चंदौली। बरहनी ब्लाक के धारूपुर गांव में शनिवार को इफको द्वारा मृदा परीक्षण अभियान का आयोजन किया। उक्त कार्यक्रम में क्षेत्रीय अधिकारी अभिषेक त्रिपाठी द्वारा किसानों को यूरिया नैनो व डीएपी के बारे में जानकारी दी गई। साथी ही खेतो में मिट्टी का नमूना लेने के लिए वैज्ञानिक तरीके के बारे में विस्तार से बताया गया।
इस दौरान अभिषेक त्रिपाठी ने बताया कि धान की नर्सरी में नैनो का प्रयोग करने से खेतों में पैदावार अच्छी होगी। साथ ही किसान खेत में अधिक लागत लगाने से बच जाएंगे। खेतो में नैनो के प्रयोग से मिट्टी में उर्वरकता बनी रहेगी। उसके इस्तेमाल से पोषण की बर्बादी नहीं होगी। इसका इस्तेमाल उर्वरक के बेहतर विकल्प के रूप में किया जाता है। जिससे मिट्टी और हवा की क्वालिटी में सुधार होता है। और फसलों के उत्पादक के साथ-साथ उत्पादकता में भी वृद्धि होती है। एसएफए मयंक सिंह ने कहा कि नैनो यूरिया की मात्र 2-4 मिली लीटर मात्रा को एक लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल पर छिड़कते हैं। जो नाइट्रोजन की कमी वाली फसलों के लिये अमृत का काम करता है। खासकर, दलहनी, तिलहनी, अनाज, कपास, फल और सब्जी फसलों के लिये नैनो यूरिया का छिड़काव फायदेमंद साबित होता है। हॉटस्पॉट दिग्विजय सिंह ने कहा कि किसान अपने खेतों में अधिक नैनो डीपीपी यूरिया प्रयोग करें जिससे फसलों का पैदावार अच्छी हो सकें। इस दौरान जितेंद्र सिंह, कृपा शंकर तिवारी, ओमप्रकाश तिवारी, गोपाल सिंह, अमन रविकांत, विद्याधर तिवारी, रत्नेश तिवारी, मनीष तिवारी, विनीत तिवारी, बृजेश त्रिपाठी, सैकड़ों किसान मौजूद रहे।
Chandauli:इफको द्वारा गांव में मृदा परीक्षण अभियान का हुआ आयोजन,किसानों को यूरिया नैनो व डीएपी के बारे में दी गई जानकारी
Chandauli:नेशनल हाईवे पर अज्ञात वाहन की चपेट में आने से युवक की मौत,सड़क पार क़रते समय हुई दुर्घटना
चंदौली। सदर कोतवाली क्षेत्र के झांसी गांव के समीप नेशनल हाईवे पर बृहस्पतिवार की रात अज्ञात वाहन की चपेट में आने से एक युवक की मौत हो गई। मौक़े पर जुटे आस पास के ग्रामीणों ने तत्काल घटना की जानकारी पुलिस को दी। घटनास्थल पर पहुची पुलिस ने तत्काल युवक के शव को कब्जे में कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया।
बताते है कि सोनभद्र ज़िले के घोरावल थाना अन्तर्गत कोरठ गांव निवासी शिवम पाल 40 वर्ष की कार झांसी नेशनल हाईवे पर खराब हो गई थी। शिवम नेशनल हाईवे पार कर अपनी वाहन बनवाने के लिए मिस्त्री बुलाने जा रहा था। इसी दौरान तेज़ रफ़्तार अज्ञात उसको टक्कर मार कर फरार हो गया। घटना को लेकर मौक़े पर ग्रामीणों की भारी भीड़ जमा हो गई। उन्होंने तत्काल घटना की जानकारी पुलिस को दी। घटनास्थल पर पहुची पुलिस ने शव को कब्जे में कर पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। इस बाबत सदर कोतवाल राजेश कुमार सिंह ने बताया कि सड़क हादसे में एक युवक की मौत हो गई है। शव को कब्जे में पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है।
Dhanapur CSC में मरीजों को लिखी जा रही बाहर की दवाएं, जिम्मेदार कौन….
जन औषधि केंद्र की दवाओं को बेकार बता कर तथा जन औषधि की दवा लौटा कर डॉक्टर लिख रहे बाहरी दवाएं
Young Writer, धानापुर। प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना में शामिल जन औषधि केंद्र योजना को सरकारी अस्पताल में तैनात चिकित्सक पलीता लगा रहे हैं। हालत यह है अस्पताल में जन औषधि केंद्र होने के बाद भी चिकित्सक बाहर की दवाएं लिखने के पुराने ढर्रे पर कायम है, जिससे मरीजों की जेब ढिली हो रही है, वहीं दूसरी ओर चिकित्सकों की जेब कमीशन से भरी हुई है जैसा कि समय-समय पर मरीजों और उनके तीमारदारों द्वारा आरोप लगाए जाते रहे हैं। अभी ताजा मामला सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र धानापुर का है। जहां जन औषधी केंद्र की दवाओं को चिकित्सक द्वारा लौटा कर बाहर की दवाएं लिख रहे हैं।

गुरुवार को जब मरीज के द्वारा विरोध और हंगामा किया गया तो मामला पटल पर आया। पीड़ित राजेश विश्वकर्मा ने सीएमओ को पत्र लिखकर पूरे प्रकरण की शिकायत दर्ज कराई। आरोप लगाया कि सीएससी पर तैनात चिकित्सक डॉ अमरनाथ को दिखाने पहुंचे तो उन्होंने पर्ची पर कुछ दवाएं लिखी और कुछ दवाएं एक छोटी पर्ची पर लिख दिया। पूछने पर डॉक्टर ने बताया कि दवाएं बाहर मिलेगी। इस पर शिकायतकर्ता ने अस्पताल में जन औषधि केंद्र होने का हवाला दिया तो चिकित्सक ने जन औषधि केंद्र की दवाओं की बेकार करार दिया। इसके बात शिकायतकर्ता द्वारा बाहर मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीद कर अस्पताल आया और उन्हीं दवाओं के बारे में जन औषधि केंद्र पर पूछताछ किया तो सभी दवाएं 50% से 70%की छूट पर उपलब्ध मिली जिनकी कीमत 100 रुपये थी, जबकि वही दवाएं बाहर 250 रुपये में उसे खरीदनी पड़ी।

इसके बाद शिकायतकर्ता राजेश अपने साथी के साथ चिकित्सक के पास गया और दवाओं की उपलब्धता के बारे सवाल किया तो चिकित्सक जन औषधि केन्द्र पर दवाओं की उपलब्धता की जानकारी नहीं होने का हवाला देते हुए बचने का प्रयास करते दिखे। इससे खफा होकर शिकायतकर्ता ने चिकित्सक डॉ अमरनाथ की कार्यशैली पर सवाल खड़े किए और सीएमओ से उक्त प्रकरण पर गभीरता पूर्वक लेते और निष्पक्ष जांच कर कार्यवाही किये जाने की मांग की है, ताकि आगे से मरीजों को बाहर की दवाएं लिखकर उनकी जेब पर डांका डालने का कृत्य न होने पाए। हालांकि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी ने साफ कहा कि अस्पताल की पर्ची पर चिकित्सक अंदर की दवाएं ही लिख सकते हैं। साथ ही उन्होंने बाहर की दवाएं लिखने और हंगामे की घटना शिकायतकर्ता द्वारा प्राप्त नहीं होने की बात कही। शिकायतकर्ता ने सीएमओ डा. वाईके राय को पत्र लिखकर मामले से अवगत कराया। साथ ही उचित कार्यवाही करने की आवश्यकता जताई है।
Chandauli:आईवीएफ सेंटर से महिलाओं के मां बनने का सपना होगा पूरा,चिकित्सकों ने शिविर में जांच कर दिया उचित चिकित्सकीय परामर्श
चंदौली। नगर के वार्ड नंबर 14 गांधी नगर स्थित सैम हॉस्पिटल में गुरुवार को शिविर आयोजित की गई। इसका शुभारंभ डॉ. अज्मे जेहरा, डॉ. एसजी इमाम ने किया। शिविर में आसपास के इलाकों की लगभग दो दर्जन महिलाएं पहुंची। विशेषज्ञ चिकित्सकों ने उनकी जांच कर उचित चिकित्सकीय परामर्श प्रदान किया।
इस दौरान चिकित्सक डा. अज्मे जेहरा ने बताया कि जिले का यह पहला आईवीएफ सेंटर है। यहां उन महिलाओं की जांच और परामर्श दिया जाएगा, जिन्हें गर्भ धारण में दिक्कत हैं। बताया कि अस्पताल में कम खर्च में महिलाओं की जांच और चिकित्सकीय सुविधा प्रदान की जाएगी। अन्य अस्पतालों में जहां तीन लाख खर्च करने होंगे, वहीं सैम हॉस्पिटल में आधे पैसों में ही यह सुविधा मिलेगी।

बताया कि कई महिलाओं में बहुत मामूली दिक्कतें होती हैं, लेकिन उनकी ठीक ढंग से जांच नहीं हो पाती है। इसलिए गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं। यदि उनकी सही तरीके से जांच और चिकित्सकीय प्रक्रिया पूरी की जाए तो दिक्कत दूर हो जाती है। इसका खर्च भी काफी कम होता है। उन्होंने बताया कि अतिपिछड़े जिले में इस तरह का केंद्र शुरू होने से यहां की गरीब जनता को भी लाभ होगा। कैंप में डॉ. अज्मे जेहरा, डॉ. एसजी इमाम और रिया शर्मा ने रोगियों की जांच की और उन्हें जरूरी चिकित्सा सुझाव दिए। अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि आगे भी इस तरह के जागरूकता और परामर्श शिविर आयोजित किए जाएंगे, ताकि अधिक से अधिक लोग इस सुविधा का लाभ उठा सकें।
Chandauli:बिजली के बड़े बकायदारों व अवैध कनेक्शनधरियो के खिलाफ नगर में धमकी बिजली विभाग की 14 टीमें,सात के खिलाफ मुकदमा दर्ज
चंदौली। अधीक्षण अभियंता मनोज कुमार अग्रवाल व अधिशासी अभियंता अरबिंद कुमार के नेतृत्व में बृहस्पतिवार को बिजली विभाग व बिजलेंस की 14 टीमों ने नगर के चांदनी मार्केट व मालियान गली में सघन चेकिंग अभियान चलाया। उक्त अभियान से बड़े बकायादारों व अवैध कनेक्शनधारियों में हड़कंप मच गया। इस दौरान बिजली विभाग व बिजलेंस की टीम ने बिजली चोरी करने के मामले में सात लोगों के विरूद्ध मुकदमा दर्ज कर बड़े बकायादारों से 2.2 लाख राजस्व वसूल किया।
इस दौरान अधिशासी अभियंता अरबिंद कुमार ने बताया कि विद्युत वितरण खण्ड-प्रथम के अन्तर्गत अधिक लाईन हानियों वाले चिन्हित क्षेत्रों में विद्युत चोरी रोकने व राजस्व प्राप्ति में वृद्धि के लिए नगर में सघन चेकिंग अभियान चलाया गया। अभियान में 14 टीम गठित कर 332 परिसरों को चेकिया गया। जहा ऊर्जा खपत के सही मापन व विश्लेषण के लिए स्मार्ट मीटर लगाया गया।

उसके साथ 27 उपभोक्ताओं पर अधिक भार का उपभोग पाया गया। जिन पर कुल 42 किलो कि०वा० भार बढ़ाया गया। वही 12 उपभोक्ताओं का विधा परिवर्तन करने के साथ 108 उपभोक्ताओं का स्मार्ट मीटर लगाया गया।13 उपभोक्ताओं के खराब विद्युत मीटर बदले गए। 29 उपभोक्ताओं पर बकाया धनराशि 17.13 लाख था। उनका संयोजन विच्छेदित किया गया। साथ ही बड़े बकायदारों से 2.2 लाख धनराशि जमा कराने के साथ सात व्यक्तियों के विरुद्ध बिजली चोरी में प्राथमिकी दर्ज कराया गया।

कहा कि अधिक लाईन हानियों वाले क्षेत्रों में निरन्तर चेकिंग अभियान जारी रहेगा। इस दौरान बिजली चोरी के मामले में पकड़े जाने पर उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाई की जाएगी। साथ ही बिजली के बड़े बकायादार उपभोक्ता समय से बकाया बिल जमा कर दे अन्यथा उनका बिजली कनेक्शन काट दिया जाएगा। इस दौरान उपखंड अधिकारी विवेक मोहन श्रीवास्तव, अमर सिंह पटेल, संतोष कुमार, मिथिलेश बिंद, अवर अभियंता सुनील कुमार, अमित शेखर, राजकुमार, दीपक दास, मो. शाहिद, बिनोद कुमार, उपेंद्र कुमार, संजू कुमार, मनोज, रवि, जयप्रकाश डीएमआर मनीष, शमशेर आदि मौजूद रहें।
खोए हुए वसंत की पीड़ा : Dr. Umesh Prasad Singh
Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार Dr. Umesh Prasad Singh
चैता सुख के खो जाने का गान है। भारतीय जाति बड़ी कठकरेजी जाति है। इसका दिल बड़ा कोमल है। पर कलेजा बड़ा कठिन है। कठोर नहीं है, कठिन है। कठोर वह होता है, जो दूसरों को दुख पहुंचा कर दुखी नहीं होता। कठिन कुछ दूसरे तरह का होता है। यह दुख सह लेता है, मगर दुखी नहीं होता। दुर्बल जाति के लोग सुख के खो जाने के अवसर उपस्थित होने पर रोने लगते हैं। हमारी विरासत कुछ इस तरह की है कि सुख के खो जाने पर हमारे भीतर गान उठने लगता है। हम गाने लगते हैं। चैता गाने लगते हैं। सुख के विदा हो जाने की पीड़ा का गान चैता कहलाता है।
बसंत के बीत जाने के बाद। बसंत के उल्लास के विदा हो जाने के बाद उसकी उन्मद उदासी की त्रासद चुभन का एहसास चैता में मुखरित हो उठता है। चैता सुख की अदम्य उत्कंठा में उसके अभाव के कचोट का उद्वेलन है। वसंत था। अभी-अभी था। यहीं था। अपने अगल-बगल था। आसपास था। अपने में ही था, समाया हुआ। अपनी ही चेतना की आंतरिकता में मोजरे हुए आम की मादक गंध की तरह इठलाता हुआ। मगर अब नहीं है। सब कुछ है, मगर वह नहीं है। बहुत कुछ नया-नया भी है, लेकिन वह नहीं है। वही नहीं है, मगर उसकी छाया हमें अब भी छू रही है। उसका न होना मन को मथ डालता है। टीस से भर देता है। बेचैन कर देता है। उसके न होने से जो है, वह सब पीड़ा पहुंचाने वाला बन गया है।
मैं जब अपने समय को देखत हूं, वह बेचैन दिखाई पड़ता है। न जाने किस उधेड़-बुन में उन्मन। बेहद हड़बड़ी में भागता हुआ, न जाने क्या खो गया है कि हर छूंछी हांड़ी में हड़बड़ाया हाथ डालता अकुलाया हुआ है। लगता है, हमारे समय में हर आदमी का कुछ खो गया है। पता नहीं क्या खो गया है। मगर खो गया है, जरूर। जो खो गया है, उसे ही हम ढूंढ रहे हैं। हर कहीं ढूंढ रहे हैं। मगर वह कहीं भी मिल नहीं पा रहा है। हमारा समूचा समय बेचैन है। बेदह बेचैन है। मुझे लगता है कि हमारे समूचे भारतीय समाज की कोई बहुत ही प्रिय और बहुत ही जरूरीर चीज खो गई है।
हां, सच है। जरूर खो गई है। हमारे घरों में हमारा घर खो गया है। हमारे परिवार में हमारा परिवार खो गया है। हमारे पड़ोस में हमार पड़ोस खो गया है। यहां तक कि हममें हम ही खो गए हैं। बड़ा अजीब है। ऐसा क्यों है?
मुझ लगता है, हमारी समूची भारतीयजाति की अस्मिता ही खो गई है। हमारे पास बहुत कुछ है। हमने बहुत कुछ उपलब्ध किया है। फिर भी….। हमें लगता है, भारतीय जाति की आधुनिक अस्मिता का निर्माण हमारे स्वाधीनता आंदोलन के दौरान सृजित मूल्यों से हुआ है। भारतीय जाति की आत्मिक अभीप्सा उन्हीं मूल्यों की जीवन में उपलब्धता की अभीप्सा है। हमारी मूल अभीप्सा प्यासी की प्यासी है। आजादी के बाद भी सरकारें विकास के दावों की उद्घोषणा गला फाड़-फाड़ कर करती आ रही हैं। आज भी कर रही हैं। हम कैसे कहें कि हमारी सरकार झूठ बोलती है। हम कैसे कहें कि हमारी सरकार सच बोलती है। नहीं, हमारी तो कुछ बोलते बोलती ही बंद हो जाती है। फिर सरकार के सामने हमारे कुछ भी बोलने का मतलब ही क्या है। जो कुछ भी हो, मगर भारतीयजाति की बेचैनी कम होने का नाम नहीं ले रही है। हमने सरकारें बदल-बदल कर भी देखा है। हमारा हर बदलाव छूंछी हांड़ी में हाथ डालने जैसा ही साबित हुआ है। जो खो गया है, वह कहीं नहीं मिलता। हाथ हर जगह जाता है।
हमारे सुहाग का चिह्न हमारी झुलनी खो गई है। सौभाग्य तो है, मगर सौभाग्य का चिह्न खो गया है। हमारे लोकतंत्र के सौभाग्य का चिह्न हमारी सुरक्षा, हमारा स्वास्थ्य, हमारी शिक्षा, हमारे हाथ में नहीं है। हमारे साथ में नहीं है। वह खो गई है। वह अमेरिका में नहीं, इंग्लैण्ड में नहीं, चीन में नहीं, पाकिस्तान में नहीं खोई है। यहीं खो गई है। यहीं अपने घर में ही हेरा गई है। वह इसी ठांव कहीं गुम हो गई है।
अपनी सबसे प्रिय चीज, सबसे बहुमूल्य चीज अपनों के बीच ही खो गई है। सब तो अपने ही हैं। अपने ही प्रियजन है। किससे पूछें? कैसे पूछें? सास-ससुर से, ननद-देवर से पूछने में संकोच होता है। सैंया से पूछते तो लज्जा ही दबोच लेती है। द्वार-आंगन, ढूंढते, कोठे-अटारी ढूंढते हिचक होती है। अपनी सेज पर ढूंढते तो जी एकदम लजा ही जाता है। समूची भारतीय जाति, समूची भारतीय जनता हलकान है, बेहद। हलकान तो है मगर लज्जित भी है। वह पूछते-पूछते, ढूंढ़ते-ढूंढ़ते लजा उठती है। तो भी क्या? लज्जा में भी बेचैनी कम कहां हो पाती है। तनिक भी कम नहीं होती। कम होने का नाम नहीं लेती है।
कहने वाले कहते हैं कि आंख फैला कर देखो न। क्या रौनक है! क्या रंगीनी है। कैसा उजाला है। अब कहने वालों का क्या। कहना ही जिसका व्यापार है, कुछ भी कहे, कौन रोक सकता है। किसकी जीभ, किस-किस की जीभ कौन पकड़े। फिर जिनको बोल कर ही मालामाल होना है धन से, दौलत से, पद से प्रतिष्ठा से वे भला किसके रोके रुकने वाले हैं! जो सब कुछ अपने लिए देख रहा है, उसे भला दूसरे का देखा क्या दिखेगा। नहीं, दिखेगा। कभी नहीं दिखेगा। जो अपने सुख में अंधा है, उसे अंधेरा नहीं दिखता। अभाग नहीं दिखता। खोया हुआ सौभाग्य, सौभाग्य का चिह्न नहीं दिखता। नहीं दिख सकता है। सावन के अंधे को सब कुछ हरा-हरा ही दिखता है। अपने सुख में अंधे हुए को सब कुछ भला-भला ही दिखता है।
मगर सब कुछ भला-भला नहीं है। भारतीय जन के लिए भारतीय जनता के लिए सब कुछ भला-भला नहीं है। कुछ बुरा है, जो भले को भी शोभन नहीं होने देता। सुखद नहीं होने देता।
भारतीय जनता के सुहाग का चिह्न खो गया है। अपने ही घर-आंगन में, अपने ही कोठे-अटारी में, अपनी ही सेेज में, अपनी ही श्रृंगार-सामग्री में कहीं खो गया है। वह कबसे हेर रही है। खोज रही है। ढूंढ रही है। ढूंढ़ने मे व्यग्र है। उसका कहीं पता नहीं चल पा रहा है।
हमारी विरासत खोए हुए वसंत की पीड़ा को चैता में गाने की विरासत रही है। मगर अब तो हम अपनी विरासत से वंचित होकर वैश्विक जन होने का झुनझुना बजाने में लगे हैं। फिलहाल हम न गा पा रहे हैं, न तो रो ही पा रहे हैं। हम गाना भूल चुके हैं। रोना हमारे स्वभाव में कभी रहा ही नहीं है।
भारतीय जनता तो कबसे कह रही है- खोज दो न, खोजवा दो न। हमारे सुहाग का चिह्न तो हमारे स्वाधीनता-संघर्ष के संकल्प ही हैं। सपने ही है। सब अपनों की तू-तू, मैं-मैं में खो गया है। अपनों में ही, अपनों के बीच ही हमारा अपनापन कहीं खो गया है।
सद्यः सुहागन के लिए झुलनी से बढ़कर कुछ भी नहीं है। वह है तो सबका अर्थ है। वह नहीं है, तो सब व्यर्थ है। उसे तो उसके होने पर ही सब कुछ भला लगता है। जनतंत्र में जतना को क्या चाहिए? हमें सबसे पहले हमारी सुरक्षा चाहिए, शिक्षा चाहिए, स्वास्थ्य चाहिए, सम्मान चाहिए, पारस्प्रिकता चाहिए, पारिवारिकता चाहिए। हमें जीने के अवसर की सुलभता चाहिए। मगर यही नहीं है। यही तो नहीं है। यही खो गया है। यहीं कहीं खो गया है। किससे पूछें भला। कैसे पूछें भला।
कौन सुनेगा? कोई नहीं सब मगन हैं, मस्त हैं अपनी धुन में। अपनी लगन में। अपनी खुशी में। उनकी खुशी देखकर पूछने से पहले ही जी लजा जाता है। वसंत चला गया है। धूप तीखी होने लगी है। मन में बेचैनी भरी है। बेचैनी में चैता का बोल बज रहा है-
एहिं ठैंया झुलनी हेरानी हो, रामा, कासों मैं पूछं।
सास से पूछूं, ननदिया से पूछूं, सइयां से पूछत लजानी हो रामा…..।
जनतंत्र लजा रहा है। जनता लजा रही है। चारों तरफ बाजा बज रहा है। बधावा बज रहा है। उत्सव की तैयारी चल रही है। जिसे सुनना है सुन नहीं रहा है। किससे पूछें?
Dr. Umesh Prasad Singh
Lalit Nibandhkar (ललित निबंधकार)
Village and Post – Khakhara,
District – Chandauli, Pin code-232118
Mobile No. 9305850728
जागरण की मुनादी : Dr. Umesh Prasad Singh
Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार Dr. Umesh Prasad Singh
कवि धूमिल साहित्य की दुनिया में अपनी सोच और अपने भाषिक तेवर को लेकर एक मुहावरे की तरह स्थापित हैं। भाषा में मुहावरा बन जाना आसान नहीं होता। मुहावरे रोज-रोज नहीं बनते। धूमिल का काव्यबोध अपने समय की व्यवस्था से उग्र असहमति और उसकी बेधक भर्त्सना का काव्यबोध है। धूमिल ने कविता में सबसे नया भर्त्सना का सौन्दर्यबोध सृजित किया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि धूमिल की भर्त्सना में किसी तरह की कुण्ठा नहीं है। उनकी भर्त्सना आकुंइ है। व्यवस्था में अव्यवस्था की अराजकता को भाषा की अराजक शक्ति से धूमिल ने जिस तरह उद्घाटित किया है, वह अन्यतम है। संवेदना और भाषा के क्षेत्र में नये इलाकों का उन्मोचन धूमिल का उद्वेलनकारी अवदान है।
धूमिल की कविता में उद्वेलन की अपूर्व क्षमता है। उनकी कविता अपने पाठक को आँधी की तरह हिला देती है। नहीं, वे केवल फुनगियों को, टहनियों को, डालों को नहीं हिलाते वे मजबूत तनों को झकझोर कर जड़ तक को हिला देते हैं। धूमिल की कविता पढ़ने वाले को उप्तप्त भी करती है और अनुतप्त भी करती है। उनकी कविता भ्रामक विश्वास को तोड़ सकने की सामर्थ्य से सम्पन्न है। भ्रम को विश्वास समझकर अपने को सम्पन्न समझने वाली समझ को धूमिल की कविता एक धक्के में ही एक बारगी विपन्न बना देती है। विपन्नता बोध का अद्भुत सौन्दर्य धूमिल की कविता का विलक्षण वैशिष्ट्य है।
भारतीय लोकतंत्र की विडम्बनामूलक भयावह सच्चाई को सबसे पहले महसूसने वाले और उसकी अभिव्यक्ति करने वाले धूमिल हिन्दी के सबसे बड़े कवि हैं। हमारे देश में जब लोकतंत्र की गरिमा का गौरव गान किसिम-किसिम के लोग किसिम-किसिम से गा रहे थे। गा-गाकर भारतीय जन को भरमा रहे थे धूमिल उसकी भयानक हिंस्र वृत्ति को परखकर-पहचानकर उसके दोगले इरादों को भाँप कर कविता में उसकी असलियत को उजागर करने के लिए सन्नद्ध भाषा को गढ़ने में तल्लीन हो रहे थे। जब हमारा लोकतंत्र मेकअप-मंडित मुखमण्डल में मंच पर अवतरित होकर विवश भारतीय जन की वंचना की वेदना को बहलाने और बहकाने की नौटंकी के आयोजन कर रहा था। धूमिल कविता के माध्यम से देश की जनचेतना को आगाह कर रहे थे।
दरअसल, अपने यहाँ प्रजातंत्र एक ऐसा तमाशा है जिसकी जान मदारी की भाषा है। वस्तुतः धूमिल की कविता, सिर्फ कला, कौशल के हलको से ताल्लुक रखने वाली वाहवाही लूटने वाली चीज नहीं बल्कि वह पाखण्ड को उजागर करने वाली एक बेधक प्रक्रिया है, जो केवल भाषा में नहीं बल्कि भाषा में होने से पहले भी और भाषा में हो लेने के बाद भी निरन्तर क्रियाशील रहती है। इसीलिये वे कहते हैं-
‘‘कविता क्या है?। कोई पहनावा है?। कुर्ता पायजामा है?
ना भाई ना। कविता। शब्दों की अदालत में
मुजरिम के कटघरे में खड़े बेकसूर आदमी का। हलफनामा है
क्या यह व्यक्तित्व बनाने की। खाने कमाने की। चीज है?
ना भाई ना। कविता। भाषा में। आदमी होने की तमीज है।……
धूमिल की कविता में आत्मबोध और युगबोध की आश्चर्यजनक संगति की अद्भुत और उद्दाम आकांक्षा अपने पूरे उफान में दिखाई देती है। उनकी यही आकांक्षा उन्हें भीड़ से अलग पहचान देती है और नारेबाजी के खोखलेपन से अलग धरातल पर प्रतिष्ठित करके व्यवस्था के बुनियादी प्रतिरोध का प्रतिनिधित्व प्रदान करती है।
धूमिल की कविता में आक्रोश की जबरदस्त गूँज गरगराती हुई सुनाई देती है। मगर वे सिर्फ सतही आक्रोश के कवि नहीं है। वे केवल तात्कालिक असहमतियों के कवि नहीं हैं। उनकी कविता केवल सामयिक विरोध की कविता नहीं है। धूमिल भावात्मक विद्रोह के कवि नहीं है। वे मुकम्मल विद्रोही कवि हैं। वे व्यवस्था की आन्तरिक संरचना में व्याप्त जनविरोधी चेतना की पहचान के कवि हैं। उनकी कविता जनपक्ष की जागृति के आह्वान की कविता है। उनकी कविता व्यवस्था के बुनियादी पाखण्ड को पहचानने के विवेक की कविता है। धूमिल की कविता अपने समय के विक्षोभ और विवेक का अद्भुत समन्वित स्वरूप रचने में समर्थ कविता है। वे भाषा में अपने समय के समग्र विक्षोभ को वाणी देते हैं और चेतना की जड़ता को जोतकर विवेक के बीज बोते हैं धूमिल सच्चे अर्थ में अपने समय के सचमुच किसान कवित हैं।
जनतंत्र के छद्म को जिस गहराई और बारीकी से धूमिल ने व्यंजित किया है, अन्यत्र दुर्लभ है। रोटी से खिलवाड़ करने वाले आदमी की पहचान का प्रश्न जिस पर समूची संसद मौन है, धूमिल की कविता का नितान्त मौलिक और जनतंत्र का सबसे मूल्यवान प्रश्न है। जैसे-जैसे लोकतंत्र का छद्म उजागर होता जा रहा है, इस प्रश्न की मूल्यवत्ता बढ़ती जा रही है। आज तो हालत ऐसी हो चली है कि रोटी से खिलवाड़ करने वाली प्रजाति के लोग संसद के भीतर धँसते जा रहे हैं।
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ
यह तीसरा आदमी कौन है?…
मेरे देश की संसद मौन है’’
कहने की जरूरत नहीं है कि आज वह तीसरा आदमी संसद के भीतर ही है और हर दूसरे आदमी के बाद तीसरी सीट बैठा आदमी धूमिल की कविता का तीसरा आदमी है। धूमिल की कविता की अन्तरात्मा प्रश्नों की आकुलता से भरी हुई है। उनके प्रश्न उत्तरों के भुखापेक्षी प्रश्न नहीं है। धूमिल के सवाल सच को छू लेने की उत्कट लालसा से उपजे हुए हैं, इसीलिए वे गढ़े हुए उत्तरों से लाख गुना संगत और सार्थक हैं।
धूमिल विपक्ष के कवि नहीं है। उनकी कविता विपक्ष की कविता नहीं है। विपक्ष भी व्यवस्था के भीतर एक दल है। वह सत्ता में नहीं है मगर वह भी सत्ता का उतना ही आकांक्षी है, जितना सत्तारूढ़ दल है। धूमिल का विरोध सिर्फ सत्ता का विरोधी नहीं है, वह व्यवस्था के समूचे खड़यत्र के विरूद्ध हैं। उनका विरोध व्यवस्था के आन्तरिक गठन के मनुष्य विरोधी चरित्र का विरोध है। वे व्यवस्था के ढाँचे को ध्वस्त करने के लिए प्रहार नहीं करते वे व्यवस्था की आत्मा पर चोट करने वाले अन्यतम कवि हैं। उनमें अस्वीकार का, इंकार का असम साहस है। उनके लिए उनकी कविता में उकना साहस और तेवर की तीक्ष्णता उनका साध्य नहीं है, वह उनके लिए जीवन की सचाई को पाने का साधन है। उनकी कविता एक मुकम्मल प्रतिपक्ष का सृजन करती है, जिसके मूल में सहज की अनिवार अभीप्सा है-
मैं साहस नहीं चाहता
मैं सहज होना चाहता हूँ
ताकि आम को आम और
चाकू को चाकू कह सकूँ।’’
धूमिल की कविता घोड़े की भाषा में आदमी के घोड़ा बन जाने की दारुण नियति और दुःसह दर्द की कविता है। धूमिल की कविता सवार नहीं, सवारी की कविता है। धूमिल की कविता अपने लिये नहीं किसी दूसरे के लिए पीठ पर बोझ लादकर फेचकुर फेकते दौड़ते रहने की कविता है। धूमिल की कविता हिन्दी में पहली बार घोड़े के मुँह से लगाम के असली स्वाद की कविता है। धूमिल की कविता प्रजातंत्र में मनुष्य होने की समूची ग्लानि को उसके संभाव्य आयामों में समूचे विस्तार और गहन गहराई में अभिव्यंजित करती कविता है। धूमिल का काव्यबोध भारतीय जनतंत्र की आन्तरिक असलियत का प्रमाणिक और संग्रहणीय दस्तावेज है। उनकी कविता केवल कविता नहीं है, वह मनुष्यता के सही इतिहास के लिये आधारभूत सामग्री के लिए स्रोत है। उनकी कविता निष्ठा की जगह केवल तुक के कारण विष्ठा की प्रतिष्ठापना घोर भर्त्सना की कविता है।
Dr. Umesh Prasad Singh
Lalit Nibandhkar (ललित निबंधकार)
Village and Post – Khakhara,
District – Chandauli, Pin code-232118
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हेरत-हेरत हे सखी : Dr. Umesh Prasad Singh
Young Writer, साहित्य पटल। ललित निबंधकार Dr. Umesh Prasad Singh
मैं कबीर नहीं हूँ। मगर मैं कुछ खोज रहा हँू। मैं जो खोज रहा हँू , वह कोई बड़ी चीज नही है। मैं बहुत ही मामूली चीज को अपने आस-पास के जन जीवन में अपनी समाज व्यवस्था में ढूंढ रहा हँू। जाने कबसे हलकान हँू। खोजकर थक रहा हूँ। हार रहा हूँ। कहीं मिल नहीं पा रही है। मैं अपने देश के जनतंत्र में जन को खोज रहा हूँ। जन कहाँ है? जन के लिए क्या है?
हमारे जनतंत्र में जन सिर्फ एक दिन दिखाई पड़ता है। उस दिन वह हर कहीं दिखाई पड़ता है। शहर में, बाजार में, गाँव में हर जगह वह दिखाई देता है। खुले हुए आकाश के नीचे तपती हुई धूप में, पसीने-पसीने वह लम्बी-लम्बी लाइन में लस्त-पस्त लगा हुआ हर किसी को दिखाई देता है। मतदान के दिन मतदान के लिये वह हर कहीं आसानी से देखा जाता है। हलॉकि मतदान केवल लोकतंत्र की किताबों में मात्र एक शब्द है, जिसका व्यवहार में कोई अर्थ नही होता। मत जैसी कोई चीज अगर है भी तो दान से उसका कत्तई कोई लेना-देना नहीं है। हमारे समय में वह केवल हथियाने की, हड़पने की और लूटने की चीज बनकर रह गया है। धनबल से, बाहुबल से, बुुद्धिबल से जो बीस पड़ता है, बटोर लेता है। फिर उस एक दिन के बाद जन हमारे जनतंत्र में पता नही कहाँ खो जाता है। ऐसा खो जाता है कि खोजे कही नहीं मिलता। हेरे से हाथ नहीं लगता।
जिसे हर कही होना चाहिए वह कही नही है। न देश में न प्रदेश में। न शहर में न, गाँव में। न बाजार में न खेत में। कहाँ गया जन? कुछ पता नहीं। जनतन्त्र में जन का कही पता नही है। हमारे जनतन्त्र में जन बूॅद हैै। सरकार सागर है। बूँद समुद्र में समा गई समाहित हो गई। बूँद समानी समद मो। सरकार के अस्तित्व में आते ही सारी जनता सरकार में विलीन होे गई। अब जन नहीं है। जनता नहीं बस सरकार है। हाँ सरकार है, देश में है, प्रदेश में है, गाँव में गाँव की सरकार है। जन कहीं नहीं है। जनता कहीं नहीं है।
जनता में महामारी है। महामारी जनता को मार रही है। जनता मर रही है। जनता काहे लिये है, मरने के लिये है। जनता में बीमारी है। दवा नही है। अस्पताल नहीं है। इलाज नहीं है।
जो अस्पताल हैं, वे अस्पताल नहीं हैं। अस्पताल की शक्ल में कानून के संरक्षण में धन उगाही के बेशर्म अड्डे हैं। जनता में भूख है। भय है। अशिक्षा है, असुरक्षा है। स्कूल कहीं नहीं हैं। सुरक्षा का आश्वासन कहीं नहीं है। क्यों नहीं है? इसी लिए कि जनता में भूख को भय को अशिक्षा को असुरक्षा को बने रहने देना है। इसके साथ रहनेे से ही जनता- जनता जैसी रह सकती है।
जनता तो सरकार के लिये है। मगर सरकार किसके लिये है? नहीं यह प्रश्न ठीक नही है। यह प्रश्न कानून के खिलाफ है। यह प्रश्न लोकतंत्र की मर्यादा के विरूद्ध है। इससे जुड़े और भी बहुत प्रश्न है, जिन्हे पूछने की मनाही है। प्रश्न यह भी है कि क्या सरकार और देश एक ही चीज है? मगर नहीं। नहीं पूछना है। कुछ भी पूछना किसी से भी पूछना मना है।
हमारे समय में किताबें भयानक रूप में झूठ बोलने लगी हैं। हम क्या करें? आखिर किसका विश्वास करें? किताब कहती है कि सरकार जनता के लिये है। सरकार देश के लिये है। मगर ऐसा दिखता नहीं है। दिखता यह है, कि सरकार सिर्फ सरकार के लिये है। सरकार को बनाये रखने के लिये समूचा देश सरकार के लिये है। हमारी किताबो में जो कुछ लिखा है। वह हमारे जीवन में दिखता क्यों नही है? जनतन्त्र के कानून की किताब में जनता के प्राथमिक अधिकारो के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता घोषित की गई है। अपने प्राथमिक कर्त्तव्य से सरकार अपना पीछा क्यों छुड़ा रही है, कौन पूूछे।
हमारे देश में सरकार है, अपनी पूरी ठकस के साथ है। मगर जनता के लिये नहीं है। जनता अपने बच्चो कोे पढाने में पसीने-पसीने है। निजी स्कूलो को फीस देते-देते बेहाल हो रही है। एक ही कोर्स को पूरा करने के लिये तीन-तीन तरह से फीस भर रही है। स्कूल में अलग ट्रयूशन में अलग, कोचिंग में अलग। सब कुछ करके केवल कागज की डिग्रियाँ पा रही है। जो आँस पोछने के काम भी नही आ रही है। मामूली सी बीमारी के लिये निजी अस्पतालों में लाखांे का बिल चुका रही है। हाँफ रही है। नाक से ऊपर चढते पानी में अफना रही है। सुरक्षा की तो बात ही छोड़िये। फिर भी सरकार है। पता नहीं किसके लिए है। इधर महामारी ने पूरे तंत्र को नंगा करके रख दिया है।
पूरा देश बिलबिला रहा है। मर रहा है। पिट रहा है। मिट रहा है।
आदमी एक बार नहीं बार-बार मर रहा है। वह मरने से पहले भी मर रहा है। मरने के समय भी मर रहा है। मरने के बाद फिर मर रहा है।
न जाने कैसे त्रासदी है। न जाने कैसे संकट है, अभूतपूर्व। नहीं,
इससे पहले ऐसा नहीं हुआ था। कुछ समझ नही आ रहा है। कोई कुछ समझ नही पा रहा है। क्या करे। आलम्ब के अवलम्ब के सहारे के सारे आश्रय छिन गए हैं। आदमी जहाँ भी है अकेला है। असहाय है। लाचार है। सरकार कहीं नहीं है।
सरकार जहाँ भी है, आदमी से बहुत दूर है। आदमीयो के बीच में केवल लाचारी है। दहशत है। आतंक है। असहायता है।
कोरोना इस महादेश के गाँवों में पॉव पसार रहा है। यहाँ बीमारी से संर्घष की कोई बात नहीं है। केवल आत्मसमर्पण है। बीमारी का आक्रमण हो और लोग मर जाय।
हमारे गाँव में कही भी सरकार का कोई नाम निशान तक नही है। अखबारों में, टेलीविजन के समाचारों में सरकार के वक्तव्य है। लडने की उद्घोषणए है। मैदान में कोई नहीं है।
मै एक गाँव में रहता हूँ कितने दिन से रोज सुन रहा हूँ सरकार आ रही है। बचाव के सारे इंतजाम के साथ आ रही है। मगर पता नहीं कहाँ है। यहाँ तो कहीं नहीं है।
हमारे जनतंत्र में समूचा जन सरकार में समहित है। मैं सरकार में खोज रहा हूँ- जन कही नहीं है। मैं आपदा काल में जनता के बीच सरकार को खोज रहा हूँ कही नही है। मै खोेजते-खोजते थक रहा हूँ। पक रहा हूँ।
मुझे लगता है मैं खुद ही खो गया हूँ मैं न सरकार में हॅँू न जनता में हूँ।
हेरत-हेरत हे सखी गया कबीर हेराय। मै भी हेराय गया हूँ खो गया हूँ मगर कबीर की तरह नहीं बिल्कुल अपनी तरह। बूँद, बूँद में ही सूख गई है। हर जगह महामारी है। आदमी कही नहीं।
Chandauli:किसान कांग्रेस ने युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को दीप जलाकर दी श्रद्धांजलि,जवानों के बलिदान को किया याद
चंदौली। मुख्यालय स्थित पंडित कमलापति त्रिपाठी उद्यान में बुधवार को किसान कांग्रेस कमेटी के तत्वावधान में भारत पाकिस्तान के बीच युद्ध में शहीद हुए भारतीय जांबाज़ सैनिकों की याद में कैंडल जलाकर और पुष्पांजलि अर्पित कर उनको श्रद्धांजलि दी गई।
इस दौरान किसान कांग्रेस के जिलाध्यक्ष प्रदीप मिश्रा ने कहा कि दुश्मन देश पाकिस्तान ने जब भी भारत की सीमा के अंदर आतंकवाद को बढ़ावा दिया भारत की तीनों सेनाओं के शूरवीर सैनिकों ने अपने जान की परवाह किए आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने का काम किया। हमारे देश के जवान सीमा को सुरक्षित रखते हैं तभी हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाते है। युद्ध की त्रासदी भारत ने देखी है। और संकट के समय मे प्रत्येक भारतवासी अपने सैनिकों के साथ तन-मन-धन से हरदम खड़ा रहा है। पूर्व जिलाध्यक्ष धर्मेंद्र तिवारी ने कहा कि दुनिया ने भारत की सैन्य शक्ति को देखा और आकाशीय युद्ध के पराक्रम को सराहा है। वर्तमान सैन्य क्षमता ऐसी है। कि युद्ध की स्थिति में दुश्मन देश के घर मे घुस कर मारने और सकुशल वतन लौट आने की कूबत हमारी सेना रखती है। लड़ाई अगर और खिंचती तो पाकिस्तान के फिर से टुकड़े होते इस समय इंदिरा गांधी को यह देश बड़ी शिद्दत से याद कर रहा है। जिन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े किए थे। इस दौरान गंगा प्रसाद, श्रीकांत पाठक, सतीश बिंद, विनोद सिंह, असगर अली, नरेंद्र तिवारी सहित अन्य कार्यकर्त्ता उपस्थित रहे।
Chandauli:तेज़ धमाके के साथ धुँ-धुँ कर जलने लगा सिलेंडर के साथ पिकअप,मौक़े पर मच गई अफरा-तफरी,ऐसे किया गया आग पर नियंत्रण
नियामताबाद। अलीनगर थाना क्षेत्र के सैदपुरा गांव के समीप रिंग रोड निर्माण के दौरान पेंट करने में लगे मजदूरों की पिकअप पर रखे जनरेटर व पेंट मशीन में अचानक धमाके के साथ आग लग गई। घटना को लेकर वहा मजदूरों में अफरा-तफरी मच गया। हालांकि रिंग रोड में लगे पानी के टैंकर से लगभग आधे घंटे बाद आग पर काबू पाया गया।
दरसअल पचफेड़वा से मवई तक रिंग रोड निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। इसमें डिवाइडर का पेंट सहित गंगा पुल व रेलवे पुल का निर्माण भी कराया जा रहा है। इसी दौरान बुधवार को सैदपुरा गांव के समीप पिकअप पर जनरेटर व पेंट करने वाली मशीन लादकर डिवाइडर पेंट करने का काम चल रहा था। तभी अचानक जनरेटर में आग लग गई। जिससे पेंट करने वाली मशीन का सिलेंडर ब्लास्ट कर गया और आग ने विकराल धूप धारण कर लिया। लेकिन रिंग रोड में लगे पानी देने वाली टैंकर से मजदूरों ने कड़ी मस्कत के बाद आग पर काबू पलिया।