स्ट्रीट व हाई मास्क लाइटों की खरीद में जमकर हो रही कमीशनखोरी
Young Writer, इलिया। शहाबगंज विकास खण्ड की ग्राम पंचायतों में विकास की राशि को लेकर बड़ा खेल खेला जा रहा है। गाँवों को रोशन करने के नाम पर पंचायत सचिव और ब्लॉक कर्मचारी अंधेरे में डाका डाल रहे हैं। बाजार में तीन सौ से पाँच सौ रुपये की साधारण स्ट्रीट लाइट को पंचायतों से पंद्रह सौ से दो हजार रुपये में वसूला जा रहा है। लेकिन सबसे बड़ा घोटाला हाई मास्क लाइट सप्लाई में सामने आ रहा है।
बाजार में तीस से पैंतीस हजार रुपये में उपलब्ध हाई मास्क लाइट का भुगतान पंचायत से डेढ़ लाख से लेकर एक लाख अस्सी हजार रुपये तक किया जा रहा है। यानी कीमत से पाँच से छह गुना अधिक। इस घोटाले का सबसे चौंकाने वाला पहलू यह है कि भुगतान शिव इंटरप्राइजेज, जय बजरंग, मेसर्स वैष्णवी इंटरप्राइजेज जैसी बाहरी फर्मों को किया जा रहा है। इनका कोई टेंडर प्रक्रिया तक पूरी नहीं हुई, फिर भी इन्हें लाखों रुपये की सप्लाई का ऑर्डर और भुगतान मिल रहा है। हर रोज़ बनारस और जौनपुर से आने वाले सप्लायर ब्लॉक दफ्तरों में पंचायत सचिवों और कंसल्ट इंजीनियरों के साथ जमावड़ा लगाते हैं। वहीं बैठकर सप्लाई और भुगतान का पूरा खेल रचा जाता है। ग्रामीणों का कहना है कि इस पूरे घोटाले में एडीओ पंचायत, पंचायत सचिव और कंसल्ट इंजीनियर ही नहीं, ब्लॉक स्तर के कर्मचारी भी बराबर हिस्सेदार हैं। मोटा कमीशन बँटवारे के बाद ही फर्जी फर्मों को भुगतान जारी होता है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि विभागीय अधिकारी सब कुछ जानते हुए भी चुप क्यों हैं? क्या उन्हें भी इस खेल का हिस्सा माना जाए या वे “बड़े दबाव” में मौन साधे हुए हैं? गाँवों में जहाँ हर घर तक रोशनी पहुँचाने की बात हो रही है, वहीं हकीकत यह है कि लाखों-करोड़ों की पंचायत निधि जेब में पहुँच रही है। ग्रामीण अब यह पूछ रहे हैं कि आखिर पंचायत का पैसा गाँव के विकास में खर्च होगा या भ्रष्टाचारियों की जेबें भरने में? किसके इशारे पर फर्जी फर्मों को इतना खुला संरक्षण मिल रहा है? कब होगी इस घोटाले की निष्पक्ष जांच और कार्रवाई होगी?
क्या कहती है नियमावली?
इलिया। पंचायती राज अधिनियम और सरकारी खरीद प्रक्रिया नियमावली के अनुसार क 25 हजार से ऊपर की किसी भी खरीदारी ग्राम पंचायत स्तर पर खुली निविदा (टेंडर) से की जानी अनिवार्य है। बिना टेंडर प्रक्रिया के किसी भी बाहरी फर्म को भुगतान करना नियम विरुद्ध और अवैध है। किसी भी सामग्री की खरीद दर सूची या सरकारी मान्यता प्राप्त आपूर्तिकर्ता से ही की जानी चाहिए। सीधे सप्लायर को भुगतान करना और फर्जी फर्मों को प्राथमिकता देना, भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता की श्रेणी में आता है।