में स्वस्थ लोकतांत्रिक मूल्य से दोनों पक्ष विचलित होते हैं और इस तरह की समस्या समाज में पैदा होती है।
उन्होंने कहा कि अमूमन यह देखने को मिलता है कि प्रशासन-पुलिस की तरफ से ऐसा ज्यादा ही होता है। ऐसी स्थितियां स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के अनुकूल नहीं है, जिसका सारा खामियाजा जनता को भुगतना होता है, क्योंकि जब वातावरण प्रदूषित होगा तो सबसे बड़ा अहित हमारे देश के लोकतांत्रिक जनमानस का होगा। अभी देश में जो राजनीतिक परिस्थितियां कायम है उसमें दूर-दूर तक सुधार की संभावना व गुंजाइश बनती नहीं दिख रही है। क्योंकि आज समूचा राजनीतिक माहौल ऐसा है कि सभी राजनीतिक दल केवल व केवल सत्ता की राजनीति के पीछे पड़े हुए हैं और सत्ता ही उनका एक मात्र लक्ष्य है। लोकतांत्रिक मूल्य व जनतांत्रिक व्यवस्था जैसे शब्दों का इस्तेमाल केवल जनता को धोखा देने के लिए किया जाता है। ऐसी परिस्थितियां अभी लम्बे समय तक बने रहने की आशंकाएं हैं, जो बीतते समय के साथ हमारे स्वस्थ लोकतंत्र को दीमक की तरह धीरे-धीरे खोखला व कमजोर करती जा रही है। इसमें सुधार की संभावनाएं व गुंजाइश तभी है जब तब कि राजनेताओं व सरकारी तंत्र के मूल चरित्र में बदलाव नहीं होता।