चंदौली। आठवीं मुहर्रम को अज़ाख़ाने रज़ा में शनिवार को शायरों ने इस्लाम के जरिए देश और हिंदुस्तानी एकता की शान में कसीदे पेश किए। मौलाना मोहम्मद मेंहदी ने अपनी तकरीर में कहा कि इमाम हुसैन यजीद से लड़ाई नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसे पैगाम दिया था। कि वो उन्हें जाने दे वो शांतिप्रिय देश हिंदुस्तान जाना चाहते हैं। करबला की जंग सिर्फ इंसानों की भूमिका नहीं थी, बेजुबान जानवरों ने भी इमाम हुसैन के साथ मिलकर इस लड़ाई में अपना बेशकीमती योगदान दिया। दुलदुल इमाम हुसैन के घोड़े का नाम था। जिसने जंग में आखिर तक इमाम के साथ लड़ाई लड़ी और इमाम के शहीद होने के बाद सबसे पहले उनके खेमे में जाकर उनके न होने की सूचना दी। जब दुलदुल इमाम की शहादत के बाद खेमेगाह में पहुंचा तो उसके शरीर पर सैकड़ों तीर थे। और उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे। तब से हर साल मुहर्रम में दुलदुल का जूलूस निकलता है। जिसके जरिए इमाम के बेजुबान साथी को याद किया जाता है।
मौलाना ने कहा कि मुहर्रम इमाम हुसैन के आदर्शों पर चलने का नाम है। मुहर्रम हर साल ये संदेश देता है कि समाज को तोड़ने वाले तत्वों के खिलाफ़ अगर खड़ा होना पड़े तो खड़ा होना चाहिए। बिना हिचके और बिना डरे। करबला की जंग सात मुहर्रम को शुरू हुई थी। और मुहर्रम की दसवीं तारीख तक रसूलल्लाह के नवासे इमाम हुसैन और उनके बहत्तर साथी शहीद हो गए। इमाम हुसैन ने अपना सिर कटा दिया लेकिन बादशाह यजीद के आदेश नहीं माने। यजीद इमाम हुसैन के जरिए अपने थोपी गई नीतियां जनता के बीच फैलाना चाहता था लेकिन इमाम ने ऐसा करने से साफ इंकार कर दिया। जिले की मशहूर अंजुमन यादगारे हुसैनी दुलहीपुर मसायबी नौहों के बीच अजाखाने में दुलदुल और अलम निकला। यादगारे हुसैनी के अलावा अंजुमन जव्वादिया मकदूमाबाद लौंदा और अंजुमन अब्बासिया सिकंदरपुर ने भी अपने कलामों के जरिए करबला के मंजर पेश किए। आठवीं मजलिस के जूलूस में जिले के अलावा बनारस, मिर्जापुर, गाजीपुर, दुलहीपुर, ऐंलहीं के अजादार बड़ी संख्या में जुटे और इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद कर पुरनम आंखों से उनकी शहादत को सलाम किया। इस दौरान मायल चंदौलवी, सादिक, रियाज, अनवर, मोमम्मद इंसाफ, सरफराज पहलवान, वकार सुल्तानपुरी, शहंशाह मिर्जापुरी, हसन मिर्जापुरी, अली इमाम, डाक्टर गजन्फर इमाम, सरवर भाई, परवेज लाडले, आसिफ इकबाल, राजू टाइगर, पपलू भाई, मोहम्मद रजा सिकंदरपुरी इत्यादि मौजूद रहे।